Dhanteras Katha: क्या आप जानते हैं क्यों मनाया जाता है धनतेरस का पर्व, जानिए इसके पीछे की पौराणिक कथा
हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इस बार 10 नवंबर यानी की आज धनतेरस का पर्व मनाया जा रहा है। आइए जानते हैं कि आखिर धनतेरस का पर्व क्यों मनाया जाता है।
हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इस बार 10 नवंबर यानी की आज धनतेरस का पर्व मनाया जा रहा है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, समुद्र मंथन के समय इस तिथि को भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। जिस वजह से इसे धनतेरस या धनत्रयोदशी तिथि के नाम से जाना जाता है। धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी, कुबेर देव, यमराज और भगवान धनवंतरि की पूजा की जाती है। धनतेरस के दिन से दिवाली का पर्व शुरू हो जाता है। आज के सोना-चांदी या नए बर्तन खरीदना काफी ज्यादा शुभ माना जाता है। लेकिन क्या आपको बता है कि धनतेरस का पर्व क्यों मनाया जाता है और इसके पीछे की क्या कहानी है।
भगवान धनवंतरि का प्रादुर्भाव
हमारी संस्कृति में हमारी सेहत को सबसे बड़ा धन माना जाता है। इसलिए धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। वहीं भगवान धनवंतरि को जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु का अंश माना गया है। मान्यता के मुताबिक भगवान विष्णु के अंश धनवंतरि देव ने इस संसार में चिकित्सा विज्ञान का प्रचार और प्रसार किया। इसके अलावा धनतेरस के दिन घर के द्वार पर तेरह दीपक जलाए जाने की प्रथा है। बता दें कि धनतेरस का अर्थ होता है- धन का तेरह गुना। वहीं वैद्य समाज भगवान धनवंतरि के प्रकट होने की वजह से इस दिन को धनवंतरि जयंती के रूप में मनाता है।
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क्यों मनाया जाता है धनतेरस का पर्व
पौराणिक कथा के मुताबिक भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन के दौरान हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि होने के कारण इस दिन को धनतेरस के रूप में मनाते हैं। वहीं भगवान धनवंतरि हाथ में कलश लेकर प्रकट हुए थे। जिस कारण आज के दिन बर्तन खरीदने की परंपरा है। धनवंतरि देव को श्रीहरि विष्णु का अंश माना गया है। वहीं भगवान धनवंतरि के समुद्र से निकलने के दो दिन बाद मां लक्ष्मी समुद्र मंथन से निकली थीं। इसलिए धनतेरस के दो दिन बाद दिवाली पर्व मनाया जाता है।
धनतेरस की पौराणिक कथा
मृत्यु के देवता यमराज ने एक बार यमदूतों से प्रश्न किया कि क्या मनुष्य के प्राण लेने में उन्हें कभी किसी पर दया आती है। जिस पर यमदूतों ने जवाब दिया कि नहीं आती है। उन्होंने कहा कि हम सिर्फ आपके निर्देशों का पालन करते हैं। जिस पर यमराज ने कहा कि निसंकोच होकर बताओ क्या कभी किसी मनुष्य के प्राण लेने में आपको दया आई। तब एक यमदूत ने कहा कि एक बार कुछ ऐसा घटित हुए, जिसे देखकर हमारा हृदय पसीज गया।
यमदूत ने बताया कि हंस नामक राजा शिकार के लिए जंगल गया था। जहां पर वह रास्ता भटक गया और दूसरे राज्य की सीमा पर चला गया। दूसरे राज्य का शासक हेमा था। हेमा ने राजा हंस का आदर-सत्कार किया। वहीं उसी दिन राजा हेमा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। ज्योतिषियों ने जब बच्चे के ग्रह-नक्षत्रों की गणना की तो पता चला कि उसके विवाह के 4 दिन बाद उसकी मृत्यु होनी है। तब राजा हेमा ने आदेश देते हुए कहा कि इस बालक को यमुना नदी के पास ब्रह्मचारी के रूप में एक गुफा में रखा जाए।
जहां पर बालक की नजर किसी भी स्त्री पर ना पड़े। लेकिन विधि का विधान कुछ और ही था। एक दिन संयोगवश राजा हंस की पुत्री उसी यमुना तट पर चली गई, जहां राजा हेमा के पुत्र को रखा गया था। उन दोनों ने एक-दूसरे को देखा और गंधर्व विवाह कर लिया। विवाह के 4 दिन बाद राजा के पुत्र की मृत्यु हो गई। उस नवविवाहिता का विलाप सुन यमदूत का हृदय पसीज गया था। यह सारी बातें सुन यमराज ने कहा कि विधि के विधान को टाला नहीं जा सकता है। इसलिए मर्यादा में रहते हुए उन्हें यह काम करना पड़ेगा।
जानिए यमराज ने क्या उपाय बताया
जब यमदूतों ने यमराज से पूछा कि कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से बच सके। तब मृत्यु के देवता यमराज ने कहा कि जो भी व्यक्ति धनतेरस के दिन विधि विधान के साथ पूजा-अर्चना करेगा और दीपदान करेगा। उसकी कभी अकाल मृत्यु नहीं होगी। इसी घटना के कारण धनतेरस के दिन आरोग्य की प्राप्ति के लिए मां लक्ष्मी के साथ भगवान धनवंतरि की पूजा की जाती है और दीपदान किया जाता है।
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