By अभिनय आकाश | Feb 28, 2022
अंग्रेजी का एक शब्द है स्विफ्ट, लेकिन आखिर ये है क्य़ा? आम लोगों से पूछेंगे तो कहेंगे कि मारूति कंपनी की गाड़ी है। तो कोई कहेंगा जैसे कृष में ऋतिक रोशन सड़कों पर तेज रफ्तार से भागता है उसी तीव्र गति को स्विफ्ट कहते हैं। लेकिन बीते दिनों एक खबर आई कि रूस के कई सारे बैंकों को दुनियाभर के स्विफ्ट सिस्टम से बाहर कर दिया गया है। अब क्या है ये स्विफ्ट जो न तो मारूति की कोई गाड़ी है और न ही तेजी से सरपट दौड़ लगाने वाला कोई प्राणी। दरअसल, ये एक तरह का पेमेंट सिस्टम है। लेकिन सबसे गूढ़ बात कि इसमें पेमेंट ट्रांसफर नहीं होता है बल्कि एक मैसेज जेनरेट होता है और भरोसे पर काम होता है। 200 से ज्यादा देशों में इस्तेमाल किया जाता है और 11 हजार से ज्य़ादा फाइनेशसियल इंस्टिट्यूशन इसके ऊपर रजिस्टर्ड हैं। आज के इस विश्लेषण में आपको बताते हैं कि स्विफ्ट क्या है, रूस को इससे बाहर करने का क्या मतलब है और सबसे अहम सवाल इससे भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
सबसे पहले बताते हैं कि हुआ क्या है? दरअसल, यूक्रेन पर रूसी हमले के मद्देनजर अमेरिका और उसके सहयोगी देशों एवं साझेदारों ने वैश्विक वित्तीय तंत्र ‘स्विफ्ट’ वित्तीय प्रणाली से प्रतिबंधित रूसी बैंकों को अलग करने और रूस के केंद्रीय बैंक के खिलाफ प्रतिबंधात्मक कदम लागू करने का फैसला किया है। अमेरिका, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, इटली, ब्रिटेन और कनाडा के नेताओं द्वारा शनिवार को जारी संयुक्त बयान के अनुसार, प्रतिबंधित रूसी कंपनियों और कुलीन वर्गों की संपत्तियों का पता लगाने तथा उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए एक संयुक्त कार्य बल गठित किया गया है। अमेरिका और उसके सहयोगियों ने एक बयान में कहा, ‘‘हम रूसी आक्रमण का मुकाबला करने के साहसी प्रयासों में यूक्रेन सरकार और उसके लोगों के साथ खड़े हैं।
स्विफ्ट क्या है?
स्विफ्ट का पूरा नाम द सोसायटी फॉर वर्ल्ड वाइड इंटरबैंक फाइनैंशल टेलिकम्युनिकेशन है। ये दुनिया के बैंकों को जोड़ने वाला फाइनैंशल मेसेजिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर है। इसे बेल्जियम से ऑपरेट किया जाता। है। इसे स्विफ्ट से जुड़े बैंक चलाते हैं। इस प्रणाली की स्थापना 1973 में सीमा पार धन हस्तांतरण को और अधिक कुशल बनाने के लिए की गई थी और यह वैश्विक वित्तीय बुनियादी ढांचे के लिए महत्वपूर्ण हो गया है। इसने टेलेक्स तकनीक को बदल दिया, जिसका इस्तेमाल ज्यादातर बैंक 1970 के दशक की शुरुआत से पहले करते थे। इसके जरिये 200 देशों और 11 हजार फाइनैंशल इंस्टिट्यूशंस को वित्तीय लेन-देन से जुड़े निर्देश पहुंचाए जाते हैं। अमेरिका, ईरान और उत्तर कोरिया को खराब देश मानता है, इसलिए उसने स्विफ्ट से उन्हें बाहर किया हुआ है।
इतना अहम क्यों है
किसी भी इकॉनमी के लिए सीमा- पार अंतरराष्ट्रीय लेन-देन बहुत जरूरी होता है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार हो या विदेशी निवेश, प्रवासियों की ओर से देश में भेजे जाने वाली रकम हो या इकॉनमी का रिजर्व बैंक जैसे केंद्रीय बैंकों का मैनेजमेंट। ये सारे काम स्विफ्ट के जरिए होते हैं। इसलिए अलग किसी देश को इसे बाहर किया जाता है तो एक तरह से उसकी पूरी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता है।
क्या रूस और चीन स्विफ्ट पर निर्भर हैं?
रूसी नेशनल स्विफ्ट एसोसिएशन के अनुसार लगभग 300 रूसी वित्तीय संस्थान स्विफ्ट का उपयोग करते हैं। वे देश की 80 प्रतिशत से अधिक अंतरराष्ट्रीय भुगतान को संभालते हैं। 1983 में बैंक ऑफ चाइना के स्विफ्ट में शामिल होने के बाद लगभग 600 वित्तीय संस्थानों ने इस प्रणाली का उपयोग किया। 2012 में 25-सदस्यीय निदेशक मंडल में चीन के एक प्रतिनिधि को जोड़ा गया था, जबकि 2019 में बीजिंग में एक पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी को पंजीकृत किया गया था। जनवरी 2021 में चीनी केंद्रीय बैंक के कुछ सहयोगियों के साथ एक संयुक्त उद्यम स्थापित किया गया था। अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली मुद्रा है, जनवरी में 39.92 प्रतिशत भुगतान इसी से हुआ। स्विफ्ट के आंकड़ों के अनुसार इसके बाद यूरो के लिए 36.56 प्रतिशत, ब्रिटिश पाउंड के लिए 6.3 प्रतिशत, चीनी के लिए 3.2 प्रतिशत जबकि युआन और जापानी येन के लिए 2.79 प्रतिशत है। रूसी रूबल का वैश्विक भुगतान में केवल 0.26 प्रतिशत का योगदान था।
रूस पर प्रतिबंध लगाने के कदम से क्या हासिल होगा?
रूस को वित्तीय संदेश प्रणाली से प्रतिबंधित करने का मतलब है कि रूसी बैंक अब इसका उपयोग व्यापार लेनदेन के लिए विदेशी वित्तीय संस्थानों के साथ भुगतान करने या प्राप्त करने के लिए नहीं कर सकते हैं। ये रूसी व्यापार के लिए एक भारी झटका हो सकता है, जिसकी कीमत पिछले साल 797.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, या इसके सकल घरेलू उत्पाद का 46.6 प्रतिशत था। इसका एक ज्वलंत उदाहरण ईरान है, जिसे 2012-16 के बीच देश के परमाणु कार्यक्रम पर अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण स्विफ्ट नेटवर्क से बाहर किया गया था। ईरान को अपनी खुद की भुगतान प्रणाली शुरू करने के लिए मजबूर होना पड़ा, जो धीमी और महंगी है, जो उसके कच्चे तेल के निर्यात को तबाह कर रही है। पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन के आंकड़ों के अनुसार, 2013 में, प्रतिबंधों के पहले वर्ष में, इसके कच्चे तेल के निर्यात का मूल्य 40 प्रतिशत कम हो गया। रूस पर प्रभाव बहुत बड़ा होगा क्योंकि ऊर्जा निर्यात देश के कुल निर्यात के आधे से अधिक के लिए जिम्मेदार है।
कुछ खिलाफ क्यों ?
हालांकि कुछ का तर्क ये भी है कि अगर रूस के बाहर होने से दूसरे देशों को भी नुकसान होगा। यह नुकसान सिर्फ यूरोपीय देशों को नहीं, बाकी दुनिया को भी होगा। दरअसल, यूरोप रूस का बड़ा व्यापारिक साझेदार है। ये देश गैस के लिए काफी हद तक रूस पर आश्रित हैं। कुछ पूर्व अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि स्विफ्ट को तगड़ा झटका लगेगा, लेकिन इससे पश्चिमी देशों की बड़ी तेल कंपनियां भी प्रभावित होंगी। रूस दुनिया के बड़े तेल निर्यातकों में शामिल है। स्विफ्ट से बाहर किए जाने पर रूस से तेल निर्यात कम होगा। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल और गैस की कीमतें और बढ़ सकती है।
रूस के पास और क्या विकल्प हैं?
रूस और चीन स्विफ्ट की तरह अपने अंतरराष्ट्रीय पेमेंट मेसेजिंग प्लैटफॉर्म बना रहे हैं। मास्को लंबे समय से अपने निवेश पोर्टफोलियो और विदेशी मुद्रा भंडार में व्यापार के लिए अमेरिकी डॉलर के उपयोग को कम करने की मांग कर रहा है। रूस ने 2019 में वित्तीय संदेशों के हस्तांतरण (SPFS) के लिए अपना स्वयं का सिस्टम शुरू किया। विश्लेषकों ने कहा कि पश्चिमी देशों का दबाव चीन और रूस को करीब ला सकता है और उनकी भुगतान प्रणालियों के बीच संबंध तेज हो सकता है। चीन ने बेल्ट एंड रोड देशों के साथ व्यापार और निवेश में डिजिटल ई-सीएनवाई सहित युआन के अंतर्राष्ट्रीयकरण में सहायता के लिए 2015 में अपनी सीमा पार इंटरबैंक भुगतान प्रणाली (सीआईपीएस) का निर्माण किया। चीनी युआन का 2020 में रूसी विदेशी मुद्रा भंडार का 12.8 प्रतिशत और पिछले साल जुलाई में इसके संप्रभु धन कोष में 30.4 प्रतिशत का योगदान था। इस बीच, चीन-रूसी व्यापार का लगभग 17.5 प्रतिशत 2020 में युआन में तय हुआ, जो 2014 में 3.1 प्रतिशत था।
क्या भारत पर बैन का असर पड़ सकता है?
स्विफ्ट से रूसी बैंकों के बाहर होने का प्रभाव भारत से उसके द्विपक्षीय व्यापार संबंधों पर भी पड़ सकता है। वित्त वर्ष 2021-22 में अब तक दोनों देशों के बीच व्यापार 9.4 बिलियन डॉलर रहा, जो वित्त वर्ष 2020-21 में 8.1 बिलियन डॉलर था। भारत कच्चे तेल, पेट्रोलियम उत्पादों, सोने और अन्य कीमती धातुओं, कीमती पत्थरों, कोयले, उर्वरकों आदि के आयात पर निर्भर है। विश्लेषकों का कहना है कि तेल और खाद्य कीमतों में निरंतर वृद्धि एशियाई अर्थव्यवस्थाओं को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। नोमुरा के अनुसार, कच्चे तेल की कीमतों में हर 10% की वृद्धि भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 0.2 प्रतिशत अंक (पीपी) की कमी कर सकती है। कच्चे तेल की कीमतें पहले ही 100 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच चुकी हैं।
-अभिनय आकाश