खुल्लम खुल्ला सर तन से जुदा का नारा लगाने वालों को बरी करने से अच्छा संदेश नहीं गया है

gauhar chisti
Prabhasakshi

इन लोगों ने जो विवादास्पद नारे लगाये थे और अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया था उसके वीडियो और ऑडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गये थे। उस समय दरगाह पुलिस थाने के एक कांस्टेबल द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी को देखेंगे तो पता चलेगा कि आरोप गंभीर थे।

राजस्थान में अजमेर की एक अदालत ने 2022 में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के दरवाजे के सामने सर तन से जुदा के विवादास्पद नारे लगाने के आरोपी सभी छह लोगों को बरी कर दिया है। इसके पहले अकबरुद्दीन ओवैसी 15 मिनट के लिए पुलिस हटाने पर हिंदुओं को अपनी हिम्मत दिखाने जैसा बयान देने के मामले में बरी हो चुके हैं। ऐसे ही कई और वाकये भी हैं जिन पर आये अदालती फैसलों से सवाल उठता है कि क्या यह भड़काऊ बयान अपराध की श्रेणी में नहीं आते हैं? जहां तक अजमेर दरगाह के दरवाजे पर लगाये गये विवादास्पद नारों की बात है तो उसके वीडियो आज भी सोशल मीडिया पर मौजूद हैं इसलिए सवाल उठता है कि आखिर क्यों और किस आधार पर आरोपियों को बरी कर दिया गया?

देखा जाये तो राजस्थान की पिछली अशोक गहलोत सरकार की तुष्टिकरण की नीति के चलते राज्य में कई बार हालात खराब हुए लेकिन फिर भी तत्कालीन सरकार अपनी नीति से डिगी नहीं थी। यह साफ प्रदर्शित हो रहा है कि सर तन से जुदा के खुल्लम खुल्ला नारे लगाने वाले सभी आरोपी इसलिए बरी हो गये क्योंकि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के शासनकाल में मामले की जांच ठीक से नहीं की गयी और संभवतः आरोप पत्र में खामियां रहीं। राजस्थान की वर्तमान सरकार को इस मामले की नई सिरे से जांच करनी चाहिए और यह पता लगाना चाहिए कि किसके आदेश पर जांच प्रभावित की गयी और अदालत के समक्ष सभी सबूत नहीं रखे गये थे?

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हम आपको याद दिला दें कि साल 2022 में अजमेर दरगाह के मुख्य द्वार पर 17 जून को भीड़ के सामने सर तन से जुदा का नारा अजमेर दरगाह के खादिम गौहर चिश्ती ने लगाया था। विवाद खड़ा हुआ तो वह हैदराबाद भाग गया था। बाद में उसे गिरफ्तार कर राजस्थान लाया गया था। दरगाह के खादिम गौहर चिश्ती पर आरोप था कि अजमेर दरगाह के मुख्य द्वार, जिसे निजाम गेट कहा जाता है, पर 17 जून को नुपूर शर्मा के खिलाफ मुस्लिम समुदाय की एक रैली में पुलिस की मौजूदगी में उसने भड़काऊ भाषण दिए थे। इस संबंध में एक प्राथमिकी 25 जून 2022 की रात को दर्ज की गई थी। लेकिन तब कोई कार्रवाई नहीं हुई थी। जब उदयपुर में दर्जी कन्हैयालाल की 28 जून को निर्मम हत्या की घटना हो गयी उसके बाद अजमेर पुलिस हरकत में आई और गौहर चिश्ती के साथ मौजूद फकर जमाली, रियाज और तामिज को 29 जून को गिरफ्तार किया गया। वहीं, चौथे आरोपी को 30 जून 2022 को गिरफ्तार किया गया था।

इन लोगों ने जो विवादास्पद नारे लगाये थे और अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया था उसके वीडियो और ऑडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गये थे। उस समय दरगाह पुलिस थाने के एक कांस्टेबल द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी को देखेंगे तो पता चलेगा कि आरोप गंभीर थे। प्राथमिकी में आरोप लगाया गया था कि गौहर चिश्ती ने धार्मिक स्थल से लाउडस्पीकर का उपयोग कर ‘‘गुस्ताखी ए नबी की एक ही सजा, सर तन से जुदा, सर तन से जुदा’’ के नारे लगाकर लोगों को उकसाया था। कांस्टेबल के मुताबिक भीड़ को हिंसा के लिये उकसाना और हत्या का आह्वान करना संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है। इस संबंध में भारतीय दंड संहिता की धारा 117 (दस से अधिक व्यक्तियों द्वारा जनता को अपराध के लिये उकसाना), 188 (लोक सेवक द्वारा विधिवत आदेश की अवज्ञा), 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान), 506 (आपराधिक धमकी) 34 (कई व्यक्तियों द्वारा सामान्य इरादे से किए गये कार्य) 143 और 149 (गैर कानूनी सभा) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

देखा जाये तो प्राथमिकी में आरोप गंभीर थे इसलिए मामले की अदालत में चली सुनवाई के बाद जब फैसला आया तो सभी को हैरत हुई। सरकारी वकील गुलाम नजमी फारूकी ने जब यह बताया कि अदालत ने खादिम (सेवक) गौहर चिश्ती, ताजिम सिद्दीकी, फारूक जमाली, नासिर, रियाज हसन और मोईन को बरी कर दिया है तो सवाल उठा कि भड़काऊ नारेबाजी के जो वीडियो आज भी सोशल मीडिया पर मौजूद हैं वह जज साहब को क्या दिखाए नहीं गये? सरकारी वकील गुलाम नजमी फारूकी ने हालांकि कहा है कि अदालती आदेश की समीक्षा करने के बाद फैसले के खिलाफ अपील की जाएगी। इसलिए उम्मीद है कि आरोपियों को एक ना एक दिन सजा जरूर मिलेगी। लेकिन यह मामला हमारी प्रणाली में व्याप्त खामियों की ओर इशारा भी करता है। सरेआम लोगों को भड़काने वाले और धार्मिक उन्माद फैलाने वाले यदि इसी तरह बरी होते रहेंगे तो अराजक तत्वों का हौसला बढ़ेगा इसलिए सरकार को चाहिए कि ऐसे मामलों में सख्ती से निबटने के लिए कड़े कानून बनाये।

बहरहाल, केंद्र सरकार को यह भी देखना चाहिए कि हाल ही में जमीयत उलेमा ए हिंद के महमूद मदनी ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि अगर हमारा मजहब बर्दाश्त नहीं है तो तुम कहीं और चले जाओ। अगर ऐसे बयान सामने आते रहे तो इससे साम्प्रदायिक सद्भाव को ठेस पहुँचेगी। इसलिए भड़काऊ बयान देने वालों के खिलाफ कड़े कदम उठाने का समय आ चुका है।

-नीरज कुमार दुबे

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