Tamil Nadu के परिणामों ने भाजपा को निराश किया है या भविष्य के लिए नई उम्मीद जगाई है?

K Annamalai
ANI

अन्नामलाई ने जब राज्यव्यापी यात्रा निकाली थी तो उनको भारी जन समर्थन मिला था। यही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी रैलियों में भी खूब भीड़ उमड़ रही थी। प्रधानमंत्री ने तमिलनाडु में कई रोड़ शो भी किये जिसमें उमड़ा जनसैलाब भाजपा की उम्मीदों को लगातार बढ़ा रहा था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनावों में इस बार दक्षिणी राज्यों खासकर तमिलनाडु और केरल में काफी चुनाव प्रचार किया था। यही नहीं, चुनावों से पहले भी वह जिस तरह लगातार इन राज्यों का दौरा कर रहे थे उसके चलते भाजपा आलाकमान को विश्वास था कि इस बार दक्षिण में भी खूब कमल खिलेंगे। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। हालांकि केरल में त्रिशूर सीट जीत कर भाजपा ने पहली बार अपना खाता खोल लिया लेकिन तमिलनाडु में वह इस बार भी खाली हाथ ही रही। तमिलनाडु में भाजपा का जो हश्र हुआ है उसके चलते अब पार्टी में अंदरूनी घमासान भी देखने को मिल रहा है। वैसे चुनावों के समय ही यह दिख रहा था कि वहां द्रमुक के नेतृत्व वाला गठबंधन ही सबसे आगे है लेकिन भाजपा के इतने बुरे हाल की कल्पना किसी ने नहीं की थी।

तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष अन्नामलाई ने जब राज्यव्यापी यात्रा निकाली थी तो उनको भारी जन समर्थन मिला था। यही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी रैलियों में भी खूब भीड़ उमड़ रही थी। प्रधानमंत्री ने तमिलनाडु में कई रोड़ शो भी किये जिसमें उमड़ा जनसैलाब भाजपा की उम्मीदों को लगातार बढ़ा रहा था। भाजपा ने इस बार चुनावों में अपने कई दिग्गजों को उतार दिया था और उन्होंने जिस मेहनत के साथ चुनाव प्रचार किया उससे लग रहा था कि भाजपा चार या पांच सीटों पर जीत सकती है। लेकिन परिणाम भाजपा के लिए बेहद निराशाजनक रहे। हम आपको बता दें कि एक लोकसभा सीट नागापटि्टनम में तो भाजपा चौथे स्थान पर जा पहुँची। साथ ही भाजपा जिन 23 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ी थी उसमें से उसने 11 पर अपनी जमानत गंवा दी। यही नहीं, भाजपा के सहयोगी दलों- आईजेके, पीएमके, तमिल मनीला कांग्रेस (टीएमसी) और एएमएमके ने भी दस सीटों पर जपनी जमानत गंवा दी। यह परिणाम दर्शाता है कि भाजपा और उसके गठबंधन दलों का सारा चुनाव प्रचार हवा-हवाई ही था, जमीन पर कुछ था ही नहीं।

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चुनाव परिणामों के बाद सवाल उठ रहा है कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अन्नामलाई का अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन तोड़ना और अकेले चुनाव लड़ने का फैसला कहीं गलत तो नहीं था? इस सवाल को लेकर प्रदेश भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि अन्नामलाई ने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को गुमराह किया। इन नेताओं का कहना है कि अगर अन्नाद्रमुक के साथ चुनाव लड़े होते तो स्थिति कुछ और होती। इन नेताओं का कहना है कि यदि अन्नाद्रमुक साथ होती तो तमिलनाडु में भाजपा का उभार होता तथा भाजपा के पास इस दक्षिणी राज्य से भी लोकसभा सीटें होतीं जिनकी आज बेहद जरूरत है। इन नेताओं का कहना है कि अन्नाद्रमुक से संबंध तोड़ने का फैसला हमारे लिये घातक सिद्ध हुआ है। भाजपा प्रदेश बौद्धिक प्रकोष्ठ के प्रमुख कल्याण रमन ने तो एक्स पर पोस्ट करके अन्नामलाई पर सीधा-सीधा आरोप भी लगा दिया है कि उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व को सही बात नहीं बताई। उनका यह भी कहना है कि भाजपा ने चुनाव का संचालन भी ठीक से नहीं किया और पार्टी का वार रूम सिर्फ अन्नामलाई के इर्दगिर्द माहौल बनाने में लगा हुआ था।

दूसरी ओर, अन्नामलाई की बात करें तो वह लोकसभा चुनाव परिणाम के बारे में यह तो मान रहे हैं कि भाजपा को उम्मीद के मुताबिक मत नहीं मिले लेकिन वह यह भी कह रहे हैं कि अन्नाद्रमुक को राज्य की जनता ने खारिज कर दिया है। उन्होंने 2026 में तमिलनाडु विधानसभा चुनावों के दौरान भी अन्नाद्रमुक से किसी प्रकार के गठबंधन की संभावना को खारिज कर दिया है। वह कह रहे हैं कि हमसे जहां गलतियां हुईं उसकी समीक्षा की जायेगी और यह देखा जायेगा कि पार्टी को कैसे नये सिरे से खड़ा किया जा सकता है। वह अब भी इस बात के पक्षधर हैं कि भाजपा को राज्य में अपने बलबूते ही पैरों पर खड़ा होना चाहिए।

हम आपको याद दिला दें कि तमाम एग्जिट पोलों ने भविष्यवाणी की थी कि भाजपा राज्य में कम से कम 2-3 सीटें जीतकर तमिलनाडु के राजनीतिक परिदृश्य में प्रवेश करेगी। लेकिन चुनाव परिणामों ने दर्शाया है कि द्रविड़ राजनीति वाले राज्य में लोकसभा सीट जीतने का भाजपा का इंतजार और लंबा हो गया है। भाजपा ने पूर्व आईपीएस अधिकारी अन्नामलाई के जरिये तमिलनाडु में अपना आधार बढ़ाने की जो रणनीति बनाई थी वह कामयाब नहीं हो पाई है। अन्नामलाई तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव हार गये थे और अब वह कोयम्बटूर से लोकसभा चुनाव भी हार गये हैं। हम आपको बता दें कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य भर में 23 उम्मीदवार उतारे थे। पार्टी ने 19 निर्वाचन क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारे थे और शेष चार पर अपने सहयोगियों को कमल के निशान के तहत चुनाव लड़ाया था। लेकिन पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। हालाँकि, पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनावों में मिले वोट शेयर 3.38 प्रतिशत को इस बार बढ़ाकर 11.24 प्रतिशत कर लिया है जोकि कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन है। कांग्रेस का इस चुनाव में वोट प्रतिशत 10.67 रहा है। माना जा रहा है वोट शेयर में यह उल्लेखनीय वृद्धि 2026 के तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में भाजपा की मदद कर सकती है। इसके अलावा इस चुनाव की खास बात यह है कि 10 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा ने अन्नाद्रमुक को तीसरे स्थान पर धकेल दिया है और खुद उपविजेता बनकर उभरी है।

हम आपको यह भी याद दिला दें कि 2021 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा का अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन था। उस दौरान भाजपा को चार विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी। भाजपा का 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान भी जयललिता के नेतृत्व वाले अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन था। उस दौरान 39 लोकसभा सीटों में से अन्नाद्रमुक को 37 और भाजपा तथा उसकी सहयोगी पीएमके को दो सीटें हासिल हुई थीं। बहरहाल, अब देखना होगा कि जब भाजपा तमिलनाडु में पार्टी के प्रदर्शन की समीक्षा करेगी तो क्या अन्नामलाई के एकला चलो वाले फैसले के साथ खड़ी रहेगी या गठबंधन के जरिये राज्य में अपनी राजनीतिक यात्रा को आगे बढ़ायेगी।

-नीरज कुमार दुबे

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