भविष्य के युद्धों की दशा-दिशा बदलने जा रहा है America, रोबोट लड़ाके छुड़ाएंगे Russia-China जैसे दुश्मनों के छक्के

By नीरज कुमार दुबे | Sep 01, 2023

बदलते वैश्विक परिदृश्य में तकनीक की वजह से बड़े बदलाव आ रहे हैं। इन बदलावों के चलते ही माना जा रहा है कि भविष्य में होने वाले युद्ध पारम्परिक युद्धों की तरह मैदान में नहीं लड़े जाएंगे। इस संभावना को देखते हुए विभिन्न देश अपनी-अपनी रक्षा तैयारियों में आज और आने वाले भविष्य की जरूरत के हिसाब से बदलाव कर रहे हैं। साथ ही अब विश्व स्तर पर यह भी सोचा जा रहा है कि बड़ी सेना रखने की बजाय उसे छोटा और आधुनिक रखने पर जोर दिया जाये। इसके लिए अमेरिका ने जो कदम उठाया है उम्मीद है कि अन्य देश भी उस राह पर आगे बढ़ सकते हैं। हम आपको बता दें कि अमेरिका की उप रक्षा मंत्री कैथलीन हिक्स ने एक अहम घोषणा के तहत कहा है कि उनके देश की सेना चीन की बढ़ती ताकत को देखते हुए अगले दो वर्षों में हजारों स्वायत्त हथियार प्रणालियों का उपयोग शुरू करने की योजना बना रही है। देखा जाये तो पिछले करीब एक दशक के आसपास विभिन्न स्तरों में स्वतंत्र संचालन के लिए सक्षम सैन्य प्रणालियाँ तेजी से सामान्य हुई हैं। लेकिन अमेरिकी घोषणा स्पष्ट करती है कि युद्ध का भविष्य बदल गया है और लड़ाके रोबोट का दौर आ गया है यानि एक पुराने विचार को अब हकीकत में बदलने का समय आ गया है।


हम आपको बता दें कि बीते दशक में, सैन्य उद्देश्यों के लिए उन्नत रोबोटिक प्रणालियों का खासा विकास हुआ है। इनमें से कई तो परिवर्तित वाणिज्यिक प्रौद्योगिकी पर आधारित हैं, जो स्वयं अधिक सक्षम, सस्ती और व्यापक रूप से उपलब्ध हो गई हैं। हाल ही में, ध्यान इस बात पर प्रयोग करने पर केंद्रित हो गया है कि युद्ध में इनका सर्वोत्तम उपयोग कैसे किया जाए। इसके अलावा, रूस-यूक्रेन युद्ध ने दिखा दिया है कि युद्ध में भूमिका निभाने के लिए तकनीक तैयार है। रूस-यूक्रेन युद्ध में बख्तरबंद वाहनों और तोपखाने का पता लगाने और उन पर हमला करने के लिए रोबोट हवाई वाहन का व्यापक रूप से उपयोग किया गया है। यूक्रेनी नौसेना के हमलावर ड्रोनों ने रूस के काला सागर बेड़े को पंगु बना दिया है, जिससे उनके युद्धपोत बंदरगाह से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। इसलिए देखा जाये तो कभी सैन्य रोबोट के बारे में जो सोच विचार होता था, उन्हें तैनात करने का समय अब आ चुका है।

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लेकिन सवाल उठता है कि यह कैसे, कब और कहां तैनात होंगे? इसका जवाब अमेरिका की उप रक्षा मंत्री कैथलीन हिक्स ने अपने भाषण में दिया है। उन्होंने घोषणा की है कि नया रेप्लिकेटर प्रोग्राम अगले 18 से 24 महीनों के भीतर कई डोमेन में हजारों की संख्या में जिम्मेदार स्वायत्त प्रणालियों को पेश करेगा। ‘स्वायत्त’ का अर्थ एक ऐसा रोबोट है जो मानव हस्तक्षेप के बिना जटिल सैन्य अभियानों को अंजाम दे सकता है। इसके अलावा ‘एट्रिटेबल’ का अर्थ है कि यह रोबोट इतना सस्ता है कि उच्च प्राथमिकता वाले मिशन में इसे जोखिम में डालने तथा खोने का खतरा मोल लिया जा सकता है। ऐसा रोबोट पूरी तरह से अपघटीय (डिस्पोजेबल) होने के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया है, लेकिन यह बहुत किफायती होगा इसलिए इन्हें बड़ी संख्या में खरीदा जा सकता है और युद्ध के नुकसान की भरपाई की जा सकती है। इसके अलावा, ‘एक से अधिक डोमेन’ से तात्पर्य ज़मीन पर, समुद्र में, हवा में और अंतरिक्ष में रोबोट की तैनाती से है। संक्षेप में कहा जाए तो सभी प्रकार के कार्यों के लिए हर जगह रोबोट तैनात किए जा सकते हैं।


रोबोट मिशन के बारे में और विस्तार से बात करें तो यह साफ दिखता है कि अमेरिकी सेना के लिए, रूस एक ‘गंभीर खतरा’ तो है ही साथ ही चीन भी ‘लगातार तेज होती चुनौती’ है। इसलिए अमेरिका की प्राथमिकता है कि चीन के खिलाफ अपनी सैन्य क्षमताओं को मजबूत बनाया जाये। हम आपको बता दें कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी में अधिक लोग, अधिक टैंक, अधिक जहाज और अधिक मिसाइलें इत्यादि हैं। दूसरी ओर, अमेरिका के पास भले ही चीन से बेहतर गुणवत्ता वाले उपकरण हो सकते हैं, लेकिन चीन सैनिकों और रक्षा उपकरणों की संख्या के मामले में बाजी मार ले जाता है। इसलिए रेप्लिकेटर प्रोग्राम अब हजारों ‘एट्रिटेबल ऑटोनॉमस सिस्टम’ का त्वरित निर्माण कर, अमेरिका को भविष्य के संभावित युद्ध जीतने में मदद करेगा।


इसके अलावा, अमेरिका का मानना है कि चीन का ताइवान को लेकर जो रुख है उससे तनाव के संघर्ष में तब्दील होने की आशंका है। ऐसे में रोबोट किसी भी बड़े चीनी आक्रमण को बेदम करने में अमेरिका के लिए निर्णायक हो सकते हैं। इसके अलावा अमेरिका और आगे की बात सोच रहा है। दरअसल रेप्लिकेटर अभियान का लक्ष्य लंबी अवधि के लिए रोबोट का बड़े पैमाने पर उत्पादन कर एक नया रक्षा व्यवसाय खड़ा करना भी है।


जहां तक अमेरिका के इस नये और बड़े कदम की बात है तो यह स्पष्ट है कि यदि अमेरिका इस राह पर आगे बढ़ता है तो वह बड़ी संख्या में स्वायत्त प्रणालियां तैनात करने वाला पहला देश हो सकता है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि अन्य देश उससे बहुत पीछे होंगे। माना जाता है कि चीन भी लड़ाई लड़ने वाले रोबोट बना रहा है। इसलिए चीन को कम नहीं आंका जा सकता, क्योंकि उसके पास कृत्रिम बुद्धिमत्ता और लड़ाकू ड्रोन उत्पादन में महारत है। हम आपको यह भी बता दें कि स्वायत्त सैन्य ड्रोन की अधिकतर तकनीक व्यापक रूप से उपलब्ध है। लीबिया और इज़राइल तथा कुछ अन्य देशों द्वारा स्वायत्त हथियार प्रणालियां तैनात किए जाने की खबरें भी हाल में सामने आई हैं। यही नहीं, तुर्की निर्मित ड्रोन यूक्रेन युद्ध में महत्वपूर्ण साबित हुए हैं। ऑस्ट्रेलिया भी स्वायत्त हथियारों की संभावनाओं में गहरी दिलचस्पी रखता है। ऑस्ट्रेलियाई रक्षा बल आज एमक्यू-28 घोस्टबैट स्वायत्त फास्ट जेट एयर वाहन, रोबोट प्रणाली वाले बख्तरबंद वाहन, रोबोट लॉजिस्टिक ट्रक और रोबोट पनडुब्बियों का निर्माण कर रहा है। वह तिमोर सागर में समुद्री सीमा निगरानी के लिए ब्लूबॉटल रोबोट सेलबोट का उपयोग कर रहा है। एक ऑस्ट्रेलियाई कंपनी ‘एसवाईपीएक्यू’ यूक्रेन के लिए अपने कई सस्ते, कार्डबोर्ड से बने ड्रोन भेज रही है।


बहरहाल, अमेरकी उप रक्षा मंत्री के ऐलान के बाद इस बारे में चर्चाएं चल रही हैं कि क्या एक नई बहादुर सेना का निर्माण हो रहा है। साथ ही इस बारे में चर्चाओं के दौरान कुछ चिंताएं भी उभर कर आई हैं। दरअसल, स्वायत्त प्रणालियों के बारे में एक बड़ी चिंता यह है कि क्या उनका उपयोग सशस्त्र संघर्ष के कानूनों के अनुरूप हो सकता है? इस बारे में आशावादियों का तर्क है कि रोबोटों का प्रोग्राम सावधानीपूर्वक इस तरह तैयार किया जा सकता है कि वे नियमों का पालन करें क्योंकि गर्मी और लड़ाई के दौरान भ्रम की स्थिति में वे नियमों का मनुष्यों से बेहतर पालन कर सकते हैं। दूसरी ओर, निराशावादी यह कहते हुए विरोध करते हैं कि सभी स्थितियों का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता और रोबोट से समझने तथा हमला करने में भूल हो सकती है जो नहीं होना चाहिए। यहां हम आपको यह भी बता दें कि पहले की स्वायत्त सैन्य प्रणालियों में, फालैंक्स क्लोज-इन पॉइंट डिफेंस गन और सतह से हवा में मार करने वाली पैट्रियट मिसाइल दोनों ने खराब प्रदर्शन किया जो सभी के लिए नुकसानदेह था। खैर... देखना दिलचस्प होगा कि रोबोट भविष्य के युद्ध कैसे लड़ते हैं?


-नीरज कुमार दुबे

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