By अंकित सिंह | Feb 26, 2022
रूस और यूक्रेन के बीच जंग छिड़ी हुई है। इस जंग की वजह से लगभग 20000 के आसपास भारतीय यूक्रेन में फंसे हुए हैं। यूक्रेन में फंसे हुए ज्यादातर भारतीय लोगों में छात्र हैं जो कि वहां मेडिकल एजुकेशन के लिए गए हुए थे। आश्चर्य की बात यह है कि भारत में इतने सारे मेडिकल शिक्षण संस्थान हैं, बावजूद इसके यहां के छात्र इतनी बड़ी तादाद में यूक्रेन में मेडिकल की शिक्षा ग्रहण क्यों कर रहे हैं? यूक्रेन की शिक्षा और विज्ञान मंत्रालय के माने तो वहां भारत के 18095 से अधिक छात्र हैं। भारत के विभिन्न हिस्सों के छात्र यूक्रेन के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न कॉलेजों से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे हैं।
-यूक्रेन में मेडिकल के शिक्षा का सबसे बड़ा कारण तो यह है कि वह भारत की तुलना में पढ़ाई मैं खर्च काफी कम है। इसके अलावा जिन छात्रों को भारत के शिक्षण संस्थानों में प्रवेश नहीं मिल पाता है वह भी यूक्रेन जाना पसंद करते हैं। भारत में मेडिकल शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पात्रता शाह प्रवेश परीक्षा यानी कि NEET को उच्च प्रतिशत से पास करने की जरूरत होती है। इसकी बड़ी वजह यह है कि भारत में कड़ी प्रतिस्पर्धा है।
- जो छात्र NEET की परीक्षा में बेहतर रैंक नहीं ला पाते हैं और भारत के बढ़िया सरकारी कॉलेज नहीं मिल पाता है, वह यूक्रेन में आसानी से एडमिशन पा जाते हैं।
- NEET की परीक्षा में हर साल लाखों छात्र भारत में शामिल होते हैं। लेकिन सीटें काफी सीमित है। यही कारण है कि उन्हें सरकारी कॉलेज नहीं मिल पाता है और वे प्राइवेट कॉलेजों में एडमिशन लेते हैं। भारत में प्राइवेट कॉलेजों में एमबीबीएस की फीस 10 से 12 लाख प्रति वर्ष है जबकि यूक्रेन में 1 साल की पढ़ाई के खर्चे 2 से 3 लाख है।
- यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई की वैल्यू दुनियाभर में होती है। यूक्रेन की मेडिकल डिग्री को विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूरोपीय काउंसिल और अन्य वैश्विक संस्थानों से भी मान्यता मिली हुई है। यही कारण है कि वहां अधिकतर भारतीय पढ़ाई के लिए जाते हैं।
- यूक्रेन से पढ़ कर आने वाले छात्रों को भारत में बढ़िया पैकेज मिल जाता है। हालांकि यूक्रेन से पढ़ाई करके आने के बाद उन्हें भारत में प्रैक्टिस शुरू करने के लिए एक जरूरी टेस्ट भी देना पड़ता है।
- यूक्रेन में मेडिकल की शिक्षा लेने के बाद आपको विदेश में बसने का एक अच्छा मौका भी मिल जाता है। यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई करने के बाद छात्रों को यूरोप की नागरिकता आसानी से मिल सकती है। यही कारण है कि वहां ज्यादा भारतीय छात्र जाते हैं।