कश्मीरी की सोच बताएंगे विधानसभा चुनाव

Jammu and Kashmir Assembly Elections
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अशोक मधुप । Sep 11 2024 4:20PM

जम्मू-कश्मीर में कुल 114 विधानसभा सीटें हैं लेकिन राज्य में विधानसभा सीटों के डिलिमिटेशन के बाद चुनाव केवल 90 सीटों पर ही होंगे। इसकी भी वजह है कि 24 सीटें पीओके यानि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लिए हैं।

जम्मू-कश्मीर विधानसभा लिए 18 सितंबर से एक अक्टूबर 2024 तक तीन चरणों में चुनाव होने हैं। नतीजे आठ अक्टूबर 2024 को घोषित किए जाएंगे। इन चुनाव के परिणाम बताएंगे कि कश्मीर की जनता क्या चाहती है। आर्टिकल 370 हटने के बाद जम्मू–कश्मीर में बडी तादाद में विकास हुआ। शांति लौटी। रोज की होने वाली पत्थरबाजी से जम्मू−कश्मीर की मुक्ति मिली। सिनेमा हाल खुल गए। पर्यटक आने लगे। मुहर्रम के जुलूस निकलने लगे। कश्मीर में बहुत कुछ बदल गया है, इसके बावजूद देखना यह है कि कश्मीर का मतदाता क्या  इस विकास को पसंद करता है,या उसे मजहबी कट्टरता ही मंजूर है।  

जम्मू-कश्मीर में कुल 114 विधानसभा सीटें हैं लेकिन राज्य में विधानसभा सीटों के डिलिमिटेशन के बाद चुनाव केवल 90 सीटों पर ही होंगे। इसकी भी वजह है कि 24 सीटें पीओके यानि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लिए हैं। राजनीतिक और प्रशासनिक परिवर्तनों के कारण इनमें से केवल 90 सीटों के लिए चुनाव होना तय है। वर्ष 2019 में जब जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के जरिए जब आर्टिकल 370 को हटाया गया तो राज्य में चुनावी सीटों की सीमाओं को फिर से निर्धारित करने के लिए परिसीमन प्रक्रिया शुरू की। मार्च 2020 में एक परिसीमन आयोग की स्थापना की गई। इसकी अंतिम रिपोर्ट मई 2022 में जारी की गई। इस रिपोर्ट ने विधानसभा सीटों की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 कर दी। इसमें छह सीटें जम्मू और एक कश्मीर में बढ़ी है।114 सीटों में 24 सीटें पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के क्षेत्रों के लिए आरक्षित हैं, इसका अर्थ है कि उन पर चुनाव नहीं लड़ा जा सकता है, इसलिए, चुनाव के लिए उपलब्ध सीटों की प्रभावी संख्या 90 है, जम्मू संभाग में 43 और कश्मीर संभाग में 47, राज्य का विशेष दर्जा खत्म होने के बाद यहां पहली बार विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं।

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राज्य में पिछले विधानसभा चुनाव दस साल पहले नवंबर-दिसंबर 2014 में हुए थे। चुनाव के बाद जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन ने राज्य सरकार बनाई। इसमें मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद का सात जनवरी 2016 को निधन हो गया। राज्यपाल शासन लगा पर कम समय के लिए लगा। फिर महबूबा मुफ्ती ने वहां मुख्यमंत्रेी पद के लिए रूप में शपथ ली। पिछली राज्य सरकार से जून 2018 में भाजपा ने पीडीपी के नेतृत्व वाली सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू हो गया। नवंबर 2018 में, जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने राज्य विधानसभा भंग कर दी। 20 दिसंबर 2018 को राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।

भाजपा की ओर से हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी घोषणापत्र जारी किया। इसमें आतंकवाद के सफाए और हिंदू मंदिरों और धार्मिक स्थलों के पुनर्निर्माण से लेकर कश्मीरी पंडितों की सुरक्षित वापसी और पुनर्वास तक, भाजपा ने कई प्रमुख वादे किए हैं। अमित शाह ने कहा कि यह क्षेत्र में विकास, सुरक्षा और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए पार्टी के वादों और योजनाओं के अनुरूप है।

नए जम्मू और कश्मीर' के लिए 25 वादों में से, भाजपा ने 'जम्मू और कश्मीर को राष्ट्र के विकास और प्रगति में अग्रणी बनाने' के लिए आतंकवाद और अलगाववाद को खत्म करने की कसम खाई। कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन ने जम्मू-कश्मीर को फिर से राज्य का दर्जा देने और अनुच्छेद 370 को हटाने से पहले की राजनीतिक स्थिति बहाल करने का भी वादा किया है। इस बीच नेशनल कॉन्फ्रेंस ने शंकराचार्य पहाड़ी का नाम बदलकर तख्त-ए-सुलेमान और हरि पर्वत का नाम बदलकर कोह-ए-मरान करने की बात कही है। इसे कश्मीर की मुस्लिम बहुल आबादी की भावनाओं को भुनाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।

जम्मू-कश्मीर के चुनाव के विभिन्न दलों के स्थानीय नेता तो चुनाव प्रचार में उतर ही चुके हैं। बड़ी पार्टियों के राष्ट्रीय नेताओं की भी सभांए शुरू हो गई हैं। जनसंपर्क अभियान चल रहा है। रोड शो निकाले जा रहे हैं। घर-घर जाकर नेता लोगों से वोट मांग रहे हैं। इस बार का विधानसभा चुनाव इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि कश्मीर घाटी में परिवारवादी दलों के दिन अब खत्म नजर आ रहे हैं। पिछले पांच वर्षों में जम्मू-कश्मीर के बुनियादी ढांचे का इस तरह विकास किया गया है कि पिछले दिनों श्रीनगर में जी-20 देशों की बैठक शांतिपूर्वक संपन्न हुई। इस साल अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर मुख्य कार्यक्रम भी श्रीनगर में ही आयोजित किया गया। इसमें स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाग लिया।

हालात तो ये बता रहे हैं कि कश्मीर बदल रहा है किंतु जम्मू-कश्मीर की बारामुला सीट लोकसभा सीट से आतंकवादियों को फंडिग करने के आरोप में जेल में बंद निर्दलीय उम्मीदवार अब्दुल रशीद शेख़ की जीत कुछ और ही इशारा कर रही है। उन्होंने जेल में रहते हुए जम्मू कश्मीर नेशनल कॉन्फ़्रेंस उमर अब्दुल्ला को दो लाख से भी ज़्यादा वोटों से शिकस्त दी है। बारामुला सीट पर रशीद को चार लाख 72 हज़ार वोट मिले जबकि उमर अब्दुल्ला को दो लाख 68 हज़ार वोट मिले। तीसरे स्थान पर रहे जम्मू-कश्मीर पीपल्स कॉन्फ़्रेंस के सज्जाद लोन। उन्हें एक लाख 73 हज़ार वोट मिले। अब्दुल रशीद शेख़ के स्थानीय समर्थक अब्दुल माजिद इस जीत पर बीबीसी से कहते हैं कि साल 2019 के बाद जो कुछ भी कश्मीर में हुआ, इंजीनियर रशीद की जीत उसी बात का जवाब है। उनका कहना था कि कश्मीर के युवाओं ने जिस तरह इंजीनियर रशीद का समर्थन किया है, वो इस बात को दर्शाता है कि नई पीढ़ी नए चेहरों को ढूंढ रही है और पारंपरिक राजनीति से तंग आ चुकी हैं। इंजीनियर रशीद को 'आतंकवाद की फ़ंडिंग' के आरोप में यूएपीए के तहत साल 2019 में गिरफ़्तार किया गया था और इस समय वो दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद हैं। रशीद अवामी इत्तेहाद पार्टी के संस्थापकों में से एक हैं1 2019 में भी उन्होंने बारामूला से पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था और तीसरे नंबर पर रहे थे। इस बार उन्होंने बतौर स्वतंत्र उम्मीदवार चुनाव लड़ा था। जेल जाने से पहले इंजीनियर रशीद शांतिपूर्ण तरीक़े से कश्मीर समस्या को हल करने की वकालत करते रहे हैं। इंजीनियर रशीद जम्मू कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने के सख़्त ख़िलाफ़ थे और इस मुद्दे को लेकर वह सड़कों पर भी उतरे थे। उन्होंने इसके विरोध में कई धरने भी दिए हैं। सरकार का दावा है कि 370 हटाने के बाद कश्मीर विकास कि राह पर आगे बढ़ रहा है और जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा भी बार-बार 'नए कश्मीर' की बात कर रहे हैं। लेकिन कश्मीर में कुछ लोग इसे 'जबरन ख़ामोशी' भी कहते हैं। उनका आरोप है कि किसी को खुलकर बात करने नहीं दी जाती है।

इंजीनियर रशीद को चुनाव प्रचार के लिए जमानत मिल गई है। देखिए क्या होता है। अमेरिका और मित्र देशों ने 20 साल अफगानिस्तान को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए जमकर निवेश किया था, किंतु एक झटके में वह इस्लाम के रास्ते पर चला गया। यही डर है। अभी तो कश्मीर में फौज है। देखना यह है कि बिना फौज के भी कश्मीर का रूख ये ही रहता है, या वह फिर पुराने आतंकवाद के रास्ते पर लौटता है। हालांकि हम भारतीय आशावादी है। आशा करते हैं कि सब ठीक होगा। कश्मीरी नागरिक और युवा नए कश्मीर, विकसित कश्मीर को स्वीकार कर विकास का रास्ता अपनाएगें।

- अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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