By नीरज कुमार दुबे | Oct 13, 2023
इजराइल पर हमला करने वाले आतंकवादी संगठन हमास ने सिर्फ यहूदियों को ही दर्द नहीं दिया है बल्कि दुनिया को भी दिखा दिया है कि आतंकवाद का स्वरूप कितना वीभत्स हो सकता है। जिस तरह आम लोगों का कत्लेआम किया गया वह मानवता के समक्ष खड़ी आतंकवाद रूपी सबसे बड़ी चुनौती की भयावहता को दर्शाता है। साथ ही जिस तरह हमास को समर्थन देने के लिए इस्लामिक देश एकत्रित हो रहे हैं तथा हिज्बुल्ला और उसके जैसे आतंकवादी संगठन लड़ाई में खुलकर हमास का साथ देने आ रहे हैं, वह इन आतंकी संगठनों के आपसी तालमेल से खड़ी होने वाली वैश्विक चुनौतियों की ओर भी इशारा करता है।
जहां तक हमास की बात है तो आपको बता दें कि इसका गठन 1987 के अंत में हुए पहले फिलिस्तीनी विद्रोह की शुरुआत में हुआ था। इसकी जड़ें मुस्लिम ब्रदरहुड की फ़िलिस्तीनी शाखा में हैं और इसे फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों के अंदर एक मजबूत सामाजिक-राजनीतिक संरचना का समर्थन भी मिला हुआ है। हमास समूह का उद्देश्य इज़राइल के स्थान पर एक इस्लामिक फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना करना है। हमास समूह फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन यानि पीएलओ और इज़राइल के बीच किए गए किसी समझौते को नहीं मानता है। हम आपको यह भी बता दें कि हमास की ताकत गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक के इलाकों तक ही केंद्रित है।
हमास की सैन्य शाखा को इज़ अल-दीन अल-क़सम ब्रिगेड के नाम से जाना जाता है जिसने 1990 के दशक से इज़राइल और फिलिस्तीनी क्षेत्रों में कई इज़राइल विरोधी हमले किए हैं। इन हमलों में इज़रायली नागरिक ठिकानों पर बड़े पैमाने पर बमबारी, छोटे हथियारों से हमले, सड़क किनारे विस्फोटक और रॉकेट से हमले शामिल हैं। हमास समूह ने 2006 की शुरुआत में फिलिस्तीनी क्षेत्रों में स्थनीय चुनाव भी जीते, जिससे फिलिस्तीनी प्राधिकरण पर धर्मनिरपेक्ष फतह पार्टी की पकड़ समाप्त हो गई थी। देखा जाये तो हमास ने शुरू से ही इजराइल के खिलाफ हिंसक प्रतिरोध के अपने मिशन को आगे बढ़ाने के लिए हमेशा भर्ती अभियानों को प्राथमिकता दी और लड़ाकों को प्रशिक्षण देने के लिए बड़े केंद्र भी स्थापित किये। हमास ने कई बार युद्धविराम की घोषणा भी की है लेकिन इस समय का उपयोग उसने हमेशा अपनी ताकत बढ़ाने और इजराइल पर नये सिरे से हमले करने में किया है।
आज जो लोग इस बात से दुखी हो रहे हैं कि गाजा में हो रहे इजराइली हमलों में आम लोग भी मारे जा रहे हैं उन्हें शायद यह पता नहीं है कि अधिकांश गाजा वासी हमास समर्थक हैं और किसी ना किसी रूप में हमास को सहयोग करते हैं। इसलिए आतंकवाद के समर्थकों या उसे शह देने वाले लोगों पर जब खतरा मंडरा रहा है तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। गाजा में गिरती इमारतों से जिन्हें दुख हो रहा है उन्हें पता होना चाहिए कि दुनिया की नजरों से छिपने के लिए आतंकवादियों ने उन इमारतों के बेसमेंट में या किसी कोने में अपने ठिकाने या सैन्य साजो सामान के अड्डे बना रखे थे। गाजा में लहुलूहान लोगों को देखकर चिंता होना स्वाभाविक है लेकिन यह भी पता होना चाहिए कि इस स्थिति के लिए स्थानीय लोग भी कहीं ना कहीं जिम्मेदार हैं क्योंकि यदि स्थानीय स्तर पर ही हमास का विरोध होता तो वह इतना आगे बढ़कर अपने ही लोगों की जान जोखिम में नहीं डाल पाता।
बहरहाल, हमास का गठन कैसे हुआ और इसकी विचारधारा क्या है, यदि इस बारे में बात करें तो आपको बता दें कि इस्लामवादी मुस्लिम ब्रदरहुड से जुड़े कार्यकर्ताओं ने दान, क्लीनिक और स्कूलों का एक नेटवर्क स्थापित किया और 1967 में चले छह-दिवसीय युद्ध के बाद इज़राइल के कब्जे वाले क्षेत्रों (गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक) में सक्रिय हो गए। गाजा में वह लोग कई मस्जिदों में सक्रिय थे, जबकि वेस्ट बैंक में उनकी गतिविधियाँ आम तौर पर विश्वविद्यालयों तक ही सीमित थीं। इन क्षेत्रों में मुस्लिम ब्रदरहुड की गतिविधियाँ आम तौर पर अहिंसक थीं, लेकिन कब्जे वाले क्षेत्रों में कई छोटे समूहों ने इज़राइल के खिलाफ जिहाद, या पवित्र युद्ध का आह्वान करना शुरू कर दिया था। दिसंबर 1987 में इजरायली कब्जे के खिलाफ फिलिस्तीनी इंतिफादा यानि विद्रोह की शुरुआत में हमास की स्थापना मुस्लिम ब्रदरहुड के सदस्यों और धार्मिक गुटों द्वारा की गई थी। हम आपको यह भी बता दें कि हमास एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ "उत्साह" है। इस संगठन ने अपने 1988 के चार्टर में कहा था कि फिलिस्तीन एक इस्लामी मातृभूमि है जिसे कभी भी गैर-मुसलमानों को नहीं सौंपा जा सकता है और इज़राइल से फिलिस्तीन का नियंत्रण छीनने के लिए पवित्र युद्ध छेड़ना फिलिस्तीनी मुसलमानों के लिए एक धार्मिक कर्तव्य है। हमास के इस सिद्धांत ने इसे इजराइल के साथ हमेशा के लिए संघर्ष की स्थिति में ला दिया। जो लोग हमास से हमदर्दी रख रहे हैं उन्हें इसके संस्थापकों और नेताओं के द्वारा दिये गये संबोधनों को देखना-सुनना चाहिए जिसमें उन्होंने खुद कहा है कि हमास एक नरसंहारक आतंकवादी संगठन है।
-नीरज कुमार दुबे