Adani-Hindenburg Row पर Supreme Court का ताजा रुख Congress समेत समूचे विपक्ष के लिए बड़ा झटका है

अडाणी मामले में समीक्षा याचिका खारिज किये जाने पर सवाल उठता है कि क्या विपक्षी दल मिथ्या आरोपों के लिए माफी मांगेंगे? हम आपको याद दिला दें कि अडाणी-हिंडनबर्ग मामले को लेकर विपक्ष ने लगातार हो-हल्ला किया था, देश में उद्योगों के खिलाफ माहौल बनाया था।
विदेशी समूहों द्वारा भारत के उद्योगों के खिलाफ नकारात्मक अभियान चलाया जाना कोई नई बात नहीं है। नई बात यह है कि विदेशी समूहों के ऐसे अभियानों को भारत में विपक्ष का सहयोग और समर्थन मिल जाता है। याद कीजिये हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को आधार बना कर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने गौतम अडाणी समूह के खिलाफ संसद से सड़क तक कितना हंगामा किया था। कांग्रेस ने तो एलआईसी और एसबीआई के डूबने तक की भविष्यवाणी तक कर दी थी। अडाणी समूह पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट की जेपीसी जांच की मांग के चलते विपक्ष ने संसद का कीमती समय और करदाताओं की मेहनत का पैसा बर्बाद करने में कोई कोताही नहीं बरती थी। यह मामला उच्चतम न्यायालय भी गया था जहां विशेषज्ञ समिति की जांच से जो तथ्य सामने आये उससे प्रदर्शित हुआ कि आरोपों में कोई दम नहीं था। ऐसे में सवाल उठता है कि क्यों भारत के एक प्रमुख उद्योग समूह के खिलाफ नकारात्मक अभियान चलाया गया? सवाल उठता है कि दुनिया में अमीरों की सूची में पहले नंबर के करीब पहुँच रहे गौतम अडाणी को पीछे धकेलने के अंतरराष्ट्रीय समूहों के प्रयासों को भारत से कुछ नेताओं ने क्यों समर्थन दिया?
हम आपको बता दें कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का अडाणी समूह के खिलाफ अभियान किस तरह हवा-हवाई था इसका अंदाजा आपको इसी से लग जायेगा कि उच्चतम न्यायालय ने अडाणी समूह पर शेयरों की कीमतों में हेराफेरी के संबंध में लगे आरोपों की जांच का जिम्मा सीबीआई या विशेष जांच दल को सौंपने से इंकार करने के अपने तीन जनवरी के फैसले की समीक्षा का अनुरोध करने वाली याचिका खारिज कर दी है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने तीन जनवरी के फैसले के खिलाफ जनहित याचिका दायर करने वालों में शामिल अनामिका जायसवाल की तरफ से दायर समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया। हम आपको याद दिला दें कि पीठ ने पांच मई के अपने आदेश में कहा था, ‘‘समीक्षा याचिका पर गौर करने के बाद रिकॉर्ड में कोई त्रुटि नहीं दिखाई देती है। उच्चतम न्यायालय नियम 2013 के आदेश 47 नियम एक के तहत समीक्षा का कोई मामला नहीं बनता है। लिहाजा समीक्षा याचिका खारिज की जाती है।’’ इस याचिका पर न्यायाधीशों ने चैंबर में विचार किया।
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इसके पहले इस साल तीन जनवरी को शीर्ष अदालत ने शेयर कीमतों में हेराफेरी के आरोपों की सीबीआई या एसआईटी से जांच कराने का आदेश देने से इंकार कर दिया था। उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) आरोपों की ‘व्यापक जांच’ कर रहा है और इसका आचरण ‘भरोसा जगाता है।’ हम आपको बता दें कि समीक्षा याचिका में दावा किया गया था कि इस फैसले में ‘गलतियां और त्रुटियां’ थीं, और याचिकाकर्ता के वकील को हासिल कुछ नई सामग्री के आलोक में फैसले की समीक्षा के लिए पर्याप्त कारण थे। याचिका में कहा गया था कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में न्यायालय को केवल आरोपों के बाद की गई 24 जांच की स्थिति के बारे में सूचित किया था लेकिन उसने इनके पूरा होने या अधूरे होने के बारे में कोई जानकारी नहीं दी थी।
उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि बाजार नियामक ने अडाणी समूह पर लगे 24 आरोपों में से 22 मामलों में अपनी जांच पूरी कर ली है। न्यायालय का तीन जनवरी का फैसला जनवरी, 2023 में हिंडनबर्ग रिसर्च की तरफ से अडाणी समूह पर लगाए गए गंभीर आरोपों के संदर्भ में आया था। हम आपको याद दिला दें कि हिंडनबर्ग रिसर्च की तरफ से धोखाधड़ी वाले लेनदेन और शेयर कीमतों में हेराफेरी सहित कई आरोप लगाए जाने के बाद अडाणी समूह के शेयरों में भारी गिरावट आई थी। हालांकि, अडाणी समूह ने इन आरोपों को गलत बताते हुए खारिज कर दिया था। उसने कहा था कि वह सभी कानूनों और जरूरी सूचनाओं को साझा करने के प्रावधानों का अनुपालन करता है।
बहरहाल, अडाणी मामले में समीक्षा याचिका खारिज किये जाने पर सवाल उठता है कि क्या विपक्षी दल मिथ्या आरोपों के लिए माफी मांगेंगे? हम आपको याद दिला दें कि अडाणी-हिंडनबर्ग मामले को लेकर विपक्ष ने लगातार हो-हल्ला किया था, देश में उद्योगों के खिलाफ माहौल बनाया था, शेयर बाजारों में भय का वातावरण बनाया था, सरकारी बैंकों और एलआईसी के खाता और पॉलिसी धारकों को डराया था और संसद की कार्यवाही को बाधित करने के अलावा प्रधानमंत्री मोदी तथा उद्योगपति गौतम अडाणी के संबंधों को लेकर तमाम तरह के अमर्यादित कटाक्ष किये थे जिससे जनता के बीच भ्रम फैला था और देश में उद्योगपतियों के खिलाफ नकारात्मक माहौल बना था।
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