पीएएम नामक अमीबा संक्रमण क्या है? यह कोरोना-टीबी संक्रमण से कितना घातक है? इसके लक्षण और बचाव के उपाय के बारे में जानिए

By कमलेश पांडे | Jul 09, 2024

क्या आपको पता है कि अपने बच्चों को नदी और तालाबों से दूर रखना है? यदि नहीं तो निश्चय ही ऐसा ही कीजिए, क्योंकि यदि थोड़ी सी भी लापरवाही बरती तो आपका बच्चा दिमाग खाने वाले अमीबा संक्रमण की चपेट में आ सकता है, जो दूषित जल में पाए जाने वाले अमीबा से होता है। यह बात मैं नहीं कह रहा, बल्कि राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) ने अपने एक दिशा-निर्देश में कही है, जो हमें सावधानी बरतने को अभिप्रेरित करती है। 


समझा जाता है कि दिमाग खाने वाला अमीबा संक्रमण मानसून के समय तेजी से प्रसारित हो सकता है। यह अमीबा मिट्टी में पाया जाता है और नदी या जलाशयों में मौजूद पानी में जाने से यह अमीबा इंसानों के शरीर तक पहुंच सकता है। लिहाजा, जरूरी है कि गांव और कस्बों में इसे लेकर जागरूकता पर काम किया जाए, जिसमें प्रशासनिक अधिकारियों की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।

इसे भी पढ़ें: केरल में मस्तिष्क खाने वाले अमीबा के संक्रमण का चौथा मामला सामने आया

गौरतलब है कि अमीबा संक्रमण से होने वाली बीमारी को प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएनसेफेलाइटिस (पीएएम) के नाम से जानते हैं जो नेगलेरिया फाउलेरी नामक अमीबा की वजह से होती है। यह गन्दे पानी में पाया जाता है। यह नाक से शरीर में प्रवेश करता है। 


वहीं, अमेरिका के सेंटर ऑफ डिसीज कंट्रोल के अनुसार, पीएएम मस्तिष्क का संक्रमण है, जो अमीबा यानी नेगलेरिया फाउलेरी नामक एकल कोशिका वाले जीव से होता है। यह अमीबा मिट्टी और गर्म पानी वाले झीलों, नदियों व झरनों में रहता है। इसे आमतौर पर दिमाग खाने वाला अमीबा कहा जाता है, क्योंकि अमीबा युक्त पानी जब नाक में जाता है तो यह दिमाग को संक्रमित कर देता है। इसे एंटीबायोटिक दवाओं से खत्म करना मुश्किल है। यदि समय रहते संक्रमण को नहीं रोका जाए तो 5 से 10 दिन में मौत हो सकती है।


वहीं, कुछ अन्य विशेषज्ञों के मुताबिक, यह काफी जोखिम भरी बीमारी है जो महज 4 से 14 या 18 दिन के भीतर मरीज की जान ले सकती है। इसकी मृत्यु दर करीब 98 फीसदी है, जिसका मतलब यह है कि 100 में 98 मरीज की मौत हो सकती है। ऐसे में यदि कोरोना या फिर टीबी संक्रमण की मृत्यु दर से इसकी तुलना की जाए तो यह क्रमशः 97 और 10 गुना ज्यादा है। जिससे साफ पता चलता है कि राज्यों का समय पर एक्शन में आना बहुत जरूरी है।


एनसीडीसी के मुताबिक, केरल के कोझिकोड, मलप्पुरम और कन्नूर में तीन बच्चों की मौत इसी बीमारी से हुई है, जबकि चौथा मामला अन्य पयोली जिले में सामने आया है। चिंता की बात तो यह है कि मई 2024 से जुलाई 2024  कुल 4 मामले सामने आ चुके हैं। वहीं, अबतक के मामलों में सिर्फ बच्चे ही इससे पीड़ित हुए हैं। इसकी कुछ दवाएं भी विदेशों से मंगाई जा रही हैं। 


मसलन, केरल में यह मरीज इसलिए भी सामने आ रहे हैं, क्योंकि यहां के सभी जिलों को एलर्ट पर रखा गया है। साथ ही अस्पतालों को भी स्पष्ट दिशानिर्देश दिए गए हैं। संदिग्ध मरीजों के सैम्पल की जांच आईसीएमआर की प्रयोगशाला में की जा रही है, जहां पीसीआर तकनीक के जरिए मरीज के सैम्पल में अमीबा की मौजूदगी देखी जाती है।


यही वजह है कि एनडीएमसी ने देश के सभी राज्यों से कहा है कि सबसे पहले संदिग्ध जिलों की पहचान की जाए, ताकि वहां की स्वास्थ्य टीमों को एलर्ट पर रखा जा सके। केरल में राज्य अधिकारियों के साथ बैठक के दौरान एनडीएमसी को पता चला कि पहले यह संक्रमण एक से दो जिलों में देखा गया, लेकिन अब यह करीब 4 से 5 जिलों तक पहुंच चुका है। यही कारण है कि एनडीएमसी ने राज्यों से सबसे पहले संदिग्ध जिलों और स्थानों की पहचान करने की सलाह दी है।


जहाँ तक इसके लक्षण का सवाल है तो मरीज के सिर में बहुत तेज दर्द होता है। वहीं, आंखों में रोशनी बर्दाश्त नहीं हो पाती है। इसके अलावा, रोगी के गर्दन में अकड़न होती है। सिर में चक्कर आने लगता है। मुंह से लगातार उल्टियां होती है। फिर तेज बुखार आता है। इससे मरीज परेशान हो जाता है।


वहीं, इससे बचने के लिए नोज प्लग के बिना तैरने के लिए पानी में नहीं जाएं। ताजा-गर्म पानी वाली जगहों पर तैरने से बचें। नल के पानी का इस्तेमाल करने से पहले उसे उबालें। यदि पानी में तैराकी के बाद कोई लक्षण लगे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।


एनडीएमसी द्वारा देशव्यापी एलर्ट जारी करने के बाद अब यह राज्यों का कर्तव्य है कि वह अपने अपने जनपदों में इससे संक्रमित मरीजों की पहचान करें, अन्यथा यह जानलेवा बीमारी कभी भी महामारी का शक्ल ले सकती है। जागरूक नागरिकों को भी इस नजरिए से एलर्ट हो जाना चाहिए और अपने आसपास जागरूकता विकसित करनी चाहिए, ताकि भोले-भाले लोग भी चौकस हो जाएं।


- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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