Chhath Puja 2024: कौन हैं छठी मैया, छठ पर्व पर सूर्य देव के साथ क्यों किया जाता है इनका पूजन?

By एकता | Nov 05, 2024

छठ महापर्व आज नहाय खाय के साथ शुरू हो गया है। इस दौरान भक्त सूर्य देव और छठ माता की पूजा करते हैं। छठ माता को आम बोलचाल की भाषा में छठी मैया भी कहा जाता है। छठी मैया एक पूजनीय हिंदू देवी हैं। मान्यताओं के अनुसार, छठी मैया सूर्य देव की बहन और देवों के देव महादेव के पुत्र कार्तिकेय की पत्नी है।


छठी मैया को ऐसी देवी माना जाता है, जो अपने भक्तों को स्वास्थ्य, समृद्धि और खुशी प्रदान करती हैं। वह प्रकृति की पोषण और सुरक्षात्मक शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं और उनकी पूजा करने से कल्याण और सद्भाव का आशीर्वाद मिलता है। इतना ही नहीं माना जाता है कि छठी मैया की पूजा करने से संतान प्राप्ति होती है एवं उनकी रक्षा का आशीर्वाद भी मिलता है।

 

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छठ पर्व से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं और धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं, जो इस पर्व के महत्व और इसकी दिव्यता को दर्शाती हैं।

महाभारत की कथा

महाभारत काल से जुड़ी एक कथा के अनुसार, जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे, तो द्रौपदी ने छठ व्रत का रखा था। उन्होंने सूर्य देव और छठी मैया की पूजा की, जिससे उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हुईं और पांडवों को उनका खोया हुआ राजपाट वापस मिल गया। यह कथा दर्शाती है कि छठ पूजा से भक्तों को कठिन परिस्थितियों से मुक्ति मिलती है।


भगवान राम और माता सीता की कथा

एक अन्य पौराणिक कथा भगवान राम और माता सीता से जुड़ी है। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान राम और सीता अयोध्या लौटे थे और उन्होंने अपना राज्याभिषेक किया था, तब उन्होंने कार्तिक मास में सूर्य देव की आराधना की थी। माता सीता ने छठ व्रत कर सूर्य देव और छठी मैया का आशीर्वाद प्राप्त किया था। इस प्रकार, यह परंपरा तब से चली आ रही है।

 

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सूर्य पुत्र कर्ण की कथा

छठ पर्व सूर्य देव की पूजा का पर्व है, और इसकी एक कथा महाभारत के सूर्यपुत्र कर्ण से जुड़ी है। कर्ण सूर्य देव के परम भक्त थे और प्रतिदिन घंटों तक सूर्य की उपासना करते थे। सूर्य देव की कृपा से ही उन्हें उनकी महान शक्तियां प्राप्त हुई थीं। यह भी माना जाता है कि कर्ण ने छठ पर्व की परंपरा को आरंभ किया था।


छठी मैया की कथा

छठी मैया को प्रकृति की देवी और संतान की रक्षा करने वाली देवी माना जाता है। एक लोककथा के अनुसार, जब राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी को संतान नहीं हो रही थी, तो उन्होंने महर्षि कश्यप के कहने पर यज्ञ किया। इस यज्ञ से उन्हें संतान प्राप्त हुई, लेकिन वह मृत पैदा हुई। तब राजा प्रियव्रत ने अपनी पत्नी के साथ कठोर तपस्या की और छठी मैया की आराधना की। दोनों की कठोर तपस्या से देवी प्रकट हुईं और उन्हें संतान का आशीर्वाद मिला।

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