World Day Against Child Labour 2024: सामाजिक कलंक है 'बालश्रम'?
बाल श्रम रोकने में सरकारी व सामाजिक दोनों के प्रयास नाकाफी न रहें, सभी को ईमानदारी से इस दायित्व में आहुति देनी चाहिए। कानूनों की कमी नहीं है, कई कानून सक्रिय हैं। बाल श्रम अधिनियम-1986 के तहत ढाबों, घरों, होटलों में बाल श्रम करवाना दंडनीय अपराध है।
वैश्विक समस्या है बाल श्रम? किसी भी मुल्क के माथे पर सामाजिक कलंक भी है, फिर चाहें वह देश विकसित हो या विकासशील? आज से 19 वर्ष पहले यानी सन-2002 को इस बुराई के विरुद्ध प्रतिवर्ष 12 जून के दिन ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ की पहल पर ‘विश्व बालश्रम निषेध दिवस’ मनाने का आरंभ हुआ। इस दिवस का मकसद चाइल्ड लेबर के सभी रूपों को रोकने के लिए जनमानस को जागरूकता करना था। जागरूकता को ध्यान में रखकर ही 2024 की थीम ‘अपनी प्रतिबद्धताओं पर कार्य करें' बाल श्रम समाप्त करें, निर्धारित की गई है। आंकड़ों की माने तो बालश्रम एशिया और प्रशांत क्षेत्र में दूसरे स्थान पर काबिज है। यहां कुल 7 फीसदी बच्चे विभिन्न किस्म की मजदूरी में संलिप्त है। यही कारण है कि 62 मिलियन बच्चों की बड़ी आबादी आज भी शिक्षा से महरूम है। रोकथाम के लिहाज से प्रयासों में कमी नहीं है, प्रयास बहुतेरे किए जाते हैं कि बच्चों को बाल श्रम की धधकती भट्टियों से आजाद करवाया जाएं। लेकिन परिवारों के मध्य संघर्ष, संकट और आर्थिक मजबूरियां उन्हें बाल श्रम करने को विवश करती हैं।
बाल श्रम रोकने में सरकारी व सामाजिक दोनों के प्रयास नाकाफी न रहें, सभी को ईमानदारी से इस दायित्व में आहुति देनी चाहिए। कानूनों की कमी नहीं है, कई कानून सक्रिय हैं। बाल श्रम अधिनियम-1986 के तहत ढाबों, घरों, होटलों में बाल श्रम करवाना दंडनीय अपराध है। बावजूद इसके लोग बाल श्रम को बढ़ावा देते हैं। बच्चों को वह अपने प्रतिष्ठिनों में इसलिए काम दे देते हैं क्योंकि उन्हें कम मजदूरी देनी पड़ती है। लेकिन वह यह भूल बैठते हैं कि वह कितना बड़ा अपराध कर रहे हैं। बाल मजदूरी रोकने के लिए 1979 में बनी गुरुपाद स्वामी समिति ने बेहतरीन काम किया था। उसके बाद अलग मंत्रालय, आयोग, संस्थान और समितियां बनीं, लेकिन बात फिर वहीं आकर रुक जाती है कि जब तक आमजन की सहभागिता नहीं होगी, सरकारी प्रयास भी नाकाफी साबित होंगे।
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अंतर्राष्ट्रीय समुदाय विगत कई दशकों से बाल श्रम को समाप्त करने में ईमानदारी से प्रतिबद्धता व्यक्त कर रहा है। बावजूद इसके संपूर्ण विश्व में आज भी करीब 160 मिलियन बच्चे बाल श्रम की भट्टी में तप रहे हैं। दुनिया भर में करीब दस में से एक बच्चा आज भी किसी न किसी रूप में मजदूरी करने को मजबूर है। बाल श्रम से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर भी बेहताशा प्रयास हो रहे हैं। साथ ही अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा लगातार कार्यान्वित शिक्षा, कला और मीडिया के माध्यम से बच्चों के अधिकारों के प्रति जागरूक किया जा रहा है। लेकिन फिर भी बाल श्रम की समस्या थमने के बजाय और बढ़ रही है। हिंदी फिल्म ‘बूट पॉलिश’ का एक गाना है कि ‘नन्हें मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है, मुट्ठी में है तकदीर हमारी’ के बोल न सिर्फ बालश्रम की भट्टियों में धधकते बचपन के प्रति संवेदना जगाते हैं, बल्कि हुकूमतों के लिए बाल समस्याओं पर अंकुश न लगाने व उनसे जुड़े उत्पीड़न और अपराध के प्रति घोर निराशा भी व्यक्त करते हैं।
बाल मजदूरी वैश्विक समस्या का रूप ले चुकी है। इसलिए सिर्फ सरकार-सिस्टम पर सवाल उठाने से अब काम नहीं चलने वाला? समाधान के विकल्प सभी को मिलकर खोजने होंगे? सड़कों पर भीख मांगते बच्चे, ईट भट्टों पर काम करते नौनिहाल, विभिन्न अपराधों में लिप्त बच्चे व शिक्षा से महरूम बच्चों को देखकर मुंह मोड़ने के बजाय है, हुकूमतों को चेताना होगा। बच्चों से मुंह फेरना ही हमारा सबसे बड़ा अपराध है। हमारी चुप्पी ही बालश्रम जैसे कृत्य को बढ़ावा देती है। ऐसे बच्चों के बचपन की तुलना थोड़ी देर के लिए हम अपने बच्चों से करें, तो फर्क अपने आप महसूस कर सकेंगे। ऐसा करने से अपने भीतर बदनसीब बच्चों के प्रति संवेदना जगेगी और उनसे जुड़े जुल्मों के खिलाफ अवाज उठाने का संबल मिलेगा। आंखों के सामने किसी बच्चे का बचपन खो जाना, हमारे लिए सबसे बड़ी शर्म वाली बात है।
इस सामाजिक बुराई से समाज को वाकिफ हो जाना चाहिए कि बाल श्रम रोकना केवल सरकारों की जिम्मेदारी नहीं है, प्रत्येक इंसान का मानवीय दायित्व भी है। ये सच है कि समस्या किसी एक के बूते सुलझने वाली नहीं? इसके लिए सामाजिक चेतना, जनजागरण और जागरूकता की जरूरत है। बाल मजदूरी और बाल अपराध को रोकने के लिए महिला बाल मंत्रालय, श्रम विभाग, समाज कल्याण विभाग व निपसिड सहित इस क्षेत्र में कार्यरत तमाम संस्थाएं कार्यरत हैं। गैर सरकारी संगठन और एनजीओ हमेशा रोकथाम की दिशा में हमेशा तत्पर रहते हैं। इसके लिए सबसे पहले सामाजिक स्तर पर बाल श्रमिकों के प्रति आम लोगों के जेहन में संवेदना जगानी होगी और बाल श्रम के खिलाफ मन में लड़ाई की प्रवृति पैदा करनी होगी। ताजा आंकड़े बताते हैं कि बीते एकाध दशकों से एशिया में सबसे ज्यादा बाल तस्करी हिंदुस्तान में हुई हैं। जबकि, ये सिलसिला रूका नहीं, बल्कि और तेज हुआ है।
बाल मजदूरों के बढ़ने के कुछ कारण और भी हैं। पिछड़े राज्यों में बाल तस्करों का बड़ा गैंग सक्रिय है, जो मासूम बच्चों को किडनैप करके उन्हें कुछ समय बाद भीख मंगवाने या मजदूरी में लगा देते हैं। कुछ बच्चों को अपराध की दुनिया में भी उतार देते हैं। बाल मजदूरी व बाल तस्करी दोनों कृत्यों में एक बड़ा गैंग सक्रिय होकर अंजाम देता है। नेशनल क्राइम ब्यूरों के आंकड़े बताते हैं कि तस्कर गिरोह समूचे हिंदुस्तान में रोजाना सैकड़ों बच्चे किडनेप करते हैं जिन्हें बाद में भीख मंगवाने, मजूदरी, बाल अपराध और बाल श्रम की आग में झोंकते हैं। सड़क, बाजार व अन्य जगहों पर की जाने वाली स्नैचिंग की ज्यातर घटनाओं को कम उम्र के बच्चे ही अंजाम देते हैं। उन्हें बाकायदा पहले प्रशिक्षण दिया जाता है। उद्योग, कल-कारखाने व कंपनियों वाले बच्चों से मजदूरी इसलिए भी कराते हैं क्योंकि इसके एवज में उन्हें कुछ देना नहीं पड़ता, बिना भुगतान के वह बच्चों कुछ थोड़ा खाना खिलाकर ही उनसे शारीरिक कार्य करवा लेते हैं। आज का दिन खास है, बाल श्रम रोकने के लिए? सभी को संकल्पित होना चाहिए इस लड़ाई में? कहीं कोई बच्चा मजदूरी करता दिखे, उससे उसका कारण जानना चाहिए। अगर लगे उसे जबरदस्ती काम पर लगाया गया है, तो आरोपियों के खिलाफ कानूनी कारवाही भी करवानी चाहिए।
- डॉ. रमेश ठाकुर
सदस्य, राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान (NIPCCD), भारत सरकार!
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