Mansoor Ali Khan Pataudi : वेस्टइंडीज के खिलाफ महज 21 साल में संभाली थी टीम की कमान, विदेश में भारत को जिताई पहली सीरीज

Mansoor Ali Khan Pataudi
प्रतिरूप फोटो
ANI
Anoop Prajapati । Jan 5 2025 9:29AM

भारत को विदेश में सीरीज जिताकर इतिहास रचने वाला कप्तान। अपनी कमजोरी को ताकत बनाने वाला कप्तान। विरोधी की आंख में आंख डालकर बात करने वाला कप्तान। आज 5 जनवरी को उसी टाइगर कप्तान का जन्मदिन है। जसका नाम है मंसूर अली खान पटौदी। जिन्हें उनके फैंस ने हमेशा टाइगर पटौदी कहकर बुलाया है।

हमारे देश के क्रिकेट इतिहास में पिता-पुत्र की कई जोड़ियां हुई हैं जिन्होंने मैदान में देश का मान बढ़ाया है। इस सबसे अलग एक जोड़ी तो ऐसी भी है, जिनमें से एक तो इंग्लैंड के लिए खेला और दूसरा भारत का सबसे बेहतरीन कप्तान कहलाया। भारत को विदेश में सीरीज जिताकर इतिहास रचने वाला कप्तान। अपनी कमजोरी को ताकत बनाने वाला कप्तान। विरोधी की आंख में आंख डालकर बात करने वाला कप्तान। आज 5 जनवरी को उसी टाइगर कप्तान का जन्मदिन है। जसका नाम है मंसूर अली खान पटौदी। जिन्हें उनके फैंस ने हमेशा टाइगर पटौदी कहकर बुलाया है।

टाइगर पटौदी का जन्म 5 जनवरी 1941 को भोपाल में हुआ था। मंसूर अली खान पटौदी के नाम क्रिकेट जगत की कई ऐसी बेशुमार उपलब्धियां हैं, जो किसी भी क्रिकेटर का ख्वाब हो सकती हैं। वह भी तब, जब डेब्यू से महज छह महीने बाद ही यह मान लिया गया था कि मंसूर अली खान शायद ही प्रोफेशनल क्रिकेट ही खेल पाएं। दरअसल, 1961 में मंसूर अली खान पटौदी एक कार एक्सीडेंट का शिकार हो गए। उनकी आंखों में शीशे के टुकड़े घुस गए। दूसरी आंख भी बड़ी मुश्किल से बचाई जा सकी। लेकिन सिर्फ यही मुश्किल नहीं थी। सर्जरी के बाद उन्हें दोहरी छवि दिखती थी। टाइगर पटौदी जिंदगी के इस बुरे पड़ाव को भी पार करने में कामयाब रहे और आश्यर्चजनक तौर पर ना सिर्फ नेट्स पर लौटे बल्कि भारतीय टीम में भी जगह बनाने में कामयाब रहे।

भारत के बाहर पहली सीरीज जितवाकर इतिहास रच चुके मंसूर अली खान पटौदी का देश के लिए खेलने का सपना दिसंबर 1961 में पूरा हुआ। जब उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ डेब्यू टेस्ट खेला। डेब्यू के तीन महीने बाद ही उनके करियर में गजब का बदलाव आया और वे भारत के कप्तान बन गए। जब उन्होंने पहली बार भारतीय टीम की कमान संभाली तब उनकी उम्र 21 साल 77 दिन थी। यह उस वक्त सबसे कम उम्र में कप्तानी का विश्व रिकॉर्ड था। बता दें कि मंसूरी अली खान पटौदी को अचानक कप्तान इसलिए बनाया गया था क्योंकि वेस्टइंडीज दौरे पर नियमित कप्तान नारी कॉन्ट्रैक्टर को चोट लग गई थी।

किस्मत के धनी

नवाब पटौदी को कप्तानी भले ही किस्मत से मिली हो, लेकिन उन्होंने इस मौके को यूं भुनाया कि इतिहास रच दिया। उन्होंने स्पिन चौकड़ी को अपना सबसे तगड़ा हथियार बनाया और न्यूजीलैंड में सीरीज फतह कर आए। इसके साथ ही मंसूर अली खान पटौदी ऐसे पहले कप्तान बन गए, जिसने भारत को विदेश में सीरीज जिताई। नवाब पटौदी जूनियर का करियर कुल मिलाकर 46 टेस्ट मैच का रहा, जिनमें से 40 में तो उन्होंने कप्तानी की। पटौदी के पिता इफ्तिखार अली खान पटौदी भी अपने जमाने के मशहूर क्रिकेटर थे। इफ्तिखार अली खान पटौदी जब इंग्लैंड में पढ़ रहे थे, तब भारतीय क्रिकेट टीम नहीं बनी थी। उधर, इफ्तिखार अली को इंग्लैंड की टीम से बुलावा आ गया। इस तरह इफ्तिखार अली खान पटौदी इंग्लैंड के लिए खेलने लगे। उन्होंने इंग्लैंड के लिए खेलते हुए शतक भी लगाया।

एक आंख गंवाकर भी खेले 46 मैच

एक कार एक्सीडेंट में आँख गंवाकर पटौदी पत्थर की आंख लगने की बावजूद वे एक आंख से दुनिया देखते रहे। एक आंख से 46 इंटरनेशनल मैच खेले, जिनमें से 40 टेस्ट मैचों में कप्तानी की। लेकिन वे मरणोपरांत अपनी दूसरी आंख दान कर गए। यह उनकी आखिरी इच्छा थी, जो उनके परिवार के सदस्यों ने पूरी भी की। इस शख्स का जन्म भोपाल में हुआ था।

अक्सर सुर्खियों में रहे

महज 11 साल की उम्र में ही उनके पिता नवाब इफ्तियार अली खान पटौदी का निधन हो गया था। पिता की मृत्यु के बाद मंसूर अली खान नवाब पटौदी के नाम से जाने गए। लेकिन वे अपने क्रिकेट खेलने के अंदाज और जानी-मानी फिल्म अभिनेत्री शर्मिला टैगोर से प्रेम प्रसंग के कारण चर्चाओं में रहते थे। इसके बाद नवाब खानदान की प्रापर्टी को लेकर भी वे अक्सर चर्चाओं में रहे। भोपाल में जन्मे पटौदी 9वें नवाब बने थे।

विरासत में मिली भोपाल की नवाबी

नवाब पटौदी के पिता इफ्तियार अली खान पटौदी हरियाणा के नवाब थे, लेकिन भोपाल की नवाबी उन्हें नाना के कारण प्राप्त हुई। उनके नाना हमीदुल्ला खान भोपाल के अंतिम नवाब थे। आजादी के बाद उनकी मां साजिदा सुल्तान नवाब बनीं और बाद में मंसूर अली खान ने नाना की विरासत संभाली। उनके नाना हमीदुल्ला खान की तीन बेटियां थीं।

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