Prajatantra: जातिवाद पर क्या है BJP-RSS का स्टैंड, PM Modi ने कैसे बढ़ाई विपक्ष की मुश्किलें

By अंकित सिंह | Dec 15, 2023

देश 2024 के आम चुनाव की दहलीज पर खड़ा है। इन चुनाव में कई मुद्दे सामने आ सकते हैं। इन्हीं में से एक बड़ा मुद्दा जातीय जनगणना है। विपक्षी दलों ने खुलकर इसका समर्थन किया है। हाल में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने जातीय जनगणना करने की बात कही थी। विपक्ष शासित राज्य बिहार में जातीय जनगणना कराई जा चुकी है। विपक्षी दलों की ओर से यह दावा किया जाता है कि आरएसएस और बीजेपी कभी भी पिछड़े और दलितों को आगे नहीं कर सकती हैं। भाजपा पर विपक्षी दलों की ओर से अगड़ों की पार्टी होने का आरोप लगाया जाता है। हालांकि, आज हम आपको बताएंगे कि आखिर संघ और भाजपा का जातिवाद को लेकर शुरू से क्या स्टैंड रहा है। 

 

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संघ का जातिवाद पर स्टैंड

संघ अपनी शुरुआत के साथ ही सामाजिक समरसता पर जोर देता रहा है। संघ का दावा है कि वह सभी जाति धर्म को एक साथ लेकर चलता है। संघ यह भी कहता है कि हमारे यहां किसी की जाती नहीं देखी जाती। संघ यह भी कहता है कि अगर हम एक ही जाति को लेकर आगे चलते तो हमारा इतना विस्तार भी नहीं होता। हालांकि, एक सवाल यह भी होता है कि संघ के जितने भी सरसंचालक अब तक हुए हैं, उनमें से ज्यादातर ब्राह्मण ही रहे हैं। ऐसे में संघ का कहना है कि आप शीर्ष पदों को देखने की बजाय हमारे काम को देखिए। हमारे काम की वजह से समाज के सभी वर्गों में हमारी स्वीकारता बढ़ी है। संघ सबके लिए समान अवसर की बात करता है। संघ का यह भी मना रहा है कि अगर हमें हिंदुओं को एकजुट करना है तो सबसे पहले जातिवाद को खत्म करना होगा। संघ के मुताबिक भारत में रहने वाले लोग सनातनी हैं। दिलचस्प बात यह भी है कि संघ ने हिंदू वोटो में बिखराव को रोकने के लिए एक सामाजिक समरसता प्रोजेक्ट की शुरुआत की है। इसके तहत उसके कार्यकर्ता लोगों के बीच पहुंचकर सभी हिंदुओं को एकजुट रहने के लिए के लिए समझाएंगे। साथ ही साथ ऐसी संस्थाओं और लोगों के पास भी जाएंगे जिनका समाज में अच्छा खासा प्रभाव रहा है। 


बीजेपी का शुरू में स्टैंड

भाजपा का भी जातिवाद को लेकर स्टैंड वही रहा है जो संघ का रहा है। क्योंकि भाजपा राजनीति में है इसलिए उसे जातीय समीकरण को भी साधने की जरूरत होती है। भाजपा के जब नींव पड़ी थी तब इसे अगड़ी जातियों की पार्टी कहा जाता था। भाजपा के लिए शुरू से ही ब्राह्मण, बनिया, राजपूत, कायस्थ, भूमिहार जैसी जातीयों के लोग कोर वोटर रहे हैं। यही कारण है कि भाजपा की शुरुआती दिनों को देखें तो पार्टी के लिए ज्यादातर सीटें शहरी क्षेत्र में ही होती थी। पार्टी का शहरी क्षेत्र की सीटों पर अच्छी पकड़ होती थी। इसका बड़ा कारण यह भी था कि शहरी क्षेत्र में अगड़ी जाति के लोग रहते थे।



मंडल बनाम कमंडल के दौर में भाजपा

90 की शुरुआती दशक में देश राजनीतिक परिवर्तनों के दौर से गुजर रहा था। ऐसे में एक ओर जहां मंडल बनाम कमंडल की राजनीति चरम पर थी तो वहीं भाजपा के लिए भी लगातार चुनौतियां बढ़ती जा रही थीं। दरअसल, मंडल कमीशन के जरिए वीपी सिंह की सरकार ने ओबीसी और पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया जिसका क्षेत्रीय दलों ने भी समर्थन किया था। लेकिन चुनौती भाजपा के सामने लगातार बढ़ती जा रही थी और वह यह था कि इन जातिगत समीकरणों को आखिर पार्टी किस तरीके से काट निकाले? इसी दौर में भाजपा ने राम मंदिर आंदोलन के जरिए जातिवाद के काट के तौर पर हिंदुत्व पर जोर देना शुरू किया। भाजपा इसी दौर में राष्ट्रवाद और हिंदुत्व को लेकर राजनीति करती दिखी जिसका उसे फायदा भी मिला। पार्टी शहरों से निकलकर ग्रामीण आबादी तक भी पहुंचने में कामयाब रही और यही कारण रहा की भाजपा अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सत्ता में आने में भी कामयाब रही। हालांकि, इसी दौर में पार्टी ने कहीं ना कहीं जातीय समीकरण को साधने की कोशिश की। राजनीतिक हिसाब से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री बनाया जो कि बड़े ओबीसी नेता माने जाते रहे हैं। यहीं से भाजपा ने हिंदुत्व की राजनीति के साथ-साथ ओबीसी को भी साधने की शुरुआत कर दी थी। 


वर्तमान में स्टैंड

अगर हम वर्तमान की बात करें तो कहीं ना कहीं भाजपा असमंजस की स्थिति में दिखाई पड़ती हैं। भाजपा के सामने वर्तमान में जो परिस्थितियां है, उसमें उसे चुनावी जीत के लिए जातीय समीकरण को साधना बेहद जरूरी हो जाता है। हालांकि, भाजपा वर्तमान स्थिति में भी खुलकर जातिवाद की राजनीति को समर्थन करती दिखाई नहीं देती है। लेकिन वह कुछ ऐसे कदम उठाती हैं जिससे साफ तौर पर पता चल जाता है की पार्टी की ओर से जातीय समीकरण को साधने की कोशिश की जा रही है। हाल में ही तीन राज्यों के जो मुख्यमंत्री नियुक्त किए गए हैं उनमें छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय हैं जो की आदिवासी हैं। छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की तादाद ज्यादा है। वहीं मोहन यादव जिन्हें मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया है, ओबीसी और खासकर के यादव समुदाय से आते हैं जिनकी तादाद मध्य प्रदेश में तो है ही, साथ ही साथ उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा की राजनीति में भी यह समुदाय काफी महत्वपूर्ण रोल अदा करता है। भजनलाल शर्मा के जरिए भाजपा ने अपने कोर वोट ब्राह्मण और सवर्मों को भी बनाए रखने की कोशिश की है। इन तीनों ही राज्यों में उपमुख्यमंत्री किसी भी जिम्मेदारी जिन्हें दी गई है उनके जरिए भी जातीय समीकरण को साधने की कोशिश हुई है।


हाल में ही एक कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा नेता अमित शाह ने कहा इस देश के सभी लोग गुलदस्ते की फूलों की तरह हैं। यही कारण है कि हम सभी समाज के लोगों को आगे करने की कोशिश करते हैं ताकि उन्हें भी अपना प्रतिनिधि दिखाई दे। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि यह जन भावनाओं को संबोधित करने का लोकतांत्रिक तरीका भी है। जाति आधारित जनगणना पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का कहना है है कि हम वोट की राजनीति नहीं करते। हम चर्चा कर उचित फैसला लेंगे। बीजेपी ने कभी इसका विरोध नहीं किया लेकिन जो फैसले लेने होंगे उचित विचार के बाद लिया जाए।

 

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मोदी का बयान

इसमें कोई दो राय नहीं है कि वर्तमान की राजनीति में देखें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबसे बड़े ओबीसी चेहरे हैं और इसका फायदा भाजपा को मिलता भी है। हाल में देखें तो कांग्रेस और तमाम क्षेत्रीय दलों की ओर से जातिगत जनगणना की मांग की जा रही है। इसे राजनीतिक मुद्दा भी बनाया जा रहा है। साथ ही साथ राहुल गांधी जैसे नेता साफ तौर पर यह कहते दिखाई दे रहे हैं कि जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी। इसके काट में प्रधानमंत्री ने हाल में ही बड़ा बयान दिया। नरेन्द्र मोदी ने कहा कि ‘विकसित भारत’ का संकल्प नारी, युवा, किसान और गरीब के चार ‘अमृत स्तंभों’ पर टिका है और यही चार उनके लिए सबसे बड़ी जातियां हैं जिनका उत्थान ही भारत को विकसित बनाएगा। उन्होंने कहा कि मेरे लिए सबसे बड़ी जाति है- गरीब। मेरे लिए सबसे बड़ी जाति है- युवा। मेरे लिए सबसे बड़ी जाति है- महिलाएं। मेरे लिए सबसे बड़ी जाति है- किसान।’’ उन्होंने कहा कि इन चार जातियों का उत्थान ही भारत को विकसित बनाएगा और अगर इन चारों जातियों का उत्थान हो जाएगा तो इसका मतलब है कि सबका उत्थान हो जाएगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस देश का कोई भी गरीब चाहे वह जन्म से कुछ भी हो, उसका जीवन स्तर सुधारना और इसी प्रकार युवाओं को रोजगार और स्वरोजगार के नए अवसर देना ही उनका लक्ष्य है। प्रधानमंत्री मोदी का भी यह बयान हिंदू वोटो के बिखराव को रोक सकता है।

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