By अभिनय आकाश | Nov 25, 2022
सुप्रीम कोर्ट से लेकर लोअर कोर्ट तक इस सप्ताह यानी 21 नवंबर से 25 नवंबर 2022 तक क्या कुछ हुआ। कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट और टिप्पणियों का विकली राउंड अप आपके सामने लेकर आए हैं। कुल मिलाकर कहें तो आपको इस सप्ताह होने वाले भारत के विभिन्न न्यायालयों की मुख्य खबरों के बारे में बताएंगे।
चुनाव आयुक्त की नियुक्ति
सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि कानून मंत्री ने चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति के लिए पीएम के पास जो चार नाम भेजे थे, उन्हें तय करने का क्या आधार था। अदालत ने कहा कि गोयल की नियक्ति करने में केंद्र ने बिजली जैसी तेजी दिखाई। 24 घंटे में फाइल क्लियर कर दी गई। केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल ने कहा कि मामले को अरुण गोयल की नियुक्ति के इतर व्यापक नजरिये से देखे जाने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से गोयल, की चुनाव आयुक्त के पद पर नियुक्ति से ऐसे संबंधित दस्तावेज मांगे थे। जिसके बाद अटॉर्नी जनरल ने फाइल पेश की। कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख दिया। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर चुनाव आयुक्त, मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम बनाने की गुहार लगाई गई है। इससे पहले चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जरूरत ऐसे मुख्य चुनाव आयुक्त की है जो पीएम लेना के खिलाफ भी ऐक्शन ले सके। मौखिक टिप्पणी में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के वकील से कहा, फर्ज कीजिए किसी पीएम के खिलाफ कुछ आरोप हैं और मुख्य चुनाव आयुक्त को उन पर ऐक्शन लेना है। मुख्य चुनाव आयुक्त कमजोर हैं तो एक्शन नहीं ले सकते। क्या इसे सिस्टम को ध्वस्त करने वाला नहीं मानना चाहिए। मुख्य चुनाव आयुक्त के काम में राजनीतिक दखलअंदाजी नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने टिप्पणी की कि मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को शामिल किया जाना चाहिए जिससे आयोग की स्वतंत्रता सुनिश्चित हो।
समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की मांग
सुप्रीम कोर्ट ने विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत समलैंगिक विवाहों के को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली समलैंगिक जोड़े की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी किया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र से जवाब मांगा। शीर्ष अदालत ने सरकार के साथ-साथ भारत के अटॉर्नी जनरल को अलग-अलग नोटिस जारी किए और मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया। इस मामले की सुनवाई दो जजों की बेंच ने की, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली शामिल थे। रिपोर्ट के अनुसार याचिकाकर्ता हैदराबाद के एक समान-सेक्स जोड़े हैं, सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय डांग, जिन्होंने कहा कि समान सेक्स विवाह की गैर-मान्यता भेदभाव के बराबर है। पार्थ फिरोज मेहरोत्रा और उदय राज आनंद ने भी एक अलग याचिका दायर की थी। खंडपीठ ने भारत संघ और भारत के अटॉर्नी जनरल को अलग-अलग नोटिस जारी किए और मामले को चार सप्ताह के बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा
कुछ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा दिलाने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को छह हफ्ते में अपना स्टैंड पेश करने के लिए कहा है। इससे पहले केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राज्य सरकारों, केंद्र शासित और अन्य हित धारकों के साथ राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के मामले में बैठक हुई है। 14 राज्यों ने अपना मत दिया है। 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से अभई जवाब नहीं आया है। इन राज्यों का कहना है कि मामला संवेदनशील है और इसके व्यापक असर होंगे। ऐसे में उनको वक्त दिया जाना चाहिए ताकी वो अपना मत दे सकें। बता दें कि दायर याचिका में कहा गया है कि देश भर के 9 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं लेकिन वे अल्पसंख्यको की योजनाओं का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने 1992 के अल्पसंख्यक आयोग कानून और 2004 के अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान कानून की कानूनी वैधता को चुनौती दी है।
मोरबी पुल हादसा
सुप्रीम कोर्ट ने मोरबी पुल ढहने को बड़ी त्रासदी करार दिया है। सर्वोच्च अदालत ने गुजरात हाई कोर्ट से कहा कि वह घटना की समयबद्ध जांच और इससे जुड़े विभिन्न पहलुओं की समय-समय पर निगरानी करे। हाई कोर्ट ऐसा नियामक तंत्र भी बनाए, जिससे कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों। मोरबी में मच्छु नदी पर बना ब्रिटिश काल का यह पुल 30 अक्टूबर को ढह गया था, जिसमें 140 से ज्यादा जानें गई थीं। इस हादसे में भाई और भाभी को खोने वाले याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई कि मामले की स्वतंत्र जांच हो सोमवार को चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अगुआई वाली बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता स्वतंत्र जांच और मुआवजे आदि की अपनी मांग को हाई कोर्ट के सामने रख सकते हैं।
CJI ने संदर्भ से हटकर क्लिप के प्रसार पर चिंता व्यक्त की
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग के लिए एक स्वतंत्र मंच बनाने पर विचार कर रहा है ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए पूरी प्रक्रिया को संस्थागत बनाया जा सके। सार्वजनिक और संवैधानिक महत्व वाले मामलों की लाइव स्ट्रीमिंग के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह द्वारा दायर एक आवेदन पर सुनवाई करते हुए, भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने मौखिक रूप से कहा कि अधिकांश उच्च न्यायालय इसे YouTube पर स्ट्रीमिंग की बात कर रहे हैं। हमने अब सोचा कि लाइव-स्ट्रीमिंग करने के लिए हमारे पास अपना मंच हो सकता है ... हम एक संस्थागत प्रक्रिया चाहते हैं। महामारी के दौरान, हमें इसे "करना" था तदर्थ तरीके से। अब, हम जो करते हैं वह आने वाली पीढ़ी के लिए होगा। यह एक जटिल और बड़ा देश है, हमें इसे भी ध्यान में रखना होगा।