By कमलेश पांडेय | Jan 06, 2022
जिस देश में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्रों की वजह से दो-दो प्रधानमंत्रियों की नृशंस हत्याएं हो चुकी हों, एक प्रधानमंत्री की विदेश में हुई मौत सवालों के घेरे में हो, कतिपय मुख्यमंत्री और मंत्रियों की भी हत्याएं हो चुकी हों, वहां पर वीवीआईपी की सुरक्षा व्यवस्था में सामने आ रही चूक दर चूक की घटनाओं को इतने हल्के में नहीं लिया जा सकता, जितने कि इसे हल्के में लेने के लिए हमारे नेता और प्रशासनिक अधिकारी आदी हो चुके हैं।
वहीं, सर्वोच्च न्यायालय को भी पीएम नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में हुई ताजा चूक की घटना पर स्वतः संज्ञान लेना चाहिए, क्योंकि उसके कतिपय निर्णय ने केंद्र सरकार के हाथ बांध दिए हैं, जिससे वह अक्षम राज्य सरकार पर भी ठोस कार्रवाई करने से महज इसलिए हिचकती है कि कहीं न्यायालय उसके फैसले को पलट नहीं दे। जी हां, हमारा इशारा किसी भी लापरवाह राज्य में तत्काल राष्ट्रपति शासन लागू करने के केंद्र सरकार के फैसले कि न्यायिक समीक्षा से है, जिससे प्रतिपक्ष शासित राज्य सरकारें अब बेखौफ हो चुकी हैं!
इसलिए वीवीआईपी की सुरक्षा में चूक समेत जनहित से जुड़ी गम्भीर लापरवाही के प्रकाश में आने के बाद न्यायालय यदि त्वरित संज्ञान लेना शुरू कर दे, तो सियासत परस्त प्रशासनिक अधिकारियों की मनमर्जी पर जहां रोक लगेगी, वहीं भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था के सुचारू रूप से चलते रहने में भी आशातीत मदद मिलेगी। क्योंकि भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारी हों या राज्य प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारी, जब वे दलगत प्रतिबद्धताओं से जुड़कर निर्णय लेते अथवा टालते रहते हैं तो न केवल व्यापक जनहित प्रभावित होता है, बल्कि प्रशासनिक प्रतिष्ठा और उसकी जनसाख पर आंच आती है। जो किसी भी स्वस्थ लोकतांत्रिक परम्परा की मूल भावना के खिलाफ भी है।
बुद्धवार को पंजाब में पीएम मोदी की सुरक्षा में हुई चूक के बाद बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं के बीच हुए वाद-विवाद से जाहिर है कि हमारे नेताओं ने इससे पहले भी हुईं ऐसी ही चूक की कई घटनाएं, जिनमें शहीद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद तक शामिल हैं और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस अहम कड़ी का हिस्सा बन चुके हैं, से कोई सबक नहीं सीखी है। इस बार भी हमारे अधिकारीगण अपनी प्रशासनिक औपचारिकताएं पूरी कर लेंगे। लेकिन वीवीआईपी की सुरक्षा में चूक दर चूक पर उठते सवालों का कोई माकूल जवाब नहीं मिल पाएगा, पिछली दर्जनाधिक घटनाओं की तरह। इसलिए मेरी स्पष्ट राय है कि इन तमाम लापरवाहियों पर न्यायालय स्वतः संज्ञान ले, ताकि जंग खाये जा रहे इस सिस्टम को दुरुस्त किया जा सके।
आंकड़े इस बात की चुगली कर रहे हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में हुई ताजा चूक से पहले भी वीवीआईपी की सुरक्षा में चूक कई अन्य घटनाएं भी हुई हैं, जिसमें मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी समेत कई दिग्गज राजनेता शामिल हैं। इसलिए हम आपकी स्मृतियों को तरोताजा करने के लिए यहां बता रहे हैं कि ऐसी लापरवाही भरी घटनाएं कब-कब हुई हैं।
पहली, भाजपाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुद्धवार को जब बठिंडा, पंजाब से सड़क मार्ग से हुसैनीवाला शहीद स्मारक जा रहे थे तो उनका काफिला एक फ्लाईओवर पर जाम में फंस गया और तकरीबन 20 मिनट तक पीएम यहां फंसे रहे। जिसके बाद आनन-फानन में उनका काफिला वापस लौट गया। प्रथम दृष्टया पंजाब के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक इस चूक के लिए नैतिक रूप से जिम्मेदार बनते हैं तो अंततोगत्वा वहां के मुख्यमंत्री तक जाती है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इनलोगों से इस बाबत न केवल पूछा है, बल्कि जिम्मेदारी तय करने की भी बात कही है।
दूसरी, लगभग दो माह पूर्व नवंबर 2021 में एनडीए के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की सुरक्षा में चूक का मामला भी सामने आया था। तब राष्ट्रपति कोविंद अपने गृह जनपद कानपुर, उत्तरप्रदेश के दौरे पर थे और उनके पूरे दिन के कामकाज की जानकारी सोशल मीडिया पर लीक हो गई थी, जिससे उनकी जान को खतरा हो सकता था।
तीसरी, निवर्तमान कांग्रेसी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सुरक्षा में भी बड़ी चूक मामला वर्ष 2007 में सामने आया था, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह रूस के दौरे पर निकले थे। बताया जाता है कि तब उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त होने से बाल-बाल बचा था, क्योंकि उस वक्त उनके विमान के पायलटों ने लैंडिंग के लिए जरूरी लैंडिंग गियर को नीचे नहीं किया था। जिसके बाद मॉस्को एटीसी ने इस बात की जानकारी केबिन क्रू मेंबर्स को दी, जिसके बाद जाकर विमान के पहियों को नीचा किया गया। समझा जाता है कि यदि ऐसा नहीं किया गया होता तो विमान लैंडिंग के वक्त दर्दनाक हादसा हो सकता था। बता दें कि तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत भी ताशकंद (रूस) में हो चुकी थी, इसलिए 2007 में यदि कोई अनहोनी हो गई होती, तो यह उसपर मढ़ा जाने वाले दूसरा कलंक होता, जो कि उसकी सक्रियता के कारण टल गया।
चौथी, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या 31 अक्टूबर 1984 को नई दिल्ली के सफदरगंज रोड स्थित उनके आवास पर सुबह 9:29 बजे की गई थी। बताया जाता है कि ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद उनके सिख अंगरक्षकों सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने गोली मार कर उनकी हत्या कर दी थी। इस वारदात को भी उनकी सुरक्षा की रणनीति में भारी चूक करार दिया गया था। उनकी असमय हत्या से भारत लगभग 3 दशक पीछे चला गया।
पांचवीं, 21 मई 1991 को देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तमिलनाडु में हत्या हो गई थी। बताया गया कि उन्हें मानव बम से मारा गया। तब उनकी हत्या को भी इंटेलिजेंस में भारी चूक करार दिया गया था। क्योंकि भारतीय सुरक्षा एंजेसियां यह भांपने में असफल रही थीं कि राजीव गांधी की हत्या की योजना बनाई जा रही है। उनकी असमय हत्या ने युवा भारत के सपने को तिरोहित कर दिया। उन्होंने कहा था कि मैं युवा हूँ, मेरा भी एक सपना है। भारत में उन्हें सूचना क्रांति का जनक करार दिया जाता है।
छठी, अक्टूबर 2021 में यूपी के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सुरक्षा में भी बड़ी चूक हुई थी। तब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बस्ती जनपद के दौरे पर थे। इसी दौरान पाया गया था कि उनके कार्यक्रम में एक युवक लाइसेंसी हथियार लेकर घुस गया था। यह बात दीगर है कि इस मामले में सम्बन्धित चार पुलिसकर्मियों को तब सस्पेंड कर दिया गया था। लेकिन चूक दर चूक कबतक, यह सवाल भी तब अनुत्तरित रह गया था।
सातवीं, दिसंबर 2019 में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी, मौजूदा पार्टी महासचिव और यूपी प्रभारी की सुरक्षा में भारी चूक का मामला सामने आया था, क्योंकि लोकप्रिय नेता प्रियंका गांधी के घर में तकरीबन पांच लोग घुस गए थे। बताया जाता है कि ये सभी लोग प्रियंका गांधी के साथ सेल्फी लेने के लिए घर में घुसे थे। बता दें कि वह शहीद प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुत्री और शहीद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पौत्री हैं। इसलिए उन्हें वीवीआईपी सुरक्षा के दायरे में रखा जाता है।
आठवीं, वर्ष 2021 में ही मौजूदा केंद्रीय मंत्री और मध्यप्रदेश के दिग्गज भाजपा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की सुरक्षा में बड़ी चूक हुई थी। तब बताया गया था कि मध्यप्रदेश में ही मुरैना से ग्वालियर के बीच उनकी गाड़ी की सुरक्षा के लिए तैनात एस्कॉर्ट वाहन तकरीबन आठ किलोमीटर तक किसी और गाड़ी के पीछे चलता रहा, जो कि एक भारी भूल थी। तब इस लापरवाही के लिए 14 पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया था।
यहां पर यह भी स्पष्ट कर दें कि पंजाब में तत्कालीन मुख्यमंत्री सरदार बेअंत सिंह की एक बम विस्फोट द्वारा की गई हत्या का सवाल हो, या बिहार में तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र की हत्या का प्रश्न, या फिर विभिन्न हत्याकांडों में नेताओं और अधिकारियों की हुई नृशंस हत्याओं का सवाल, उनकी वीवीआईपी या वीआईपी सुरक्षा व्यवस्था पर अक्सर सवाल उठते आये हैं। वहीं, विभिन्न थल या नभ दुर्घटनाओं में राजनेताओं या अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों-अधिकारियों की हुई मौतें भी हमेशा सवालिया घेरे में रहती आईं हैं।
इसलिए भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों से और उन्हें नियंत्रित करने वाले राजनेताओं से यह अपेक्षा की जाती है कि सत्ता पक्ष या प्रतिपक्ष के अतिरेक से खुद को बचते-बचाते हुए एक ऐसी माकूल सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करें, करवाएं ताकि ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण दिन न देखने पड़ें। एक चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था के मामले में वो दूसरे देशों से भी बहुत कुछ सीख-समझ सकते हैं, यदि जरूरत पड़े तो।
बहरहाल, भारतीय प्रशासनिक सेवाओं और राज्य प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारियों को यह समझना होगा कि उनकी जिम्मेदारी भारतीय संविधान और उस पर आधारित सतत प्रशासनिक व्यवस्था के प्रति है, जो जनहित की पूर्ति के लिए सीधे तौर पर उत्तरदायी है। राजनीतिक नेतृत्व यानी पक्ष-विपक्ष से वो तालमेल बिठाकर अवश्य चलें, लेकिन इतना याद रखें कि जब राजनीतिक उन्माद या जन उन्माद अपनी अनैतिक पराकाष्ठा पर पहुंच जाए तो उन्हें स्वविवेक का प्रयोग संवैधानिक व्यवस्था के हित में करना चाहिए, न कि दलगत प्रतिबद्धता के चलते किंतु-परन्तु को बढ़ावा देना चाहिए।
आप मानें या न मानें, लेकिन इससे किसी का दूरगामी हित नहीं सधेगा, बल्कि यह जनभावना ही परिपुष्ट होगी कि भारतीय संविधान वकीलों का स्वर्ग है और उसपर आधारित विधिव्यवस्था उनके द्वारा बरती गई लापरवाहियों से देर सबेर निजात दिला देगी, जैसा कि अबतक महसूस किया जा रहा है वीवीआईपी की सुरक्षा में चूक दर चूक पर उठते सवालों के बावजूद भी! यक्ष प्रश्न फिर वही कि इनका जवाब कौन देगा या कबतक टालता रहेगा?
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार