बजट में कृषि कानूनों को ‘पिछले दरवाजे’ से लाने का प्रावधान, कृषि का निगमीकरण संभव: SKM

Rakesh Tikait
प्रतिरूप फोटो
ANI

एसकेएम ने कहा है कि केंद्रीय बजट कृषि के निगमीकरण को बढ़ावा देगा। इसके साथ ही एसकेएम ने आरोप लगाया कि यह तीन कृषि कानूनों के प्रावधानों के ‘पिछले दरवाजे से प्रवेश’ का भी रास्ता बनाने वाला है। इन कानूनों को लगभग दो साल पहले निरस्त कर दिया गया था।

नयी दिल्ली । संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने कहा कि केंद्रीय बजट कृषि के निगमीकरण को बढ़ावा देगा। इसके साथ ही एसकेएम ने आरोप लगाया कि यह तीन कृषि कानूनों के प्रावधानों के ‘पिछले दरवाजे से प्रवेश’ का भी रास्ता बनाने वाला है। इन कानूनों को लगभग दो साल पहले निरस्त कर दिया गया था। एक वर्चुअल संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने कहा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए गए बजट में किसानों की स्थिति में सुधार के लिए कोई प्रावधान नहीं है और वे विरोध के रूप में बजट की प्रतियां जलाएंगे। 

भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा, ‘‘बजट में किसानों के लिए कुछ नहीं है। यह पिछले साल जैसा ही है...।’’ उन्होंने कहा कि एसकेएम किसी भी राज्य को धन मिलने का विरोध नहीं करता है। उन्होंने कहा कि बिहार को वित्तीय पैकेज दिए गए हैं, कृषि क्षेत्र की अनदेखी की गई है और राज्य में एक मजबूत ‘मंडी’ प्रणाली बनाने के लिए कोई प्रावधान नहीं हैं। अखिल भारतीय किसान महासभा (एआईकेएमएस) के आशीष मित्तल ने कहा कि बजट में प्राकृतिक खेती से जुड़ी घोषणा से उत्पादन में गिरावट आ सकती है, जैसा कि श्रीलंका के मामले में हुआ था। 

उन्होंने कहा, ‘‘वे एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रशिक्षित करने जा रहे हैं। समस्या यह है कि इससे उत्पादन में कमी आएगी। श्रीलंका में भी इसी तरह के कदम से वहां खाद्य संकट पैदा हो गया था।’’ जय किसान आंदोलन के नेता अविक साहा ने कहा कि यह बजट कृषि कानूनों के प्रावधानों को ‘‘पिछले दरवाजे से प्रवेश’’ देने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘बजट में किसान लगभग अदृश्य हैं। यह कृषि कानूनों को पिछले दरवाजे से प्रवेश देने की कोशिश कर रहा है।’’ संवाददाता सम्मेलन के बाद जारी एक बयान में एसकेएम ने कहा कि बजट किसानों और श्रमिकों की कीमत पर कृषि के निगमीकरण की ओर ले जाएगा और राज्य सरकारों के अधिकारों को छीन लेगा, जो भारत के संविधान के संघीय चरित्र की मूल अवधारणा का उल्लंघन है। 

उन्होंने किसानों, श्रमिकों, महिलाओं, युवाओं और छात्रों सहित सभी वर्गों की व्यापक एकता की अपील की, ताकि बजट के खिलाफ पूरे भारत में बड़े पैमाने पर संघर्ष किया जा सके। एसकेएम ने कहा, ‘‘एसकेएम पूरे भारत के किसानों से व्यापक अभियान चलाने और गांवों में विरोध प्रदर्शन करने तथा इस जनविरोधी, कॉरपोरेट समर्थक बजट की प्रतियां जलाने की अपील करता है।’’ 

किसान संगठन ने कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए पांच प्रतिशत की कर छूट घोषित की गई है, और सरकार कॉरपोरेट और अति-धनवानों पर कर लगाने के लिए तैयार नहीं है, जबकि अप्रत्यक्ष कर के रूप में एकत्र किए गए जीएसटी का 67 प्रतिशत हिस्सा 50 प्रतिशत गरीब आबादी से आता है। किसान नेताओं ने कहा, ‘‘भले ही भारतीय रिजर्व बैंक ने लेखा वर्ष 2023-24 के लिए केंद्र सरकार को अधिशेष के रूप में 2,10,874 करोड़ रुपये हस्तांतरित किए हैं, लेकिन बजट ने किसानों और श्रमिकों की व्यापक ऋण माफी की लंबे समय से लंबित मांग की उपेक्षा की है, जबकि आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, भारत में प्रतिदिन 31 किसान आत्महत्या कर रहे हैं।’’ एसकेएम ने केंद्र सरकार से जीएसटी अधिनियम में संशोधन करने और राज्य सरकारों के कराधान के अधिकार को बहाल करने की भी मांग की।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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