लाल कृष्ण अडवाणी ने बदला भारत की राजनीति का कलेवर
अडवाणी उस समय देश के सार्वजनिक संवाद की दिशा और धारा बदलने में सफल हुए जब हिन्दुओं पर हमला बोलना, उनकी आस्था की आलोचना करना ही सेक्युलर वाद समझा जाता था।
लाल कृष्ण अडवाणी को भारत रत्न मिलना वास्तव में सम्मान का ही सम्मान है, दो से शिखर तक ले जाने वाले भाजपा के राम भक्त सेनानी नेता अडवाणी ने राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को स्थापित किया जब उसके बारे में कहा जाता था की यह तो एके हंगल जैसे साइड करैक्टर की तरह हो सकती है मुख्य धारा में तो कांग्रेस और सेकुलर दल रहेंगे। अडवाणी उस समय देश के सार्वजनिक संवाद की दिशा और धारा बदलने में सफल हुए जब हिन्दुओं पर हमला बोलना, उनकी आस्था की आलोचना करना ही सेक्युलर वाद समझा जाता था। किसी ने उनसे पहले छद्म सेक्युलर वाद की चर्चा प्रारम्भ करने का साहस नहीं दिखाया था। उन्होंने विश्वास पैदा किया कि हिंदुत्व पर आधारित राजनीतिक दल देश में सबके साथ समन्वा कर सकती है- जब उनके नाम के लिए प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी स्वाभाविक मानी जाती थी उन्होंने भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अटल जी को प्रधानमंत्री पद हेतु घोषित कर सबको अचंभित कर दिया था।
उनके जीवन की सबसे बड़ी यात्रा सोमनाथ से अयोध्या की यात्रा रही जिसमें मैं उनके साथ रथ में श्री नरेंद्र मोदी जीके साथ बराबर बना रहा। जहाँ उनकी रथ यात्रा के पहुँचने का समय रात्रि नौ बजे होता था, मार्ग में अत्यधिक उत्साह और भीड़ के कारण इतनी देरी होती थी कि हम रात्रि 1-2 बजे पहुँच पाते थे, फिर भी हज़ारों लोग उनको सुनने के लिए टिके रहते थे। उनकी रथ की पूजा होती थी, उनके टोयोटा रथ के टायरों की पूजा होती थी, उनको हिन्दू पुनर्जागरण का अग्रदूत माना जाता था।
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अडवाणी जी सहृदय और सदैव कार्यकर्ताओं के स्नेही रहे। जब जब नरेंद्र भाई मोदी के लिए संगठन में संकट आया उन्होंने अटलजी से आग्रहपूर्वक उनका साथ दिया.. नरेंद्र भाई ने भी अडवाणी जी के प्रति अपना आदर भाव सदैव बनाये रखा।
उन के साथ लम्बे समय तक अंतरंग कार्य करते हुए उनके शालीन, शांत, कभी न उग्र होने वाले स्वाभा से मैं सुपरिचित हूँ। उन्होंने सिंधु दर्शन कार्यक्रम के लिए पूरा सहयोग और आशीर्वाद दिया जिससे लड़काः की रक्षा हो सकी और वहां के आर्थिक विकास के लिए असाधारण सहा यता मिली।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निष्ठावान स्वयंसेवक हैं। उन्होंने भारत रत्न की स्वीकारोक्ति का जो वक्तव्य दिया है उसमें परम पूज्य श्री गुरूजी के उस वाक्य का उद्धरण दिया है जिसमें इदं न मम इदं राष्ट्राय स्वाहा कह कर सब कुछ राष्ट्रार्पित करने की बात कही गयी थी। पंडित दीन दयाल उपाध्याय के प्रति उनकी अनन्य भक्ति इतनी है कि उनको एकात्म मानववाद का व्याख्याता भी कहा गया। आर्गेनाइज़र साप्ताहिक में फ़िल्म समीक्षक तथा जब उसके संपादक श्री के आर मलकानी अमरीका यात्रा पर गए तो उसका कार्यभार सँभालने वाले अडवाणी जी की फिल्मों में रूचि जगत प्रसिद्ध है। हर अच्छी फिल्म का उनके द्वारा अक्सर दिल्ली के महादेव रोड फिल्म सभागार में प्रदर्शन होता ही था। उनके साथ मुझे कई फिल्में देखने का अवसर मिला। जब वे देहरादून आये तो मेरी माताजी से मिलने हमारे एक अत्यंत तंग गली के, मकान में आये थे तो पूरे नगर में आश्चर्य हुआ सुरक्षा कर्मी बेहद परेशान भी हुए। उसी रात्रि हम सब देहरादून के एक थियटर में फिल्म देखने गए।
उनके जीवन में बहुत दुख वेदनाएँ आयीं। कई अत्यंत कष्टकारी प्रकरण बने, जिन्होंने उनको बहुत व्यथित किया। पर कभी अपने दुःख, वेदना को उन्होंने व्यक्त नहीं किया।
अडवाणी जी शाकाहारी हैं, नियम के पक्के, बहुत सीमित और काम खाने वाले। उनको चोकोलेट पसंद है और नवीन पुस्तकों का उनके पास भंडार रहता है। उनके ब्लॉग बहुत लोकप्रिय रहे और उनकी आत्मकथा ने रेकार्ड तोड़ बिक्री की थी। उनके साथ मेरा पहला साक्षात्कार 1979 में पाञ्चजन्य के लिए किया था- और अनेकानेक साक्षात्कारों का संग्रह दिल्ली की प्रकाशक किताबघर ने छापा है। वे बहुत भावुक हैं और जरा सी भावनाप्रधान बात पर उनकी आंखे नम हो जाती हैं। उन्होंने कंभी अपने बच्चों को राजनीति में आने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया। उनकी बेटी प्रतिभा में उनके प्राण हैं और उनकी सहधर्मिणी आदरणीय कमला जी अडवाणी जी को अपना "राम" मानती थीं।
अडवाणी जी दीर्घायु हों और सच्चे भारत रत्न की भांति सबको राष्ट्रीयता की प्रेरणा देते रहे यही शुभ कामना है।
- तरुण विजय
पूर्व सांसद, पूर्व संपादक पाञ्चजन्य
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