महात्मा गांधी का 'ग्राम स्वराज' का सपना आखिर कब होगा पूरा?

By दीपक कुमार त्यागी | Aug 08, 2022

भारत की आज़ादी को 15 अगस्त 2022 को 75 वर्ष पूरे हो जायेंगे, भारतीय इतिहास के इस बेहद महत्वपूर्ण ऐतिहासिक अवसर को यादगार बनाने के लिए केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार आजादी की गौरवशाली 75वीं वर्षगांठ को पूरे देश में 'अमृत महोत्सव' के रूप में विभिन्न प्रकार के भव्य कार्यक्रमों का आयोजन करके धूमधाम से मना रही है। इस महोत्सव की शुरुआत 12 मार्च 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के अहमदाबाद में स्थित स्वयं महात्मा गांधी के द्वारा स्थापित ऐतिहासिक 'साबरमती आश्रम' में 'दांडी मार्च’ को हरी झंडी दिखा कर की थी। इस पल को यादगार बनाने के लिए केन्द्र सरकार देश की आजादी के 75 वर्ष पूरे होने से 75 हफ्ते पहले यानी कि 12 मार्च 2021 से ही देश में 'अमृत महोत्सव' के रूप में विभिन्न छोटे व बड़े कार्यक्रमों का आयोजन करके मना रही है, जो कि एक वर्ष बाद 15 अगस्त 2023 तक निरंतर चलते रहेंगे। आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ का यह अवसर सभी देशवासियों के लिए बेहद अहम है। हालांकि देशवासियों के मन में देश के सर्वांगीण विकास को लेकर आज भी बहुत सारे ज्वलंत सवाल उठ रहे हैं, वह देश के सिस्टम से उनका स्थाई निदान चाहते हैं, ऐसा ही एक सवाल देश के ग्रामीण अंचलों के विकास का है।


लेकिन 'अमृत महोत्सव' के इस बेहद गौरवशाली अवसर पर हम सभी देशवासियों को, देश के सभी नीति-निर्माताओं व ताकतवर कर्ताधर्ताओं को हर हाल में यह आत्ममंथन अवश्य करना चाहिए कि क्या हम लोग देश की आज़ादी के लिए प्राण न्यौछावर व संघर्ष करने वाले मां भारती के वीर सपूतों के सपनों के वास्तविक भारत का 75 वर्ष बाद भी धरातल पर वास्तव में निर्माण कर पाये हैं क्या। आज़ादी के 75 वर्ष बाद भी क्या हमारा सिस्टम देश के गांवों में निवास करने वाली सत्तर फीसदी ग्रामीण आबादी का समुचित सर्वांगीण विकास कर पाया है क्या।

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वैसे भी आजकल देश में जिस तरह का माहौल व्याप्त हो गया है, वह महात्मा गांधी के सपने को पूरा करने में व देश के सर्वांगीण विकास में खुद ही एक बहुत बड़ा बाधक है। आज सरकार व आम जनमानस को तत्काल ही इस तरह के तनाव पूर्ण माहौल को समाप्त करने के लिए धरातल पर बेहद सख्त ठोस पहल करनी चाहिए। हम लोगों को समय रहते यह समझना होगा कि सर्वांगीण विकास, एकता-अखंडता के लिए देश में शांति व आपसी भाईचारे को हर हाल में कायम रखना बेहद जरूरी है। आज जो स्थिति देश में बनी हुई है उस हाल में हम सभी देशवासियों, शासन व प्रशासन में बैठे हुए लोगों व नीति-निर्माताओं के लिए विचारणीय तथ्य यह है कि क्या देश की आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ तक भी देश में अमन चैन, शांति, अनुशासन व नियम-कायदे-कानून का राज स्थापित होकर के महात्मा गांधी के 'ग्राम स्वराज' का सपना पूरा हो पाया है क्या। आम जनमानस से यह प्रश्न पूछने पर कि देश में हर तरफ से केवल एक ही आवाज़ आयेगी कि आज़ादी के 75 वर्षों के बाद भी हम महात्मा गांधी के सपनों का भारत व 'ग्राम स्वराज' की कल्पना को धरातल पर मूर्त रूप देने में पूर्णतः विफल रहे हैं।


हालांकि देश-दुनिया में यह सर्वविदित है कि गांधीवादी विकास की अवधारणा में 'ग्राम स्वराज' का विशेष महत्व है। महात्मा गांधी हमेशा मानते थे कि आज़ाद भारत के पुनर्निर्माण में देश के ग्रामीण अंचल के क्षेत्रों का सबसे अहम योगदान रहेगा। महात्मा गांधी अच्छे से जानते थे कि गांव के पुनर्निर्माण व विकास पर ही देश का सर्वांगीण विकास निर्भर करता है, इसलिए महात्मा गांधी ने 'ग्राम स्वराज' का सपना देखा था। वैसे भी महात्मा गांधी ने जिस स्वराज की परिकल्पना की थी, वह देश में दूर-दूर तक नज़र नहीं आता है। आज 'ग्राम स्वराज' के केंद्र में वर्ष 2022 के आंकड़ों के अनुसार देश के 6,28,221 गांव विशेष रूप से आते हैं। गांधी की इस 'ग्राम स्वराज' परिकल्पना में देश के सभी गांवों को पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बनाते हुए, गांवों की स्वतंत्र, स्वावलंबी एवं प्रबंधन सत्ता का लक्ष्य हासिल करना था, लेकिन अफसोस आज आज़ादी के 75 वर्ष बाद भी गांधी का यह सपना बहुत दूर की बात बना हुआ है।


महात्मा गांधी अच्छे से जानते थे कि भारत को विश्वगुरु बनाने का रास्ता देश के गांवों से निकलता है, इसके लिए देश के ग्रामीण अंचल को हर हाल में अपने पैरों पर खड़ा करना होगा। इसलिए ही महात्मा गांधी ने 'ग्राम स्वराज' की परिकल्पना के रूप में एक बेहद विस्तृत खाका आत्मनिर्भर गांवों के एक महत्वपूर्ण विचार के साथ ताकतवर भारत की परिकल्पना को धरातल पर साकार करने के लिए भारत की आजादी से वर्षों पहले ही बना लिया था। महात्मा गांधी के इस प्रस्तावित 'ग्राम स्वराज' के सपने में देश की सत्तर फीसदी ग्रामीण आबादी के जीवन स्तर को सुधारने के लिए एक वृहद रणनीति थी। महात्मा गांधी ग्रामीण क्षेत्रों के पुनर्निर्माण के लिए देश में 'ग्राम स्वराज' की एक अनूठी अवधारणा पर कार्य करना चाहते थे। उनके इस दृष्टिकोण का मुख्य लक्ष्य देश के लाखों गांवों का विकास करते हुए वहां की ग्रामीण आबादी को अपने पैरों पर खड़ा करने का था। महात्मा गांधी यह अच्छे से जानते थे कि भारत का पुनर्निर्माण देश के ग्रामीण क्षेत्रों के पुनर्निर्माण पर ही निर्भर करता है। लेकिन अफसोस आज हमारा सिस्टम आज़ादी के 75 वर्षों के बाद भी महात्मा गांधी व देश के अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के सपनों के भारत का निर्माण करने में विफल रहा है। देश में गांवों का विकास करने का प्रयास तो किया गया, लेकिन महात्मा गांधी के 'ग्राम स्वराज' की अवधारणा के अनुरूप देश के गांवों का पुनर्निर्माण करने के मामले में हमारा सिस्टम बहुत पिछड़ गया है। जिसके चलते ही आज धरातल पर स्थित बेहद भयावह होती जा रही है, ग्रामीण अंचलों से शिक्षा, चिकित्सा जैसी मूलभूत सुविधाओं व रोजी-रोटी की तलाश में गांवों से बड़े पैमाने पर लोगों का शहरों की तरफ पलायन हो रहा है, जिसके चलते देश के विभिन्न शहरों का बहुत ही अव्यवस्थित ढंग से विस्तार होकर अंधाधुंध शहरीकरण होता जा रहा है, जिसकी वजह से शहरों में भी एक बहुत बड़ी आबादी नारकीय हालत में जीवनयापन करने के लिए मजबूर है।

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फिर भी निरंतर बड़ी संख्या में ग्रामीण आबादी गांवों से पलायन करके भारत के विभिन्न शहरी क्षेत्रों में काम धंधे की तलाश करने के लिए पहुंच रही है, क्योंकि गांव में मूलभूत सुविधाओं का पूर्ण रूप से अभाव है। उसके बावजूद भी हमारे देश का सिस्टम ग्रामीण आबादी के शहरी क्षेत्रों में पलायन करके आने के मुख्य कारणों का निदान करने में नाकाम है। वह आज़ादी के 75 वर्ष बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के दुष्कर जीवन स्तर को सरल बनाकर बेहतर बनाने में विफल रहा है। लेकिन अब वह समय आ गया है जब हमें देश व समाज के हित में महात्मा गांधी के सपने को पूरा करते हुए देश के ग्रामीण अंचल के पुनर्निर्माण के लिए 'ग्राम स्वराज' की परिकल्पना को धरातल पर अमलीजामा पहनाना होगा, अंधाधुंध शहरीकरण रोकने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूदा आय के विभिन्न स्रोतों जैसे कृषि, विभिन्न प्रकार के कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देकर लोगों की आय को बढ़ाकर गांव में ही बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा करके, ग्रामीण अंचल में कम आय व बेरोजगारी जैसे बेहद गंभीर मुद्दों का निदान करना होगा।

 

सरकार को ग्रामीण अंचल में निवास करने वाले लोगों के जीवन स्तर को सरल बनाते हुए उसको ऊपर उठाने के लिए तेजी से कार्य करना होगा। आज समय की मांग है कि देश के लाखों गांव को भी आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित किया जाये, ग्रामीण अंचल में उच्च गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा व चिकित्सा सेवाओं को सुलभता से उपलब्ध करवाया जाये। हमारे सिस्टम को समझना होगा कि महात्मा गांधी ने अपने अनुभवों के आधार पर ही देश के ग्रामीण अंचल के पुनर्निर्माण के लिए आर्थिक विचारों का परिचय समय-समय पर दिया था, जिसमें वर्ष 1917 में चंपारण में ग्रामीण पुनर्निर्माण के प्रयोग, वर्ष 1920 में सेवाग्राम के प्रयोग, वर्ष 1938 में वर्धा का प्रयोग मुख्य हैं। गांधी ने हमेशा ग्रामीण पुनर्निर्माण के विचारों को पेश करते हुए अपने अनुयायियों और सहयोगियों से ग्रामीण क्षेत्रों के पुनर्निर्माण पर विशेष ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया था।


महात्मा गांधी ने अपने 'ग्राम स्वराज' के सपने को पूरा करने के लिए समय-समय पर पंडित जवाहरलाल नेहरू से लिखित व मौखिक चर्चा की थी। उन्होंने नेहरू को लिखे अपने एक पत्र में प्रत्येक व्यक्ति के मानसिक, आर्थिक, राजनीतिक और नैतिक विकास के लिए समान अधिकार और अवसर देने का सुझाव दिया था। लेकिन ना जाने क्यों आज़ादी के बाद से ही देश में महात्मा गांधी के 'ग्राम स्वराज' के विचारों की उपेक्षा की जाने लगी, जिसका देश में परिणाम यह हुआ कि देश में गांवों से तेज़ी से पलायन हुआ और देश अंधाधुंध अव्यवस्थित, शहरीकरण की गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो गया, जिसके चलते आज देश में गंभीर समस्याओं का अंबार लग गया है जो धन देश के विकास के लिए ख़र्च होना चाहिए था, वह धन देश में समस्याओं के निदान पर खर्च हो रहा है, जोकि भारत को विश्वगुरु बनाने की राह में बहुत बड़ा बाधक है।


-दीपक कुमार त्यागी

(वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार व राजनीतिक विश्लेषक)

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