क्या 2026 तक सच में खत्म हो जाएगी नक्सलवाद की समस्या, शादी से पहले क्यों करा दी जाती है नक्सलियों की नसबंदी?

By अभिनय आकाश | Dec 16, 2024

हरेक इंसान को अपने जीवन में कुछ बुनियादी चीजों मसलन, भोजन-कपड़ें और घर के साथ साथ बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और अपने अधिकारों के साथ सम्मान पूर्वक जीवन जीने की चाह रखता है। अगर कोई सरकार अपने लोगों की इन बुनियादी चीजों को पूरा न कर पाए तो लोग अपनी ही सरकार के विरोधी हो जाते हैं। यहीं से इन विद्रोही लोगों के मन में अलगाव की भावना पैदा होती है। अक्सर ये भावना देश में अलगाववाद और उग्रवाद को जन्म देती है। नक्सली कहिए, नक्सलबाड़ी कहिए या फिर नक्सलवाद और हां अंग्रेजी का नक्सलिज्म भी। ये सारे शब्द सुनकर जेहन में क्या आता है? गोली-बारूद से थड़थड़ाते जंगल, हथियार लिए कुछ लोग, बारूदी सुरंगें या मिट्टी या खून से सने जवान। आप सब ने इतिहास की किताबों में पढ़ा होगा और अपने बड़े बुजुर्गों से सुना भी होगा कि वर्ष 1962 में चीन ने हमारे देश पर हमला किया था और फिर युद्ध में भारत को हरा भी दिया। आप सब को ये भी पता होगा कि युद्ध से पहले और युद्ध के दौरान हमारे ही देश के कुछ लोग वामपंथी विचारधारा के नाम पर चीन का समर्थन कर रहे थे और भारत का विरोध। उनकी अंदर की इच्छा यही थी कि चीन भारत पर कब्जा कर ले। पर जब ये नहीं हुआ तो इन्होंने निराश होकर युद्ध के पांच साल बाद 1967में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से एक ऐसे आंदोलन की शुरुआत की जिसके पीछे पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के संस्थाक माओ त्से तुंग का विचार था। माओ त्से का मानना था कि राजनीतिक सत्ता बंदूक की नली से निकलती है। वो कहते थे कि राजनीति रक्तपात रहित युद्ध है और युद्ध रक्त पात युक्त राजनीति है। भारत में माओ के विचारों को चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने आगे बढ़ाया। जो ये मानते थे कि गरीबों को उनका हक दिलाने के लिए सरकार का बंदूक और बारूद के सहारे विरोध करना चाहिए और सरकार को बदल देना चाहिए। नक्सलवाद, माओवाद, अर्बन नक्सल ये सब आज भी बंदूक और बारूद वाले विचारों से भरे हुए हैं। 

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नक्सलवाद की पूरी कहानी क्या है? 

शुरुआत करते हैं उस गांव से जहां से इन सब की बुनियाद पड़ी। पश्चिम बंगाल में एक छोटा सा गांव नक्सलबाड़ी है। 25 मई साल 1967 में बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी का राज था। किसान आंदोलन अपने चरम पर था। जमींदारों के खिलाफ किसानों में जबरदस्त नाराजगी थी। ऐसे में अपने जमीन के हक में और जमींदारों के शोषण के खिलाफ किसानों ने विद्रोह शुरु कर दिया। लेकिन ये कोई खाली हाथ उठा कर नारे लगाने वाला विद्रोह नहीं था। ये मुट्ठीयां भींच कर हथियार उठाए बगावत थी। इस हथियारबंद आंदोलन की कमान चारू मजूमदार, कानू सान्याल और जंगल संथाल के हाथों में थी। नक्सलबाड़ी आंदोलन की हवा खेतों, जंगलों और जमीन से होती हुई देश के कई हिस्सों में फैल गई। निशाने पर जमींदार और किसानों को प्रताड़ित करने वाले बड़े लोग। कम्युनिस्टों के अलग अलग संगठन बनने लगे। शुरुआत में इसके नियम और कानून लिखने की जिम्मेदारी चारू मजूमदार पर थी। साल 1969 में सीपीआईएमएल का गठन हुआ। 70 के दशक में ये विद्रोह काफी लोकप्रिय हुआ। हक के नाम पर शुरु किया आंदोलन हथियार उठाने की बात करता था। साल 1972 में चारू मजूमदार की पुलिस हिरासत में मौत हो गई। 

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2026 नक्सलवाद के खात्मे का वादा

केंद्र और राज्य सरकार छत्तीसगढ़ और देश को नक्सलमुक्त बनाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। केंद्र सरकार का दावा है कि 31 मार्च 2026 तक छत्तीसगढ़ और देश से नक्सलवाद का पूर्णतः खात्मा हो जाएगा। जब छत्तीसगढ़ नक्सल मुक्त हो जाएगा तो पूरा देश इस समस्या से निजात पा लेगा। पिछले एक साल में छत्तीसगढ़ पुलिस ने नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। कि राज्य में पिछले एक साल में 287 नक्सलियों को ढेर किया गया, 1,000 को गिरफ्तार किया गया और 837 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया।

आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के लिए 15,000 घरों को मंजूरी 

पीएम मोदी ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के लिए 15,000 घरों को मंजूरी दी, जबकि राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड ऐसे परिवारों के लिए कम से कम एक गाय या भैंस उपलब्ध कराएगा ताकि वे हर महीने 15,000 रुपये से 20,000 रुपये कमा सकें। गृह मंत्री ने कहा कि सरकार 2036 में अहमदाबाद में ओलंपिक खेलों की मेजबानी करने की तैयारी कर रही है और 2025 की शुरुआत में लगभग 35,000 युवाओं को प्रशिक्षित किया जाएगा ताकि भारत अधिक से अधिक पदक जीत सके। उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूं कि 2036 के ओलंपिक में बस्तर से कोई कम से कम एक पदक जीते। शाह के साथ बातचीत में पूर्व नक्सलियों ने बताया कि वे पुलिस और निजी क्षेत्र में नौकरियों तथा अपना उद्यम शुरू करने के लिए बैंक ऋण सहित विभिन्न सरकारी योजनाओं से किस तरह लाभान्वित हो रहे हैं।

शादी से पहले नक्सलियों की क्यों करा दी जाती है नसबंदी?

माओवादियों की शब्दावली में नसबंदी एक बहुत ही आम शब्द है। काडर के जो सदस्य शादी करना चाहते हैं, उसे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के वरिष्ठ आकाओं के निर्देश पर इस प्रक्रिया से गुजरने के लिए मजबूर किया जाता है। तेलंगाना के एक पूर्व माओवादी को शादी से पहले इस प्रक्रिया से गुजरने का निर्देश दिया गया था। सालों बाद, जब उसने हथियार डालकर आत्मसमर्पण कर दिया, तो उसने इस प्रक्रिया को उलटने के लिए दूसरी सर्जरी करवाई, और अंततः एक लड़के का पिता बना। वह अकेला नहीं था। बहुत से लोग जो हथियार डालकर मुख्यधारा में आ जाते हैं, वे भी इसी तरह परिवार शुरू करने के लिए प्रक्रिया को उलटने का विकल्प चुनते हैं। पूर्व माओवादी ने शाह से बातचीत करते हुए कहा, जब मैं भाकपा(माओवादी) का सदस्य था, तो मुझे ‘नसबंदी’ करानी पड़ी थी। लेकिन जब मैंने हथियार छोड़ दिए और मुख्यधारा में शामिल हो गया, तो मैंने एक और ऑपरेशन करवाया ताकि मैं पिता बन सकूं। दूसरे ऑपरेशन के बाद, मैं एक बच्चे का पिता बना। उसने बताया कि प्रतिबंधित संगठन के सदस्यों के बीच यह धारणा है कि बच्चों की देखभाल से उनका ध्यान भटकेगा और इससे उनके आंदोलन को नुकसान पहुंचेगा। यह भी आशंका है कि शादी करने वाले कार्यकर्ता आंदोलन से मुंह मोड़ सकते हैं। इसकी वजह से विवाह करने वाली किसी भी काडर के लिए नसबंदी अनिवार्य है। 

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