दुनिया का सबसे भयंकर परमाणु हादसा, एक रात में मुर्दा हो गया था पूरा शहर, रूसी हमले के बाद इसे दोहराने का डर जता रहा यूक्रेन
यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने चेतावनी दी कि रूसी कब्जे वाले बल संयंत्र पर नियंत्रण हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। यूक्रेन के विदेश मंत्रालय ने रूस के आक्रमण को जारी रखने पर एक और परमाणु आपदा की चेतावनी दी।
युद्ध के बाद रूसी सेना उत्तरी यूक्रेन में चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र पर कब्जा कर लिया। चेर्नोबिल मानव इतिहास में सबसे भयंकर परमाणु हादसाओं में से एक है। इस संयंत्र में अप्रैल, 1986 में दुनिया की सबसे भीषण परमाणु दुर्घटना हुई थी, जब एक परमाणु रिएक्टर में विस्फोट के बाद पूरे यूरोप में रेडिएशन फैल गया था। रूस द्वारा आक्रमण के पहले दिन ही यूक्रेन के सैन्य बलों ने संयंत्र पर कब्जा कर लिया और चेर्नोबिल के कई कर्मचारियों को बंधक बना लिया। हमला किसी भी तरह से अप्रत्याशित नहीं था। त्याशित नहीं था। यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने चेतावनी दी कि रूसी कब्जे वाले बल संयंत्र पर नियंत्रण हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। यूक्रेन के विदेश मंत्रालय ने रूस के आक्रमण को जारी रखने पर एक और परमाणु आपदा की चेतावनी दी। ऐसे में आपको रणनीति रूप से अहम चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र के बारे में बताते हैं। जहां 1986 में दुनिया ने सबसे बड़ी तकनीकी आपदा देखी थी और 93 हज़ार से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी।
चेर्नोबिल हादसा दोहराने का डर जता रहा यूक्रेन
यूक्रेन के विदेश मंत्रालय ने ट्वीट के जरिये चेर्नोबिल आपदा जिसके कारण हजारों लोग मारे गए थे उसके बारे में जिक्र करते हुए कहा कि अगर रूस युद्ध जारी रखता है, तो 2022 में चेरनोबिल फिर से हो सकता है। यूक्रेन के अधिकारियों ने कहा कि यह कहना असंभव है कि चेर्नोबिल परमाणु ऊर्जा संयंत्र सुरक्षित है। यह संयंत्र राजधानी कीव के उत्तर में 130 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पश्चिमी सैन्य विश्लेषकों का कहना है कि चेर्नोबिल पर कब्जा करने में रूस बेलारूस से सबसे तेज़ आक्रमण मार्ग का उपयोग कर रहा था।
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पूरी तरह तबाह है तो क्यों किया कब्जा ?
चेर्नोबिल सैन्य लिहाज से बहुत अहम नहीं है, लेकिन इसकी लोकेशन अहम है। यह बेलारूस के रास्ते कीव तक पहुंचने का आसान रास्ता है। बेलारूस की सीमा से इसकी दूरी महज 20 किलोमीटर है। रूसी सुरक्षा सूत्र ने न्यूज एजेंसी को बताया कि रूस इस न्यूक्लियर रिएक्टर को नियंत्रित करना चाहता है ताकि नाटो को सैन्य दखल न करने का संकेत दिया जा सके।
यूक्रेन की रक्षा में कमजोर है यह स्थान
चेर्नोबिल बेलारूस के रास्ते कीव तक पहुंचने का आसान रास्ता है। इसलिए यूक्रेन पर हमला करने वाली रूसी सेना के लिए हमले की तार्किक रेखा के साथ चलता है। बेलारूस की सीमा से इसकी दूरी महज 20 किलोमीटर है। ब्रिटेन में यूक्रेन के राजदूत वादिम प्रिस्टाइको के अनुसार, 'चेर्नोबिल पर हमला इसलिए किया गया क्योंकि इसे यूक्रेन की रक्षा करने के लिए कमजोर स्थान माना जाता है। यह क्षेत्र सुरक्षित नहीं है क्योंकि वहां रेडिएशन है, वहां कोई नहीं रहता है। वे अब हमारी सीमाओं के माध्यम से इस विशेष असुरक्षित हिस्से में आए हैं।' उनका कहना था कि यह कब्जा दुनिया को संदेश है।
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परमाणु संयंत्र पर कामकाज सामान्य
रूस रूस का कहना है कि चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र पर कामकाज सामान्य रूप से चल रहा है और स्टेशन पर रेडिएशन की निगरानी की जा रही है। सुरक्षा में तैनात यूक्रेन की एक बटालियन के साथ समझौता हुआ है।
सोवियत की 9वीं ऑटोमोग्राड सिटी
1991 के विघटन से पहले यूक्रेन भी सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करता था। लेकिन विघटन के बाद ये एक अलग देश बन गया और इसकी राजधानी कीव है। कीव के उत्तरी हिस्से में एक जगह जिसे चेर्नोबिल कहा जाता है। ये 1980 के दौर की बात है। अमेरिका इस दौर में आर्थिक रूप से काफी तेजी से तरक्की कर रहा था। जबकि उनकी अपेक्षा में सोवियत संघ के कई क्षेत्र ढंग से प्रदर्शन नहीं कर पा रहे थे। जिसके बाद सोवियत के नीति निदेशकों ने एक नया शहर बसाने का निर्णय लिया। इसके लिए उस वक्त के सोवियत के हिस्से यूक्रेन के पास एक शहर बसाने की योजना हुई, जहां बहुत सारे लोगों को बसाने का भी प्लान बनाया गया। जहां आर्थिक गतिविधियां भी किए जाने का प्लान बनाया गया जिससे देश की अर्थव्यवस्था को आगे ले जाया जा सके। इसका नाम प्रीप्यत रखा गया। प्रीप्यत एक बहुत ही मॉर्डन सिटी होने वाला था। अब एक बड़ा शहर वहां बनाना था तो बिजली की जरूरत तो होनी ही थी। उसके लिए प्रीप्यत के पास ही एक छोटे से शहर चेर्नोबिल को लेकर सोविसत सरकार ने न्यूक्लियर पॉवर प्वांट बनाने का फैसला किया। वैसे इसका ऑफिसियल नाम VI लेनिन एटोमिक पॉवर प्लांट था। ये सोवियत की 9वीं ऑटोमोग्राड सिटी होने वाली थी। ऑटोमोग्राड एटोमिक सिटी के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला रशियन शब्द है। प्रिप्यत को बसाए जाने के बाद तीन से चार लाख लोगों को यहां लाए जाने की योजना थी।
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क्या था चेर्नोबिल परमाणु आपदा
1982-83 के दौर में चर्नोविल का पॉवर प्लांट का काम लगभग पूरा हो चुका था। उधर अमेरिका की अर्थव्यवस्था भी काफी तेजी से आगे बढ़ रही थी। प्रिप्यत के डिफेंस के लिए सोविसत के नेता इतने ज्यादा चिंतित थे कि वहां एक ओवर द हाराइजन रडार सिस्टम भी विकसित कर दिया। ये एक बेलस्टिक मिसाइल अर्ली वॉर्निग सिस्टम था। मतलब, कल को प्रिप्यत पर कोई हमला होता है तो इसकी जानकारी पहले ही सोविसत सेना को मिल जाए। इसके पीछे की वजह थी चेर्नोबिल के पॉवर प्लांट को सुरक्षित रखना। क्योंकि इससे काफी तबाही मच सकती थी। लेकिन आगे की राह बेहद कठिन होने वाली थी। चेर्नोबिल न्यूक्लियर पॉवर प्लांट में कुल चार यूनिट थे। पहला 1977 में जबकि दूसरा 1978, तीसरा 1981 जबकि चौथा 1983 में तैयार हुआ।
चेर्नोबिल बना मौत का न्यूक्लियर प्लांट
26 अप्रैल के तड़के 1:23 बजे प्लांट की बिजली गुल हो जाती है। इसके बाद दिन में इस बात की जांच के लिए एक नियमित अभ्यास किया गया कि क्या बिजली गुल होने से प्लांट के आपातकालीन वॉटर कूलिंग सिस्टम काम करेगा या नहीं। लेकिन कुछ सेंकेड के भीतर ही रिएक्टर नंबर चार में अनियंत्रित भाप के रूप में दबाव बनने लगा। भाप के इस दबाव के चलते रिएक्टर की छत उड़ गई। इससे रेडिएशन और रेडिएक्टिव मलबे का गुबार बाहर निकलने लगा। दो से तीन सेंकेड बाद ही एक दूसरा धमाका हुआ और अतिरिक्त ईंधन बहने लगा। रिएक्टर नंबर तीन की छत पर आग लग गई और अब प्लांट में खतरा मंडराने लगा। ऐसी दुर्घटना के समय ऑटोमैटिक सेफ्टी सिस्टम को काम करना होता था, लेकिन परीक्षण की वजह से इसे बंद कर दिया गया था। घटना के तुरंत बाद ही दमकलकर्मी प्लांट में पहुंचे और विस्फोट के बाद लगी आग को बुझाने लगे। इस दौरान उन्होंने रेडिएशन से बचने वाले उपकरण भी नहीं पहने हुए थे। इस कारण रेडिएशन के चलते प्लांट में मरने वाले 28 लोगों में कई दमकलकर्मी भी शामिल थे। सैकड़ों कर्मचारी न्यूक्लियर रेडिएशन की वजह से बुरी तरह से जल गए। सुबह पांच बजे तक रिएक्टर नंबर तीन को बंद कर दिया गया। 24 घंटे बाद रिएक्टर नंबर एक और दो भी बंद कर दिया गया। शुरू में तो सोवियत संघ ने इस हादसे को छिपाने की पूरी कोशिश की। मीडिया कवरेज से लेकर लोगों की आवाजाही को तुरंत रोक दिया गया था। लेकिन, स्वीडन की एक सरकारी रिपोर्ट के बाद तत्कालीन सोवियत संघ ने इस हादसे को स्वीकार कर लिया था। 14 मई तक प्रशासनिक अधिकारियों ने 30 किलोमीटर का इलाका खाली करा दिया था। इस दौरान 116,000 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया। अगले कुछ सालों में 2.20 लाख लोगों को कम रेडिएशन इलाकों में भेज दिया गया। कहा जाता है कि उस समय करीब 93 हजार लोगों की जान इस हादसे में चली गई थी। मौतों का अहम कारण कैंसर था। इसका असर यूक्रेन, बेलारूस से लेकर पूर्वी अमेरिका तक पहुंचा था। इस तरह चेर्नोबिल पावर प्लांट में शुरू हुआ एक टरबाइन टेस्ट 56 मिनट के भीतर दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु दुर्घटना में बदल गया।
-अभिनय आकाश
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