कारसेवकों के पराक्रम व पुरुषार्थ की बदौलत अयोध्या से हटा था विवादित ढांचा
फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक की मौजूदगी में सुबह 9 बजे पूजा पाठ चल रहा था। लोग भजन-कीर्तन कर रहे थे। दोपहर 12 बजे के आसपास दोनों ने बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि परिसर का दौरा भी किया था।
पराधीनता के काल में हिन्दू समाज अपना स्वत्व स्वाभिमान और गौरव भूल गया था। 6 दिसंबर 1992 की घटना के बाद भारत के भाग्योदय का सूर्य चमकने लगा। हिन्दुओं ने दुनियाभर को यह संदेश दिया कि अब हम अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकते। हिन्दू अब दब्बू नहीं रहेगा। हिन्दू समाज में ऐसा गौरव बोध वर्षों के जन जागरण के बाद हुआ था। धर्म संसद की घोषणा और संतों के आह्वान पर 6 दिसंबर 1992 को लाखों रामभक्त अयोध्या पहुंच गए।
6 दिसंबर 1992 की सुबह ‘जय श्रीराम’ ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’, जैसे नारे अयोध्या में गूंजने लगे। हिन्दू हृदय सम्राट अशोक सिंहल, श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष व दिगम्बर अखाड़ा के महंत रामचन्द्रदास परमहंस के नेतृत्व में दिग-दिगन्त में कालजयी नारे गूँज रहे थे। विवादित ढांचे से करीब 200 मीटर की दूरी पर बने विशाल मंच पर कई नेता, साधु-संत बैठे थे। इस मंच पर लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कलराज मिश्र और विनय कटियार समेत कई नेता मौजूद थे।
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फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक की मौजूदगी में सुबह 9 बजे पूजा पाठ चल रहा था। लोग भजन-कीर्तन कर रहे थे। दोपहर 12 बजे के आसपास दोनों ने बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि परिसर का दौरा भी किया था। हालांकि, दोनों ही यह भांपने में नाकाम रहे कि कुछ देर बाद ही वहां ऐसा कुछ भी होने वाला है, जिसे कई दशकों तक याद किया जाएगा। उनके दौरे के कुछ ही देर बाद वहां का माहौल एकदम बदल गया। दोपहर में अचानक माहौल बदलता चला गया। विहिप ने प्लान बनाया कि राम जन्मभूमि परिसर से एक—एक मुट्ठी बालू ले जाकर सरयू में डालेंगे और प्रतीकात्मक कारसेवा करेंगे। लेकिन कारसेवक इससे सहमत नहीं थे। रामभक्तों ने संकल्प लिया कि मुख्य विवाद की जड़ यह विवादित ढांचा ही है इसलिए आज हम ढांचे का हटाकर ही मानेंगे। 30 अक्टूबर और 2 नवम्बर 1990 को अयोध्या में कारसेवकों पर गोलीबारी की घटना को याद कर कारसेवक लगातार उत्तेजित हो रहे थे। फिर क्या था देखते ही देखते कारसेवक बैरीकेडिंग तोड़कर विवादित ढांचे के पास पहुंच गये। मंच से कारसेवकों को रोकने का प्रयास भी हुआ लेकिन कारसेवक नहीं माने। कुछ कारसेवक ढांचे के ऊपर चढ़ने लगे कुछ अंदर घुस गये। इस बीच सीआरपीएफ के जवानों ने हवाई फायर भी किया। तुरन्त बजरंग दल के राष्ट्रीय संयोजक विनय कटियार ने कहा कि जितने भी सुरक्षाकर्मी हैं अपने स्थान से 10 कदम पीछे हट जायें। फिर तो जय श्रीराम और जयकारा वीर बजरंग और हर—हर महादेव का नारा लगाते कारसेवक ढांचे के विध्वंस में जुट गये। साध्वी ऋतम्बरा ने मंच से बोला कि 'एक धक्का और दो' बाबरी ढांचा तोड़ दो। फिर जिसकी वर्षों से प्रतीक्षा थी, 1528 से हिन्दू पौरुष को चुनौती दे रहा कलंक का प्रतीक विवादित ढांचा कारसेवकों के कोप से ढह गया। यह हिन्दू समाज के शौर्य का सामूहिक प्रकटीकरण था। हिन्दू शक्ति ने पराधीनता के प्रतीक ढाँचे को ढहाकर जिसे मुगल आक्रांता बाबर के सेनापति मीरबांकी ने बनवाया था, उसे गिराकर अपमान का बदला ले लिया। दोपहर 2 बजे के आसपास ढांचे का पहला गुंबद गिरा। पहले गुंबद के नीचे कुछ लोग दब भी गए थे। उन्हें तत्काल श्रीराम चिकित्सालय प्राथमिक उपचार के लिए ले जाया गया। शाम 5 बजे तक भीड़ ने सभी गुंबद गिरा दिए। उत्तर प्रदेश सरकार ने स्पष्ट निश्चय कर रखा था कि वह कारसेवकों पर गोलियां नहीं चलवाएगी।
इसके बाद कल्याण सिंह ने विवादित ढांचा विध्वंस की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने अपना इस्तीफा सिर्फ एक लाइन में लिखा था। इसमें लिखा था, ‘मैं मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे रहा हूं, कृपया स्वीकार करिए’। कल्याण सिंह ने कहा था कि यह सरकार राम मंदिर के नाम पर बनी थी और उसका मकसद पूरा हुआ। ऐसे में यह सरकार राममंदिर के नाम पर कुर्बान है। प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने हड़बड़ाहट में हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान की सरकार भी भंग कर दी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने स्वयं इस्तीफा दे दिया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
06 दिसंबर 1992 को ढांचा ढह जाने के बाद तत्काल बीच वाले गुम्बद के स्थान पर ही भगवान का सिंहासन और ढांचे के नीचे परम्परा से चला आ रहा राम का विग्रह सिंहासन पर स्थापित कर पूजा प्रारम्भ कर दी गयी। हजारों भक्तों ने रात और दिन मेहनत करके बिना औजारों के केवल हाथों से उस स्थान के चार कोनों पर चार बल्लियां खड़ी करके कपड़े लगा दिए। पांच—पांच फीट ऊंची, 25 फीट लम्बी, 25 फीट चौड़ी ईंटों की दीवार खड़ी कर दी और बन गया मंदिर। मन्दिर निर्माण के लिए आक्रांताओं से लड़े गए 76 युद्धों में लाखों की संख्या में बलिदान के बाद रामलला अस्थायी मन्दिर में विराजमान हुये थे। बाद में
परिसर केन्द्रीय सुरक्षा बलों के हाथ में चला गया, परन्तु केन्द्रीय सुरक्षा बल के जवान भगवान की पूजा करते रहे। बाद में एडवोकेट हरिशंकर जैन ने उच्च न्यायालय में गुहार लगाई कि भगवान भूखे हैं। राग, भोग, पूजन की अनुमति दी जाए। 01 जनवरी 1993 को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति हरिनाथ तिलहरी ने दर्शन—पूजन की अनुमति प्रदान की।
06 दिसम्बर 1992 को जब ढांचा गिर रहा था तब उसकी दीवारों से शिलालेख भी प्राप्त हुआ था। विशेषज्ञों ने पढ़कर बताया कि यह शिलालेख 1154 ई. का है। इसमें संस्कृत में 20 पंक्तियां लिखी हैं। ऊं नम: शिवाय से यह शिलालेख प्रारम्भ होता है। विष्णुहरि के स्वर्ण कलशयुक्त मंदिर का इसमें वर्णन है। अयोध्या के सौन्दर्य का इसमें वर्णन है। दशानन के मान—मर्दन करने वाले का वर्णन है। ये समस्त पुरातात्विक साक्ष्य उस स्थान पर कभी खड़े रहे भव्य एवं विशाल मंदिर के अस्तित्व को ही सिद्ध कर रहे थे।
06 दिसम्बर 1992 की घटना राष्ट्रीय अपमान का परिमार्जन कर राष्ट्रीय स्वाभिमान के पुनर्प्रतिष्ठा के महायज्ञ का श्रीगणेश था। हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारे जीवनकाल में रामलला का भव्य मन्दिर आकार ले रहा है और आगामी 22 जनवरी 2024 को पूज्य संतों की उपस्थिति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होगी। आइए जन्मभूमि के लिए बलिदान हुए अमर हुतात्माओं को नमन करें और आंदोलन के महानायकों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करें कि उनके त्याग व बलिदान के कारण मन्दिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो पाया। शौर्य दिवस हमारे आने वाली पीढ़ियों को सदैव प्रेरणा देता रहे और आज के दिन राष्ट्रीय स्वाभिमान के पुनर्प्रतिष्ठा के जिस यज्ञ का श्रीगणेश हुआ था वह रामलला के भव्य मन्दिर बन जाने से पूर्ण नहीं होगा, अभी तो मथुरा व काशी बाकी हैं। पराधीनता के चिन्हों से जब तक मुक्ति नहीं पा लेंगे तब तक इस यज्ञ की पूर्णाहुति नहीं होगी। इसलिए लक्ष्य तक पहुंचे बिना पथ में पथिक विश्राम कैसा।
- बृजनन्दन राजू
अयोध्या
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