उत्तर प्रदेश की बदल रही है तसवीर...लेकिन अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी
अब शेयर बाजार में उत्तर प्रदेश के निवेशक छा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में डीमैट अकाउंट का आंकड़ा करीब 12 करोड़ हो चुका है। 23 करोड़ की जनसंख्या वाले राज्य में 12 करोड़ खातों के जरिए शेयर बाजारों में दस्तक देना मामूली बदलाव नहीं है।
इसे बिडंबना नहीं तो क्या कहेंगे कि समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, गंगा-यमुना और घाघरा जैसी सदानीरा नदियों का उपजाऊ मैदानों के बावजूद उत्तर प्रदेश की ख्याति बीमारू यानी रोगी राज्य के रूप में रही। उत्तर प्रदेश राजनीतिक रूप से बेहद सचेत लोगों का भी राज्य रहा है। माना जाता है कि जिस इलाके की जनता राजनीतिक रूप से ज्यादा सचेत होती है, वहां विकास की धारा बहती रहती है। माना तो यह भी जाता है कि प्रभावी राजनीति जिस इलाके का प्रतिनिधित्व करती है, उस इलाके में विकास की गति अपने आप तेज हो जाती है। उत्तर प्रदेश प्रभावी राजनीति का भी केंद्र रहा है। देश को उसने आठ प्रधानमंत्री दिए, जिनमें से छह की जन्मभूमि भी उत्तर प्रदेश की माटी रही है, इसके बावजूद उत्तर प्रदेश अपनी अराजक संस्कृति और भ्रष्टाचारी शासन व्यवस्था के लिए ज्यादा जाना जाता रहा है। लेकिन अब इसी उत्तर प्रदेश की छवि बदलने लगी है। इसका श्रेय निश्चित तौर पर मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सोच को दिया जा सकता है। जिसकी वजह से ना सिर्फ यहां के अराजक माहौल में बदलाव आने लगा है, बल्कि इस राज्य को अब उद्योग और कारोबार के लिए मुफीद माना जाने लगा है।
अस्सी के दशक में जब उत्तर प्रदेश के ही संसदीय नुमाइंदे राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे, तब अर्थशास्त्री आशीष बोस ने बीमारू राज्य की परिकल्पना पेश की थी। बीमार यानी रूग्ण से प्रेरित यह बीमारू शब्द बुनियादी रूप से चार राज्यों बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर रहा था। इन्हीं में से तीन राज्य अलग होकर अब सात राज्य हो गए हैं। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और झारखंड के अपने मूल राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार से अलग होने के बावजूद जितनी तेज तरक्की की उम्मीद की जा रही थी, वैसी नजर नहीं आ रही है। लेकिन उत्तर प्रदेश इनमें से अलग राह पर चलता दिख रहा है। निश्चित तौर पर इसके लिए योगी आदित्यनाथ की कड़क और कुशल शासन व्यवस्था को श्रेय दिया जा सकता है।
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किसी भी राज्य में कारोबार और उद्योग कब पनपता है, जब वहां की कानून-व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त होती है, वहां बुनियादी ढांचा मसलन सड़क, बिजली और पानी की सहूलियत होती है। इसके साथ ही मेडिकल यानी चिकित्सा सुविधा भी बेहतर होनी चाहिए। कुछ साल पहले तक उत्तर प्रदेश में बिजली छोड़ सारे संसाधन थे, लेकिन कानून-व्यवस्था बेहद लचर थी। अराजक व्यक्तियों और समूहों के इशारे पर ही जैसे राज्य की कानून-व्यवस्था चलती थी। राजनीति एक तरह से उनकी पिछलग्गू थी। बिजली राज्य की राजधानी लखनऊ और कुछ-एक वीआईपी माने जाने वाले शहरों में ही होती थी। बाकी समूचा राज्य बिजली की आंख-मिचौनी देखता था। सरकारी दफ्तरों में बाबुओं की मनमानी चलती थी। लेकिन साल 2017 में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने सत्ता संभालते ही सबसे पहले कानून-व्यवस्था की हालत की तरफ ध्यान दिया। ऐसा नहीं कि योगी के प्रयासों से कानून- व्यवस्था के मामले में उत्तर प्रदेश स्वर्ग बन गया है। लेकिन यह भी सच है कि कानून का भय अब अराजक समूहों में आया है। सड़कें दुरुस्त हुईं हैं। हालांकि छोटे इलाकों और गांवों को जोड़ने वाली सड़कों पर अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। बिजली की हालत भी ठीक हुई है। अब समूचे प्रदेश में बिजली है। इसका असर जमीनी स्तर पर दिखने लगा है।
अब शेयर बाजार में उत्तर प्रदेश के निवेशक छा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में डीमैट अकाउंट का आंकड़ा करीब 12 करोड़ हो चुका है। 23 करोड़ की जनसंख्या वाले राज्य में 12 करोड़ खातों के जरिए शेयर बाजारों में दस्तक देना मामूली बदलाव नहीं है। बीते अप्रैल तक के आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में इक्विटी ट्रेंड की वजह से 1.26 लाख नए निवेश जुड़े हैं। दिलचस्प यह है कि यह आंकड़ा शेयर कारोबारियों की राजधानी मुंबई वाले महाराष्ट्र राज्य के मुकाबले ज्यादा हो चुका है। आंकड़ों पर ध्यान दें तो बीते अप्रैल में महाराष्ट्र में जहां 1.18 लाख नए निवेशक ही जुड़े, वहीं उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा करीब 1.26 लाख रहा। राज्य के बदलते बुनियादी ढांचे और बेहतर होती कानून-व्यवस्था का ही असर कहा जाएगा कि बीती फरवरी में हुए निवेशक सम्मेलन में उत्तर प्रदेश को 36 लाख करोड़ से ज्यादा के निवेश प्रस्ताव प्राप्त
हुए।
कभी इलाहाबाद, आगरा, काशी हिंदू विश्वविद्यालय समेत राज्य के तमाम विश्वविद्यालय अराजकता के पर्याय माने जाते थे। हालांकि इनका गौरवशाली अतीत रहा है। भारत के शैक्षिक और सांस्कृतिक परिदृश्य में इन विश्वविद्यालयों का सार्थक हस्तक्षेप रहा है। लेकिन राजनीतिक संस्कृति बदलने से बाद के दिनों में उत्तर प्रदेश शैक्षिक रूप से पिछड़ता जा रहा था। लेकिन अब उत्तर प्रदेश का शैक्षिक परिदृश्य बदलने लगा है। स्कूली स्तर पर भी पढ़ाई की रेल पटरी पर आने लगी है। इसका असर इस साल की नीट की परीक्षाओं के नतीजे पर भी दिखा। इस बार इस परीक्षा में सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश के ही विद्यार्थी कामयाब हुए हैं, जिनकी संख्या करीब 1.39 लाख है, जबकि महाराष्ट्र के 1.31 लाख और राजस्थान के एक लाख से कुछ ही अधिक छात्र सफल रहे। योगी राज के छह सालों में राज्य के प्राथमिक विद्यालयों में 60 लाख विद्यार्थियों की संख्या बढ़ी है।
उत्तर प्रदेश में पहले गिने-चुने मेडिकल कॉलेज ही थे। लेकिन योगी शासन में एक जिला-एक मेडिकल कॉलेज की परिकल्पना की गई और वह अब साकार होती नजर आ रही है। पूर्वी उत्तर प्रदेश, विशेषकर गोरखपुर के आसपास हर साल दिमागी बुखार से सैकड़ों बच्चों की हृदयद्रावक मौत होती थी। लेकिन योगी शासन में इस पर काबू पाने की कोशिशें तेज हुईं और अब स्थिति बेहद काबू में है। आज हालात यह है कि दिमागी बुखार पर 98 फीसदी तक काबू करके बहुमूल्य जीवन बचाने में सफलता हासिल की जा चुकी है।
उत्तर प्रदेश गंगा-यमुना और घाघरा जैसी सदानीरा नदियों का मैदान है। ये नदियां राज्य की जीवन रेखा ही नहीं, खेती-किसानी का सांस्कृतिक जरिया भी हैं। जनसंख्या घनत्व ज्यादा और प्रति व्यक्ति जोत कम होने के बावजूद आज स्थिति यह है कि राज्य देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन 20 फीसद अकेले कर रहा है। इसकी बड़ी वजह है, राज्य में कृषि उपज के मूल्यों में डेढ़ गुना की बढ़ोतरी। 2017 में योगी सरकार के शासन में आने के बाद एमएसपी के तहत किसानों की कृषि लागत का डेढ़ गुना रकम दिया जा रहा है। राज्य की खेती-किसानी सदियों से मशहूर रही है। विशेषकर गन्ना की खेती के मामले में राज्य एक दौर में शीर्ष पर रहता था। हालांकि बाद के दिनों में हालात बदलते गए। लेकिन इस मामले में राज्य ने एक बार फिर बाजी मारी है। इसकी वजह है कि राज्य में गन्ना खरीद नीतियों में बदलाव लाया गया। जिसका फायदा किसानों को मिल रहा है। यही वजह है कि राज्य देश के कुल गन्ने का 44.50 प्रतिशत की पैदावार कर रहा है। इस मामले में भी महाराष्ट्र 25.45 प्रतिशत पैदावार के चलते दूसरे नंबर पर जा पहुंचा है।
बुनियादी ढांचा के मामले में भी पिछले छह सालों में राज्य ने काफी कुछ हासिल किया है। राज्य में पांच एक्सप्रेसवे बन चुके हैं। वहीं 13 एक्सप्रेसवे का निर्माण जारी है। साल 2017 में राज्य में सिर्फ दो लखनऊ और वाराणसी हवाई अड्डे ही संचालित हो रहे थे, लेकिन आज राज्य के नौ शहर हवाई मार्ग से जुड़ गए हैं। केंद्र सरकार की योजना के अनुसार मौजूदा वर्ष यानी साल 2023-24 के आखिर तक राज्य में पांच अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों को चालू करने की तैयारी है। नोएडा का जेवर हवाई अड्डा भी तेजी से बनाया जा रहा है। हालांकि इसे एशिया के सबसे बड़े हवाई अड्डे के तौर पर विकसित किया जा रहा है। इसी तरह अयोध्या धाम में भी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बन रहा है। केंद्र सरकार की कोशिशों और योगी सरकार के सहयोग से देश का नंबर वन वाटरवे वाराणसी से पश्चिम बंगाल के हल्दिया के बीच में चालू
हो चुका है।
उत्तर प्रदेश अयोध्या, काशी, प्रयाग, चित्रकूट, नैमिषारण्य जैसे तमाम तीर्थों और सांस्कृतिक पर्यटन केंद्रों का भी राज्य है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर काशी का उद्धार हो चुका है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर और नई काशी आज दुनिया को लुभा रही है। इसका असर वाराणसी में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार बढ़ने के रूप में दिख रहा है। काशी देश के सर्वाधिक श्रद्धालुओं वाला शहर बनता जा रहा है। जिस तरह से अयोध्या का विकास हो रहा है, कुछ साल बाद वहां भी दुनियाभर के सैलानियों की आवक बढ़ेगी।
इसे योगी मॉडल की कामयाबी ही कह सकते हैं कि छह साल में राज्य की जीडीपी व प्रति व्यक्ति आय दोगुना हो चुकी है। एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले पांच साल में भारत को पांच खरब डॉलर के साथ दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने पर जोर दे रहे हैं, वहीं योगी शासन में साल 2027 तक राज्य को एक खरब की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इसका यह मतलब नहीं कि सबकुछ ठीक ही है। शासन व्यवस्था में लाल फीताशाही, गांवों में अबाध पानी और बिजली आपूर्ति आदि व्यवस्था को बनाए रखना अब भी बड़ी चुनौती है। लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था आगे बढ़ेगी, इन चुनौतियों पर काबू पाया जाएगा। वैसे भी शासन की संस्कृति जल्द नहीं बदलती। उसे लगातार निगरानी और कड़ी व्यवस्था से ही बदला जा सकता है।
-उमेश चतुर्वेदी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं
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