Nikay Chunav 2023: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चौतरफा मुकाबले में बीजेपी मार सकती है बाजी

UP Nagar Nikay Chunav 2023
ANI
अजय कुमार । Apr 24 2023 2:37PM

राष्ट्रीय लोकदल का वजूद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ज्यादा है। यही कारण है कि रालोद उम्मीदवार पश्चिमी उप्र की निकायों में अपने उम्मीदवार घोषित करने की बात कह रहे हैं। रालोद का मानना है कि यहां सपा को अपने उम्मीदवार घोषित नहीं करने चाहिए थे।

उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में सब कुछ समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव की इच्छानुसार नहीं हो पा रहा है। टिकट बंटवारें को लेकर पार्टी में सिर फुटव्वल चल रहा है तो बसपा सुप्रीमो मायावती ने बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवारों को खड़ा करके इस बात की आशंका बढ़ा दी है कि कई सीटों पर सपा-बसपा के मुस्लिम प्रत्याशियों के आमने-सामने होने से मुस्लिम वोट बैंक में बिखराव देखने को मिल सकता है। बात यही तक सीमित नहीं है। समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन के बीच भी दीवार खड़ी होती नजर आ रही है। रालोद, जिसकी मान्यता चुनाव आयोग ने हाल में खत्म कर दी है, वह भी अपने गठबंधन सहयोगी के सामने तेवर ढीले करने को तैयार नहीं है। बात दें कि विधानसभा चुनाव 2022 में जब सपा-रालोद का गठबंधन हुआ था। तब सपा प्रमुख अखिलेश यादव और रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी ने खास तौर पर पश्चिमी उप्र में जमकर प्रचार किया था और इसके साथ ही एलान किया गया कि यह गठबंधन नगर निकाय चुनाव में भी साथ चलेगा, लेकिन पश्चिमी यूपी में अपनी ठीकठाक पकड़ रखने वाले रालोद को जब समाजवादी ने सीटों के बंटवारे में ठेंगा दिखाया तो रालोद ने समाजवादी पार्टी के समाने अपने प्रत्याशी भी मैदान में उतार दिए हैं, जिसके चलते पश्चिमी यूपी में कई सीटों पर मुकाबला चौतरफा नजर आने लगा, लेकिन राष्ट्रीय लोकदल के चौधरी जयंत सिंह की नाराजगी के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने गठबंधन वाली कुछ सीटों से अपने प्रत्याशी हटा लिए हैं।

दरअसल, सपा-रालोद के बीच रस्साकशी का माहौल तब सामने आया था, जब सपा ने रालोद की दबदबे वाली सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए थे। इसका परिणाम यह हुआ कि बिजनौर नगर पालिका अध्यक्ष के लिए स्वाति वीरा को सपा ने उम्मीदवार घोषित किया तो रुखसाना परवीन को यहां से रालोद ने अपना उम्मीदवार घोषित करते हुए पर्चा दाखिल करा दिया। इसी प्रकार बिजनौर जिले में ही बिजनौर नगर पालिका परिषद समेत अध्यक्ष पद के लिए छह सीटों- हल्दौर, नहटौर, नूरपुर, धामपुर और चांदपुर में भी यही स्थिति खड़ी हो गई थी। वहीं राष्ट्रीय लोकदल ने अपने सियासी गढ़ बागपत जिले की नगर पालिका बड़ौत सीट पर अपना दावा पेश किया था, लेकिन जब सपा ने उसे यह सीट नहीं दी तो उसने सपा के समानांतर अपना प्रत्याशी भी खड़ा कर दिया। उधर, बागपत जिले की बड़ौत सीट पर अध्यक्ष प्रत्याशी के तौर पर सपा ने रणधीर प्रधान को उम्मीदवार घोषित कर दिया। यहां दूसरे चरण में चुनाव है और बड़ौत रालोद का गढ़ माना जाता है। इस सीट पर रालोद अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी ही कर रहा था कि सपा ने दांव खेल दिया। इसी जिले की नगर पालिका खेकड़ा में भी यही हुआ। यहां के अध्यक्ष पद के लिए रालोद से रजनी धामा को उम्मीदवार घोषित कर दिया है जबकि सपा ने संगीता धामा को उम्मीदवार घोषित कर दिया। इसी प्रकार सहारनपुर की नगर पंचायत अंबेहटा पीर पर अध्यक्ष पद के लिए पहले रालोद प्रत्याशी रेशमा ने पर्चा भरा तो अंतिम दिन सपा ने इशरत जहां ने भी नामांकन पत्र दाखिल कर दिया। इसके अलावा विभिन्न जिलों में पार्षद एवं सदस्य सीटों पर बंटवारे को लेकर कई अन्य जिलों में हंगामा देखने को मिला। शामली की कांधला नगर पालिका पर सपा ने नजमुल हसन को तथा रालोद से मिर्जा फैसल बेग को उतार दिया। सपा-रालोद के बीच यह हंगामा पश्चिमी उप्र के जिलों में हो रहा था। रालोद का वजूद पश्चिमी उप्र में ज्यादा है। यही कारण है कि रालोद उम्मीदवार पश्चिमी उप्र की निकायों में अपने उम्मीदवार घोषित करने की बात कह रहे हैं। रालोद का मानना है कि यहां सपा को अपने उम्मीदवार घोषित नहीं करने चाहिए थे। हालांकि इसके उलट सपाई कह रहे थे कि जहां रालोद का जोर है वहीं तो सपा भी लड़ेगी ताकि दोनों को लाभ हो सके। सपा के अड़ियल रवैये के चलते गठबंधन में दरार आने लगी। इसी गठबंधन के सहारे रालोद को विधानसभा चुनाव 2022 में पश्चिमी उप्र में आठ सीटें मिलीं थी जो बाद में उपचुनाव होने से नौ में बदल गई थीं। बात मेरठ की कि जाये तो यहां सपा ने अपने विधायक अतुल प्रधान की पत्नी सीमा प्रधान को महापौर पद का प्रत्याशी घोषित किया तो रालोद ने भी अब यहां से अपना उम्मीदवार उतारने का एलान कर दिया।

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बहरहाल, रालोद नेता चौधरी जयंत सिंह के तेवरों को देखते हुए समाजवादी पार्टी ने अब कुछ सीटों से अपने प्रत्याशी हटा जरूर लिए हैं, सपा ने बड़ौत और बागपत नगर पालिका परिषद से अपने प्रत्याशी वापल ले लिए हैं। दूसरी सीटों पर भी समन्वय के प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन दोनों दलों के बीच की रार बहुत ज्यादा कम नहीं हुई है। एक तरफ रालोद, समाजवादी पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी कर रहा है तो दूसरी और पश्चिमी यूपी की चार सीटों पर सपा और बसपा के मुस्लिम चेहरे आपस में टकरा रहे हैं, जहां अल्पसंख्यक वोटरों की प्रभावी संख्या है। अलीगढ़ में तो बसपा ने सपा से ही आए सलमान साहिद पर दांव खेला है। ऐसे में दोनों की टकराहट से वोटों के बंटवारे का खतरा भी हो सकता है जिसका फायदा भाजपा को मिल सकता है। पिछली बार मुरादाबाद में सपा व कांग्रेस दोनों से ही मुस्लिम प्रत्याशी होने का फायदा भाजपा को मिला था। फिरोजाबाद में भी एआईएमआईएम से मजबूत मुस्लिम चेहरे की दावेदारी ने सपा का खेल बिगाड़ दिया था। सपा-बसपा की लड़ाई के बीच सहारनपुर सीट वहां के दो स्थानीय नेताओं के रसूख की भी परीक्षा लेगी। बसपा ने यहां से इमरान मसूद की भाभी को उम्मीदवार बनाया है। 2022 के विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस से सपा में आए इमरान मसूद को न ओहदा मिला था और न ही टिकट। सपा में उनको किनारे लगाने में अहम भूमिका थी स्थानीय विधायक आशु मलिक की। इमरान मसूद अब बसपा में आ चुके हैं। वहीं, सपा ने सहारनपुर से आशु मलिक के भाई नूर हसन मलिक को मेयर का उम्मीदवार बनाया है। पिछली बार बसपा सहारनपुर की सीट महज 10 हजार वोटों से भाजपा से हारी थी। ऐसे में वहां के दो मुस्लिम चेहरों और उनके रहनुमाओं के बीच वर्चस्व की यह जंग दिलचस्प होगी। जिला पंचायत सदस्य के उपचुनाव में सपा में रहते हुए भी इमरान और आशु आपस में टकराए थे, जिसमें आशु मलिक भारी पड़े थे। एक बार फिर दोनों आमने-सामने हैं। कुल मिलाकर निकाय चुनाव को लेकर काफी उम्मीद पाले हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव अपने सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल की नाराजगी और बसपा सुप्रीमो मायावती की मुस्लिम परस्त राजनीति के बीच फंस कर रह गए हैं।

-अजय कुमार

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