नयी दिल्ली। सरकार ने कई कार्यक्रम संचालित किये हैं, सैकड़ों एनजीओ ने एचआईवी/ एड्स के बारे में जागरूकता उत्पन्न की है लेकिन जब बात एचआईवी पीड़ितों को सही इलाज मिलने की आती है तो काफी अंतर रहता है, ऐसा मोटे तौर पर इससे जुड़े सामाजिक कलंक और जानकारी के अभाव के चलते है। विश्व एड्स दिवस की पूर्व संध्या पर विशेषज्ञों ने कहा कि सरकार के अलावा यह एचआईवी पीड़ित व्यक्तियों पर भी है कि वे आगे आयें और अपनी कहानी बतायें ताकि इससे पीड़ित अधिक संख्या में सामने आयें और इलाज प्राप्त करें। उन्होंने कहा कि इससे यह भी होगा कि इससे जुड़ा सामाजिक कलंक मिटेगा।
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इंडिया एचआईवी/एड्स अलायंस के साथ कार्यरत एचआईवी कार्यकर्ता मोना बलानी ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में इसके बारे में जागरूकता निश्वित रूप से बढ़ी है लेकिन अभी भी कई ऐसे एचआईवी पीड़ित हैं जो उचित चिकित्सकीय सहायता एवं देखभाल से वंचित हैं। उन्होंने कहा, ‘पूरे देश में करीब 12 लाख लोग इलाज प्राप्त कर रहे हैं लेकिन करीब 25 लाख प्रभावित हैं। इसलिए हमें बाकी 13 लाख तक पहुंच बनाने और उन्हें यह बताने की जरूरत है कि इलाज कितना जरूरी है।’ उन्होंने कहा, ‘हमारा पहला प्रयास यह होना चाहिए कि हम लोगों को आगे आने के लिए सक्षम बनायें। यही कारण है कि मैं आज इस मुद्दे पर बोल पा रही हूं। मुझे काफी प्रयास करने पड़े और मुझे अपनी कहानी बताने के लिए प्रशिक्षण और एक मंच दिया गया। हजारों ऐसे हैं जिनमें साहस नहीं है।’
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दिल्ली स्थित एनजीओ ‘नेशनल कोएलिशन आफ पीपुल लिविंग विद एचआईवी इन इंडिया’ के साथ काम करने वाले एचआईवी कार्यकर्ता फिरोज खान ने कहा कि सरकार नागरिक समाज की मदद से जो कर रही है वह प्रशंसनीय है लेकिन जब तक कोई एचआईवी पीड़ित व्यक्ति नहीं बोलेगा यह आधा प्रयास होगा। खान को 17 वर्ष की आयु में पता चला कि उन्हें एचआईवी है। वह उसके बाद से एचआईवी/ एड्स के बारे में जागरूकता उत्पन्न करने के लिए एनजीओ के साथ काम कर रहे हैं। वह इसके साथ ही दिल्ली विश्वविद्यालय से लॉ भी कर रहे हैं।