Gyan Ganga: भगवान श्रीराम का निर्मल यश समस्त पापों को नष्ट कर देने वाला है
जो व्यक्ति अपने कानों से भगवान श्री राम का चरित्र ध्यानपूर्वक सुनता है, उसे सरलता, कोमलता और माधुर्य आदि गुणों की प्राप्ति होती है। केवल इतना ही नहीं बल्कि वह समस्त कर्म बंधनों से मुक्त होकर बैकुंठ धाम को प्राप्त करता है।
सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे !
तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयंनुम:॥
प्रभासाक्षी के श्रद्धेय पाठकों ! आइए, भागवत-कथा ज्ञान-गंगा में गोता लगाकर सांसारिक आवा-गमन के चक्कर से मुक्ति पाएँ और अपने इस मानव जीवन को सफल बनाएँ।
आज-कल हम श्रीमद भागवत महापुराण के अंतर्गत राम-कथा का श्रवण कर रहे हैं। पिछले अंक में हम सबने राम-तत्व तक पहुँचने के लिए लक्ष्मण और उनकी शक्ति उर्मिला तथा भरत भैया और उनकी शक्ति मांडवी का आश्रय लिया था।
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आइए ! आगे की कथा प्रसंग में चलते हैं---
श्री शुकदेव जी महाराज परीक्षित को संबोधित करते हुए कहते हैं— परीक्षित ! राम तत्व तक पहुँचने के लिए शत्रुघ्न जी महाराज लखनलाल जी और भरत भैया ये तीन सोपान हैं, इन तीनों को पार करने के बाद ही आनंद कंद भगवान श्री राम हमारे हृदय में प्रकट होंगे। रम कृड़ायाम धातु से राम शब्द बनता है। जो रमण करे, विहार करे वह श्री राम है। जो योगियों के हृदय में रमण करे या योगी जिस राम तत्व में रमण करे वही राम हैं। रमन्ते योगिन: यास्मिन य; स; राम;। इतना उद्योग करने के बाद भगवान श्री राम जी हमारे हृदय को अवधपुरी बनाकर निवास करने लगेंगे।
रामजी कौन हैं? इनका स्वरूप कैसा है?
गोस्वामी तुलसीदास जी के शब्दों में----
जो आनंद सिंधु सुख राशि सीकर ते त्रैलोक सुपासी
सो सुख धाम राम अस नामा अखिल लोक दायक विश्रामा ॥
भगवान श्री राम आनंद के सागर और सुख की राशि हैं, जिस (आनंदसिंधु) के एक कण से तीनों लोक सुखी होते हैं उनका नाम 'राम' है, जो सुख का भवन और संपूर्ण लोकों को शांति देने वाला है।
आइए सम्पूर्ण रामायण एक कविता के माध्यम से सुने।
है जग मे जिसक नाम अमर उस रघुबर का गुण गाता हूँ ।
रावण का हनन किया जिसने उस राम की कथा सुनाता हूँ।
दशरथ के घर जो जन्म लिया तोड़ा शिव धनुष स्व्यंवर मे
जब राज तिलक का दिन आया बनवास मिला अपने घर मे।
तब एक रोज पंचवटी मे एक सोने का हिरण आया
जब राम चले उसके पीछे रावण सीता का हरण किया ॥
तब हनुमान पहुंचे लंका और किया भेट सीताजी से
देकर मुद्रिका रामजी की हर लिया शोक उनके मन से ॥
वहाँ मेघनाद ने जा पकड़ा और पूंछ मे आग लगा डाली
उस अग्नि से बजरंगबली सब लंका रख बना डाली ॥
हुई शुरू लड़ाई लंका मे रावण इस तरफ उधर रघुबर
हारा रावण जीते रघुवर हुई अमर कथा रामायण की॥
तुम राम बनो रावण न बनो बस इतना ही समझाता हूँ। है जग ---------------
श्री शुकदेव जी महाराज कहते हैं--
तस्या नु चरितं राजन ऋषिभि: तत्वदर्शिभि: ।
श्रुतं हि वर्णितं भूरि त्वया सीता पतेर्मुहु : ॥
परीक्षित ! सीतापति श्रीराम के चरित्र के बारे में तो तत्वदर्शी ऋषियों ने बहुत कुछ वर्णन किया है और तुमने अनेक बार उसे सुना भी है। भगवान के समान प्रतापी और कोई नहीं है। उन्होंने देवताओं की प्रार्थना से ही यह लीला-विग्रह धरण किया था। रघुवंश शिरोमणि भगवान श्री राम के लिए यह कोई बड़े गौरव की बात नहीं है कि उन्होंने अस्त्र-शस्त्रों से रावण आदि राक्षसों को मार डाला या समुद्र पर पुल बांध दिया। उन्हें शत्रुओं को मारने के लिए बंदर-भालुओं की मदद की भी जरूरत नहीं थी।
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वे तो इनको श्रेय देना चाहते थे। सबको साथ लेकर चलना चाहते थे। सबका साथ और सबका विकास चाहते थे। यह सब उनकी लीला थी।
यस्यामलं नृपसदस्सु यशोधुनापि गायंत्यघघ्नमृषयो दिगिभेंद्र पट्टम।
तं नाकपाल वसुपालकिरीटजुष्ट पादांबुजं रघुपतिम शरणम प्रपद्ये ॥
भगवान श्रीराम का निर्मल यश समस्त पापों को नष्ट कर देने वाला है। वह इतना फैल गया है कि दिग्गजों का श्यामल शरीर भी उसकी उज्ज्वलता से चमक उठता है। आज भी बड़े-बड़े ऋषि महर्षि उनके निर्मल चरित्र का गुण-गान करते रहते हैं।
श्री शुकदेव जी महाराज कहते हैं, हे परीक्षित ! भगवान श्री रामजी आत्माराम जितेन्द्रिय पुरुषों के शिरोमणि थे। वे धर्म की मर्यादा का पालन करते हुए बहुत वर्षों तक प्रजा का पालन करते रहे।
पुरुषो राम चरितं श्रवणरूपधारयन।
आनृशंस्यपरो राजन कर्मबंधे:विमुच्यते ॥
जो व्यक्ति अपने कानों से भगवान श्री राम का चरित्र ध्यानपूर्वक सुनता है, उसे सरलता, कोमलता और माधुर्य आदि गुणों की प्राप्ति होती है। केवल इतना ही नहीं बल्कि वह समस्त कर्म बंधनों से मुक्त होकर बैकुंठ धाम को प्राप्त करता है।
आइए ! विनम्र भाव से आनंद कंद भगवान श्री राम की वंदना करें।
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम् ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७
शेष अगले प्रसंग में । --------
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।
-आरएन तिवारी
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