By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jun 08, 2020
पृथ्वी के निर्माण से लेकर उसके अस्तित्व को बचाए रखने तक में महासागरों की बड़ी भूमिका है। कहा जाता है कि धरती पर जीवन की उत्पत्ति महासागरों से ही हुई थी। पृथ्वी पर पर्यावरण संतुलन से लेकर हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विरासत को बनाए रखने में भी महासागरों का महत्वपूर्ण योगदान है।
महासागरों के महत्व को जानने उन्हें समझने और महासागरों में बढ़ते प्रदूषण के खतरों और उनके संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 8 जून को ‘विश्व महासागर दिवस’ मनाया जाता है। 1992 में रियो डी जनेरियो के पृथ्वी ग्रह फोरम में विश्व महासागर दिवस को मनाने का फैसला लिया गया, उसके बाद वर्ष 2008 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मान्यता मिलने के पश्चात साल 2009 से प्रतिवर्ष विश्व भर में महासागर दिवस मनाया जा रहा है। प्रति वर्ष इस दिन की एक खास थीम रखी जाती है, पिछले वर्ष जहां 8 जून 2019 को इसे थीम ‘जेंडर एंड ओशन’ पर मनाया गया था वहीं इस साल 8 जून 2020 को विश्व महासागर दिवस की थीम ‘एक सतत महासागर के लिए नवाचार’ रखी गई है, नवाचार का मतलब नए तरीको, विचारों से है, जो मौलिक रूप से आशाप्रद हों।
महासागर पृथ्वी के विशाल क्षेत्र में फैले अथाह जल का भंडार होने के साथ ही अपने अंदर व आसपास अनेक पारिस्थितिक तंत्रों का निर्माण करते हैं जिससे उन स्थानों पर अनेक छोटे-छोटे जीवधारी, पौधे, जानवर, अणुजीव और वनस्पतियाँ पनपती हैं। हमारी पृथ्वी का लगभग 70 प्रतिशत भाग महासागरों से घिरा है, पृथ्वी पर उपलब्ध समस्त जल का लगभग 97 प्रतिशत जल इन महासागरों में ही है।
एक अनुमान के अनुसार समुद्रों में जीवों की तकरीबन दस लाख प्रजातियां मौजूद हैं। सबसे विशालकाय जीव व्हेल से लेकर अनेकों सूक्ष्म जीवों का आवास, आश्रय महासागरों में ही है। धरती का मौसम निर्धारित करने में भी महासागर प्रमुख कारक हैं। दुनिया की करीब 30 फीसदी आबादी महासागरों के तटीय इलाकों में रहती है। इस आबादी का जीवन महासागरों पर ही निर्भर है। जीवन जीने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन का 70 प्रतिशत महासागरों द्वारा निर्मित होता है।
पृथ्वी पर महासागरों के महत्व को समझते हुए हमारा ध्यान महासागरों के अस्तित्व को अक्षुण्ण रखने की ओर अवश्य जाना चाहिए।
पृथ्वी पर फैले प्रदूषण का असर अब महासागरों में भी दिखाई देने लगा है। समुद्र में ऑक्सीजन का स्तर लगातार घटता जा रहा है और तटीय क्षेत्रों से समुद्री जल में भारी मात्रा में प्रदूषणकारी तत्वों के मिलने से समुद्री जीव-जन्तुओं का जीवन संकट में हैं। समुद्र में तेलवाहक जहाजों से तेल के रिसाव के कारण जल मटमैला हो जाता है जिससे सूर्य का प्रकाश उसकी गहराई तक न पहुँच पाने के कारण वहां जीवन को पनपने में भी परेशानी होती है, जिससे महासागरों की जैव-विविधता प्रभावित हो रही है।
8 जून ‘विश्व महासागर दिवस’ पर हम सभी का कर्तव्य है की मिलकर संकल्प लें कि समुद्रों को साफ-सुथरा प्रदूषण रहित रखने के लिए पूर्ण जिम्मेदारी के साथ पूरा योगदान देंगे। विश्व महासागर दिवस पर आइये जानते हैं हमारे पाँच प्रमुख महासागरों- प्रशांत महासागर, हिन्द महासागर, अटलांटिक महासागर, अंटार्कटिका महासागर और आर्कटिक महासागर के बारे में खास बातें-
प्रशांत महासागर पृथ्वी पर सबसे बड़ा महासागर है, पृथ्वी की सतह का यह लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा है। इस महासागर की गहराई 35 हजार फुट और आकार त्रिभुजाकार है। प्रशांत महासागर में करीब 25,000 द्वीप हैं। इस महासागर को ‘शांतिपूर्ण समुद्र’ के नाम से भी जाना जाता है।
अटलांटिक महासागर क्षेत्रफल और विस्तार की दृष्टि से दुनिया का दूसरे सबसे बड़ा महासागर है, इसके पास पृथ्वी का 21 प्रतिशत से अधिक भाग है। अटलांटिक महासागर का आकार अंगे्रजी के 8 की संख्या के जैसा है। इस महासागर की कुछ वनस्पतियां खुद से चमकती हैं क्योंकि यहां सूर्य की रोशनी नहीं पहुंचती।
हिंद महासागर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा महासागर है, यह धरती का लगभग 14 प्रतिशत हिस्सा है। हिंद महासागर को ‘रत्नसागर’ नाम से भी जाना जाता है। यह इकलौता ऐसा महासागर है जिसका नाम किसी देश के नाम पर रखा गया है।
अंटार्कटिका महासागर चौथा सबसे बड़ा महासागर है। इसे 'ऑस्ट्रल महासागर’ के नाम से भी जाना जाता है। इस महासागर में आइसबर्ग तैरते हुए देखे जाते हैं। अंटार्कटिका की बर्फीली जमीन के अंदर 400 से भी अधिक झीलें हैं।
आर्कटिक महासागर पांच महासागरों में सबसे छोटा और उथला महासागर है इसे ‘उत्तरी ध्रुवीय महासागर’ भी कहते है। सर्दियों में यह माहसागर पूर्णतः समुद्री बर्फ से ढका रहता है।
- अमृता गोस्वामी