Gyan Ganga: गीता में भगवान ने अर्जुन से कहा- मैं समस्त प्राणियों के हृदय में स्थित आत्मा हूँ
भगवान कहते हैं— हे अर्जुन! मैं सभी वृक्षों में पीपल हूँ। पीपल एक बहुत ही सौम्य वृक्ष है। इसके नीचे हरेक पेड़ लग जाता है और यह पहाड़, दीवार, छत आदि कठोर जगह पर भी उत्पन्न हो जाता है। पीपल पेड़ के पूजन की बड़ी महिमा है।
मुश्किलें हमेशा बेहतरीन लोगों के हिस्से में आती हैं, क्योंकि वे लोग ही उन मुश्किलों को बेहतरीन तरीके से अंजाम देने की ताकत रखते हैं। यह संसार एक सिनेमा है। सिनेमा में मुश्किल भूमिका श्रेष्ठ अभिनेता को ही दी जाती है।
महाभारत युद्ध में अर्जुन मुख्य पात्र है, क्योंकि महाभारत जैसे मुश्किल युद्ध की बागडोर वह ही संभाल सकता है।
आइए ! गीता प्रसंग में चलते हैं- पिछले अंक में हमने पढ़ा कि जिज्ञासु अर्जुन को भगवान के प्रिय वचन बहुत विलक्षण लगते हैं, इसीलिए अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि आप ऐसे अमृतमय वचन सुनाते जाइए।
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श्रीभगवानुवाच
हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः ।
प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे ॥ (१९)
श्री भगवान ने कहा- हे कुरु वंश में श्रेष्ठ अर्जुन ! अब मैं तुम्हारे लिये अपने अलौकिक विभूतियों और ऐश्वर्यपूर्ण रूपों को संक्षेप में ही कहूँगा, क्योंकि मेरे विस्तार की तो कोई सीमा नहीं है। भगवान अनंत हैं, इसलिए उनकी विभूतियाँ भी अनंत हैं। भगवान की विभूतियों को न कोई विस्तार से कह सकता और न ही कोई सुन सकता है, इसलिए भगवान कहते हैं कि मैं अपनी विभूतियों को संक्षेप में ही कहूँगा।
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः ।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ॥
हे अर्जुन! मैं समस्त प्राणियों के हृदय में स्थित आत्मा हूँ और मैं ही सभी प्राणियों की उत्पत्ति का, मैं ही सभी प्राणियों के जीवन का और मैं ही सभी प्राणियों की मृत्यु का कारण हूँ। कहने का तात्पर्य यह है कि सभी प्राणियों के आदि, मध्य और अंत में भगवान ही हैं।
आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान् ।
मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी ॥ (२१)
मैं सभी आदित्यों में विष्णु हूँ। अदिति के जितने भी पुत्र हैं, उनमें विष्णु अर्थात् वामन मुख्य हैं। भगवान ने ही वामन रूप में अवतार लेकर दैत्य राज बलि की सारी संपत्ति दान में ले ली थी। मैं सभी ज्योतियों में प्रकाशमान सूर्य हूँ। जितनी भी प्रकाशमान चीजें हैं, उनमें सूर्य मुख्य है। सूर्य के प्रकाश से ही सभी प्रकाशमान होते हैं। मैं सभी मरुतों में मरीचि नामक वायु हूँ, और मैं ही सभी नक्षत्रों (अश्विनी, भरणी, आदि सत्ताईस नक्षत्रों) में चंद्रमा हूँ।
वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः ।
इंद्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ॥ (२२)
मैं सभी वेदों में सामवेद हूँ। वेदों की जो ऋचाएँ स्वर के साथ गाई जाती हैं उनका नाम सामवेद है। सामवेद में भगवान की स्तुति का वर्णन है। इसलिए सामवेद भगवान की विभूति है। भगवान कहते हैं- मैं सभी देवताओं में स्वर्ग का राजा इंद्र हूँ, सभी इंद्रियों में मन हूँ, और सभी प्राणियों में चेतना स्वरूप जीवन-शक्ति हूँ।
रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम् ।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम् ॥
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मैं सभी रुद्रों में शिव हूँ, मैं यक्षों तथा राक्षसों में धन का स्वामी कुबेर हूँ, मैं सभी वसुओं में अग्नि हूँ और मै ही सभी शिखरों में मेरु हूँ। ग्यारह रुद्रों में शिवजी सबके अधिपति हैं। ये कल्याणप्रद और कल्याण स्वरूप हैं, इसलिए भगवान ने इनको अपनी विभूति बताया।
पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम् ।
सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः ॥ (२४)
हे पार्थ! सभी पुरोहितों में मुख्य बृहस्पति मुझे ही समझो, क्योंकि संसार के सभी पुरोहितों में और विद्या-बुद्धि में बृहस्पति ही सर्व श्रेष्ठ हैं। मैं सभी सेनानायकों में कार्तिकेय हूँ। कार्तिकेय शंकरजी के ज्येष्ठ पुत्र हैं इनके छ: मुख और बारह हाथ हैं। ये देवताओं के प्रधान सेनापति हैं इसलिए भगवान ने इनको अपनी विभूति बताया है। इस धरती पर जितने भी जलाशय हैं, उनमें समुद्र सबसे बड़ा है, समुद्र सम्पूर्ण जलाशयों का स्वामी है और अपनी मर्यादा में रहने वाला तथा गंभीर है, इसलिए भगवान ने कहा कि मैं ही सभी जलाशयों में समुद्र हूँ।
महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् ।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ॥ (२५)
भृगु, अत्रि, मरीचि आदि ऋषियों में भृगुजी भक्त, ज्ञानी और परम तेजस्वी हैं। इन्होंने ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों की परीक्षा लेकर भगवान विष्णु को श्रेष्ठ साबित किया था, भगवान विष्णु भी अपनी छाती पर इनके चरण चिह्न को ‘भृगुलता’ नाम से धारण किए रहते हैं, इसीलिए भगवान कहते हैं-
मैं महर्षियों में भृगु हूँ। मैं सभी वाणी में एक अक्षर (प्रणव) ॐ हूँ। मैं सभी प्रकार के यज्ञों में जप (कीर्तन) यज्ञ हूँ, और मैं ही सभी स्थिर (अचल) रहने वालों में हिमालय पर्वत हूँ। (२५)
अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः ।
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः ॥ (२६)
भगवान कहते हैं— हे अर्जुन! मैं सभी वृक्षों में पीपल हूँ। पीपल एक बहुत ही सौम्य वृक्ष है। इसके नीचे हरेक पेड़ लग जाता है और यह पहाड़, दीवार, छत आदि कठोर जगह पर भी उत्पन्न हो जाता है। पीपल पेड़ के पूजन की बड़ी महिमा है। आयुर्वेद में बहुत-से रोगों का नाश करने की शक्ति पीपल वृक्ष में बताई गई है। इन सब दृष्टियों से भगवान ने पीपल को अपनी विभूति बताया है। मैं सभी देवर्षियों में नारद हूँ। देवर्षि भी कई हैं और नारद भी कई हैं पर ‘देवर्षि नारद’ एक ही हैं। ये भगवान के मन के अनुसार चलते हैं और भगवान को जैसी लीला करनी होती है, ये पहले ही वैसी भूमिका तैयार कर देते हैं। शायद इसीलिए नारद जी को भगवान का मन कहा जाता है। वाल्मीकि और व्यासजी को उपदेश देकर उनको रामायण और भागवत जैसे धर्म-ग्रन्थों के लेखन-कार्य में प्रवृत्त कराने वाले भी नारद जी ही हैं। नारद जी की बात पर मनुष्य, देवता, असुर, नाग आदि सभी विश्वास करते हैं। सभी इनकी बात मानते हैं और इनसे सलाह लेते हैं। महाभारत आदि ग्रन्थों में इनके अनेक गुणों का वर्णन किया गया है, इसीलिए भगवान नारदजी को अपनी विभूति कहते हैं।
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मैं सभी गन्धर्वों में चित्ररथ हूँ। स्वर्ग के गायकों (singers) को गंधर्व कहा जाता है और उन सभी गन्धर्वों में चित्ररथ मुख्य है। अर्जुन के साथ चित्ररथ की मित्रता रही है इनसे ही अर्जुन ने संगीत विद्या सीखी थी। गान-विद्या में अत्यंत निपुण और सभी गन्धर्वों में मुख्य होने के कारण भगवान ने चित्ररथ को अपनी विभूति कहा है। मैं ही सभी सिद्ध पुरूषों में कपिल मुनि हूँ। सिद्ध दो तरह के होते हैं— एक तो साधना करके सिद्ध बनते हैं और दूसरे जन्मजात सिद्ध होते हैं। कपिलमुनि जन्मजात सिद्ध हैं इनको आदिसिद्ध भी कहते हैं। ये कर्दम जी के यहाँ देवहूति के गर्भ से प्रकट हुए थे। इन्हे सांख्य शास्त्र का आचार्य और सिद्धों का अधीश्वर माना जाता है। इसलिए भगवान ने इनको अपनी विभूति बताया है। इन सब विभूतियों में जो विलक्षणता दिखाई देती है वह मूल रूप से भगवान का ही तत्व है। इसलिए सबकी स्तुति करते हुए भी हमारी दृष्टि भगवान में ही रहनी चाहिए।
श्री वर्चस्व आयुस्व आरोग्य कल्याणमस्तु...
जय श्री कृष्ण...
- आरएन तिवारी
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