दिल्ली के जनादेश की गूंज बहुत दूर तक सुनाई देगी, दांव पर केजरीवाल और राहुल गांधी की प्रतिष्ठा

Rahul Gandhi Arvind Kejriwal
ANI
संतोष पाठक । Feb 4 2025 12:31PM

दिल्ली में एक तरफ आम आदमी पार्टी है, जो वर्ष 2013, 2015 और 2020 के बाद अब वर्ष 2025 में लगातार चौथी बार दिल्ली में सरकार बनाने के लिए चुनाव लड़ रही है। यह चुनाव आम आदमी पार्टी से ज्यादा उनके नेता अरविंद केजरीवाल के लिए महत्वपूर्ण हो गया है।

देश की राजधानी दिल्ली में विधानसभा की सभी 70 सीटों पर 5 फरवरी को वोट डाले जाएंगे। बुधवार, 5 फरवरी को दिल्ली के डेढ़ करोड़ से ज्यादा मतदाता, अपने-अपने वोट के जरिए दिल्ली की अगली सरकार को चुनेंगे। यह फैसला करेंगे कि वह दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री किस राजनीतिक दल से बनाने जा रहा है। दिल्ली के मतदाताओं ने किसे जनादेश दिया है,यह खुलासा तो 8 फरवरी को मतगणना के बाद ही हो पाएगा। लेकिन एक बात बिल्कुल साफ है कि देश की राजधानी दिल्ली से निकले जनादेश की गूंज बहुत दूर तक सुनाई देगी।

कहने को तो, यह भी कहा जा सकता है कि दिल्ली एक पूर्ण राज्य भी नहीं है और केवल 70 विधायकों वाली विधानसभा का असर राष्ट्रीय राजनीति पर भला कैसे पड़ सकता है लेकिन यह तर्क अपने आप में पूरी तरह से गलत और बेमानी है। दिल्ली में वैसे तो मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी बनाम भारतीय जनता पार्टी का ही माना जा रहा है। लेकिन अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस ने कई विधानसभा सीटों पर चुनावी लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है। इंडिया गठबंधन के बिखरने की आशंका से डरे हुए कांग्रेस आलाकमान ने चुनाव प्रचार अभियान के शुरुआती दौर में थोड़ी हिचक जरूर दिखाई। लेकिन बाद में राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे से लेकर कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं ने जिस अंदाज में चुनावी रैलियां की, रोड शो किए,उसने दिल्ली की चुनावी लड़ाई को काफी दिलचस्प बना दिया है।

इसे भी पढ़ें: Chai Par Sameeksha: मध्यम वर्ग और गरीबों पर प्रसन्न हुईं माँ लक्ष्मी, क्या अब सब जगह खिल जायेगा कमल

दिल्ली में एक तरफ आम आदमी पार्टी है, जो वर्ष 2013, 2015 और 2020 के बाद अब वर्ष 2025 में लगातार चौथी बार दिल्ली में सरकार बनाने के लिए चुनाव लड़ रही है। यह चुनाव आम आदमी पार्टी से ज्यादा उनके नेता अरविंद केजरीवाल के लिए महत्वपूर्ण हो गया है। क्योंकि दिल्ली की हार अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर देगा और पार्टी के अंदर भी कई तरह के सवाल उठने लगेंगे। वहीं, दूसरी तरफ भाजपा है जो देश की राजधानी दिल्ली में 27 साल के अपने वनवास को खत्म करना चाहती है। इससे पहले भाजपा दिल्ली में 1993 में सत्ता में आई थी। वर्ष 1993 में चुनाव जीतकर भाजपा ने मदन लाल खुराना को अपना मुख्यमंत्री बनाया था। जैन हवाला डायरी में नाम आने के कारण, खुराना को इस्तीफा देना पड़ा और साहिब सिंह वर्मा दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। लेकिन चुनाव से कुछ महीने पहले भाजपा आलाकमान ने उन्हें हटाकर सुषमा स्वराज को दिल्ली का मुख्यमंत्री बना दिया। हालांकि वह भी दिल्ली में भाजपा को जीत नहीं दिला पाई और 1998 में कांग्रेस से हार कर पार्टी को सत्ता गंवानी पड़ गई। दिल्ली के विधानसभा चुनाव में भाजपा को पहले कांग्रेस ने लगातार तीन बार हराया और उसके बाद आप भी लगातार 3 चुनाव हरा चुकी है। दिल्ली की चुनावी रेस में तीसरे नंबर की पार्टी माने जाने वाली कांग्रेस इस बार सरकार बनाने से ज्यादा किंग मेकर के रूप में उभरना चाहती है। पिछले दो विधानसभा चुनावों में एक भी सीट नहीं जीत पाने वाली कांग्रेस के लिए दिल्ली का यह चुनाव राजनीतिक अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण चुनाव माना जा रहा है।

अगर केजरीवाल लगातार चौथी बार विधानसभा का चुनाव जीत जाते हैं तो फिर वे राष्ट्रीय नेता के तौर पर देश की राजनीति में स्थापित हो जाएंगे। उनकी मजबूती राष्ट्रीय स्तर पर सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन के साथ ही विपक्षी इंडिया गठबंधन के लिए भी खतरे की घंटी होगी। वहीं अगर कांग्रेस इस चुनाव में किंग मेकर के रूप में उभर कर दिल्ली की सत्ता से आम आदमी पार्टी को बाहर कर देती है तो राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस मजबूत होकर उभरेगी। उसके बाद मजबूरी में आम आदमी पार्टी को दिल्ली सहित कई राज्यों में झुककर कांग्रेस से समझौता करना पड़ेगा। कांग्रेस की मजबूती राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी इंडिया गठबंधन को और ज्यादा मजबूत बनाती हुई नजर आएगी।

-संतोष पाठक

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़