इस बार बंगाल में वर्चस्व बचाने की जंग लड़ रही हैं ममता बनर्जी
2019 के चुनाव में ममता की तृणमूल कांग्रेस को जहां 44.91 प्रतिशत वोट मिले वहीं भाजपा को 40.70 प्रतिशत मत मिले थे। 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस व वाम दलों ने अलग-अलग लड़ा था, जिसमें कांग्रेस को 5.67 प्रतिशत व वामदलों को 6.30 प्रतिशत मत मिले थे।
देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। जहां आगामी मई माह तक नई सरकार का गठन हो जाएगा। चुनावी प्रक्रिया में सभी राजनीतिक दल पूरे जोश खरोश से लगे हुए हैं। चुनाव होने वाले पांच राज्यों- असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल व पुडुचेरी में से सबसे कड़ा चुनावी संघर्ष पश्चिम बंगाल में देखने को मिल रहा है। वहां दस साल पहले वाममोर्चा के सबसे मजबूत गढ़ को ढहाने वाली ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी सत्ता में हैट्रिक लगाने के लिए पूजा जोर लगा रही है। दूसरी तरफ 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों से उत्साहित भाजपा ममता दीदी के किले को ध्वस्त करने का दम भर रही है। प्रदेश में 25 साल राज कर चुकी कांग्रेस व 32 साल राज कर चुके वाम दल एक साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। इससे पश्चिम बंगाल की हर सीट पर तिकोना संघर्ष होगा।
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी इन दिनों लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं। उन्होंने अपने परंपरागत भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र की बजाए बहुचर्चित नंदीग्राम विधानसभा सीट से अपने ही पूर्व सहयोगी व अब भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी के सामने चुनाव लड़ने की घोषणा कर सबको चौंका दिया है। ममता बनर्जी के नंदीग्राम में नामांकन दाखिल करने के दौरान उनके पांव में चोट लग गई थी, जिसका जिम्मेदार उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के लोगों को ठहराया था। मगर भाजपा नेताओं ने उस घटना को ममता बनर्जी का एक राजनीतिक ड्रामा करार देते हुए घटना में उनकी पार्टी के किसी भी कार्यकर्ता का हाथ होने की संभावना को पूरी तरह नकार दिया था। उसके बाद से ही ममता बनर्जी व भाजपा नेताओं में एक दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने पैर में चोट लगने को लेकर ममता बनर्जी पर निशाना साधते हुए पूरे घटनाक्रम को एक राजनीतिक ड्रामा करार दिया है। हालांकि कांग्रेस के ही बड़े नेता व पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ममता बनर्जी के चोट लगने की घटना पर सहानुभूति जताकर पश्चिम बंगाल कांग्रेस कमेटी को सांसत में डाल दिया है। ममता बनर्जी अपने राजनीतिक वर्चस्व को बचाने का चुनाव मानकर धुआंधार तरीके से चुनाव लड़ रही हैं। चुनाव लड़ने के लिए उनकी पार्टी द्वारा हर तरीका इस्तेमाल किया जा रहा हैं। वहीं पिछले लोकसभा चुनाव में एकदम दो से 18 सीटों पर पहुंचने वाली भाजपा के कार्यकर्ता पूरे जोश से भरे हुए हैं। भाजपा ने तृणमूल कांग्रेस के कई बड़े जनाधार वाले नेताओं को तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल कर लिया है, जिसका पूरा लाभ भाजपा को मिलेगा। तृणमूल कांग्रेस पार्टी के नेता व राज्यसभा से इस्तीफा देने वाले दिनेश त्रिवेदी, शुभेंदु अधिकारी, मुकुल राय, राजीव बनर्जी, बच्चू हांसदा सहित 25 विधायक व दो सांसद भाजपा में शामिल हो चुके हैं।
बॉलीवुड में बड़े अभिनेता रहे मिथुन चक्रवर्ती ने भी प्रधानमंत्री मोदी की जनसभा में भाजपा का दामन थाम लिया। उन्होंने कहा कि वे पूरी ताकत के साथ भाजपा के पक्ष में चुनाव प्रचार करेंगे। इससे भाजपा को बहुत लाभ मिलेगा। मिथुन चक्रवर्ती पश्चिम बंगाल में खासे लोकप्रिय हैं। वामपंथी विचारधारा के कारण मिथुन चक्रवर्ती पहले वामपंथी दलों के नजदीकी थे। फिर उनको ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी ने राज्यसभा सदस्य भी बनाया था। मगर दो साल बाद ही उन्होंने तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य से इस्तीफा दे दिया था। अब मिथुन दा भाजपा में शामिल होकर ममता दीदी पर निशाना साध रहे हैं। ममता बनर्जी भी राजनीति की पुरानी खिलाड़ी हैं। अपने संघर्ष के बल पर उन्होंने वाममोर्चा के 33 वर्षों के शासन को ध्वस्त कर 2011 में पहली बार भारी बहुमत से अपनी सरकार बनाई थी। 2016 के चुनाव में भी उन्होंने बड़ी जीत हासिल की थी। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में ममता दीदी की स्थिति कमजोर पड़ने लगी। भाजपा ने बंगाली जनमानस में तेजी से अपनी पैठ बनाई। इसी का नतीजा था कि लोकसभा में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के सांसदों की संख्या 34 से घटकर 22 रह गई थी। ममता दीदी की पार्टी के वोटों में भी गिरावट होनी शुरू हो गई थी।
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2019 के लोकसभा चुनाव में ममता दीदी की तृणमूल कांग्रेस को जहां 44.91 प्रतिशत वोट मिले वहीं भाजपा को 40.70 प्रतिशत मत मिले थे। 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस व वाम दलों ने अलग-अलग लड़ा था, जिसमें कांग्रेस को 5.67 प्रतिशत व वामदलों को 6.30 प्रतिशत मत मिले थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में ममता दीदी की पार्टी ने 158 विधानसभा सीटों पर व भाजपा ने 128 सीटों पर बढ़त हासिल की थी। मगर 60 विधानसभा सीटें ऐसी थीं जिन पर तृणमूल कांग्रेस की भाजपा पर महज चार हजार वोटों की ही बढ़त थी। वही 60 सीटें आज ममता दीदी के लिये परेशानी का सबब बनी हुयी हैं।
मां माटी मानुष के नारे के साथ बंगाली लोगों में लोकप्रिय रहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आज अपने राजनीतिक वजूद को बचाने की लड़ाई लड़ रही हैं। ममता बनर्जी के वोट बैंक रहे मुस्लिम मतदाता भी आज बंटे हुए नजर आ रहे हैं। प्रसिद्ध फुरफुरा शरीफ दरगाह के धर्मगुरु पीरजादा अब्बास सिद्दीकी भी ममता दीदी का साथ छोड़कर इंडियन सेक्युलर फ्रंट के नाम से अपनी अलग पार्टी बना कांग्रेस वामदलों के गठबंधन में शामिल होकर चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा बंगाल में हिंदू मतों का तेजी से ध्रुवीकरण कर रही है तथा खुद को हिंदू हितैषी दिखाने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पिछले दिनों ब्रिगेड परेड ग्राउंड में हुई बड़ी विशाल जनसभा के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं का जोश काफी बढ़ गया है। उसके बाद से ही ममता बनर्जी से नाराज सभी नेता भाजपा में अपना नया ठिकाना ढूंढ़ रहे हैं।
विभिन्न चुनावी सर्वेक्षणों में भी पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी व भाजपा के मध्य ही चुनाव मुकाबला दिखाया जा रहा है। हालांकि अभी तक किए गए सभी चुनाव सर्वेक्षणों में ममता दीदी की वापसी की संभावना बतायी जा रही है। लेकिन भाजपा को भी 115 से अधिक सीटें मिलती दिखा रहें हैं। ऐसे में ममता बनर्जी से नाराज कांग्रेस व वामदलों के मतदाताओं को भी यदि चुनावों में ममता बनर्जी की सरकार फिर से आने की संभावना के चलते उनमें से कुछ कुछ वोट भाजपा की तरफ चले जाते हैं तो निश्चय ही भाजपा की सीटों में वृद्धि होगी। जो ममता दीदी के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी व भाजपा ही मुख्य मुकाबले में है। कांग्रेस वाम गठबंधन ममता दीदी के वोटों में ही सेंध लगा रहा हैं, जिससे उनको नुकसान होने की संभावना जताई जा रही है। भाजपा ने बंगाल के सभी विधानसभा क्षेत्रों में अपने बड़े नेताओं को चुनाव प्रबंधन में उतारा है, जिसमें केंद्रीय मंत्री से लेकर विधायक तक शामिल हैं। भाजपा इस अवसर को किसी भी तरह हाथ से नहीं जाने देना चाहती है। उनके नेताओं को पता है कि यदि इस बार फिर से ममता दीदी की सरकार बन गई तो फिर उसको उखाड़ पाना संभव नहीं होगा।
-रमेश सर्राफ धमोरा
(लेखक अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके लेख देश के विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं।)
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