By दीपक कुमार त्यागी | Jun 14, 2021
देश की जनता बहुत लंबे अंतराल वर्ष 2020 से एक घातक महामारी कोरोना से जूझ रही है, लोग सरकार की कोरोना गाइडलाइंस के मुताबिक अपना व अपनों का जीवन बचाने के लिए घरों में छिपकर बैठे हुए हैं। पिछले वर्ष कोरोना की पहली लहर के बाद इस वर्ष दूसरी लहर ने ना जाने कितने लोगों के जीवन लील लिये। लोगों में भय के चलते स्थिति यह हो गयी है कि वह लोग के जीवन बचाने के लिए बेहद आवश्यक रक्त का दान करने में भी अब झिझक रहे हैं, जिसकी वजह से जब लोगों को रक्त की आवश्यकता होती है तो उन्हें बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, अभी पिछले हफ्ते ही दिल्ली जैसे बड़े शहर में मेरे एक परिचित को तीन यूनिट रक्त की आवश्यकता हुई, तो रक्त का इंतजाम करने के लिए सोशलमीडिया तक का सहारा लेना पड़ा, लेकिन फिर भी कोई व्यक्ति रक्तदान करने के लिए आगे नहीं आया, अंत में बहुत ही मुश्किल से समय पर रक्त का इंतजाम हो पाया। इसी तरह की स्थिति कोरोना संक्रमित लोगों के प्लाज़्मा थेरेपी से इलाज के लिए प्लाज़्मा की जरूरत के समय महसूस की गयी थी, क्योंकि वह भी रक्त से ही निकाला जाता है, इस तरह के हालात मानव जीवन को सुरक्षित रखने के मद्देनजर ठीक नहीं हैं।
"कोरोना काल में जब देश के ब्लडबैंकों में रक्त की भारी किल्लत बनी हुई है, उस समय कुछ अफवाह फैलाने वाले तंत्रों ने देश में सोशल मीडिया के माध्यम से बड़े पैमाने पर यह दुष्प्रचार करने का कार्य किया की कोरोना की वैक्सीन लगवाने के 90 दिन पहले व बाद तक रक्तदान नहीं कर सकते हैं, देश के दिग्गज डॉक्टर इस दावे को लगातार झूठा बता रहे हैं, वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर एक पोस्ट सामने आया है, जिसमें डॉक्टर अरुण शर्मा ने स्पष्ट किया है कि टीकाकरण और रक्तदान का आपस में कोई कनेक्शन नहीं है। लेकिन फिर भी कुछ लोगों के झूठे दुष्प्रचार के चलते कुछ रक्तदान करने वाले लोगों में बेवजह का भय व्याप्त हो गया है, जिसको जागरूक होकर समय रहते मानव जीवन को सुरक्षित रखने के लिए दूर करना होगा"
वैसे दुनिया में रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए 14 जून को "विश्व रक्तदान दिवस" या "विश्व रक्त दाता दिवस" यानी "वर्ल्ड ब्लड डोनर डे" मनाया जाता है, जिस दिन का उद्देश्य लोगों को रक्तदान करने के लिए बढ़ावा देना है, इसी लक्ष्य को अमलीजामा पहनाने के लिए "विश्व रक्तदान दिवस" पहली बार वर्ष 2004 में मनाया गया था, जिसकी पहली बार शुरुआत "वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन" यानी डब्ल्यूएचओ ने लोगों को रक्तदान करने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से की थी। लेकिन भारत में आज भी रक्त की जरूरत और इस जरूरत के मुताबिक समय पर रक्त की उपलब्धता न होने की एक बहुत बड़ी चुनौती लोगों के सामने निरंतर बनी हुई है, कोरोना काल यह समस्या बहुत अधिक गंभीर हो गयी है। इस चुनौती से निपटने के लिए लोगों को रक्तदान करने के लिए जागरूक करके रक्त की कमी को जरूरत के हिसाब से पूरा करने के इरादे से देश में "वर्ल्ड ब्लड डोनर डे" हर वर्ष मनाया जाता है। लेकिन अभी भी हमारे यहां लोगों के जरूरत के मुताबिक जागरूक ना होने के चलते रक्त की उपलब्धता की स्थिति बहुत बेहतर नहीं हुई है। देश में जरूरतमंद लोगों को समय पर रक्त की नियमित एवं सुरक्षित आपूर्ति के लिए 100 प्रतिशत स्वैच्छिक और गैर-पारिश्रमिक रक्त दाताओं के लक्ष्य को अभी तक भी प्राप्त नहीं किया जा सका है, जो मानव जीवन को सुरक्षित रखने के लिए ठीक नहीं है।
"जबकि विकसित देशों की बात करें तो वहां पर एक वर्ष के दौरान प्रति 1000 लोगों में से 50 व्यक्ति स्वैच्छिक रक्तदान करते हैं, हमारे देश में प्रति 1000 लोगों में से एक वर्ष में 8 से 10 व्यक्ति ही मात्र रक्तदान करने के लिए आगे आते हैं। जबकि 139 करोड़ की विशाल आबादी वाले हमारे भारत में सालाना लगभग 1.4 करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत होती है। जबकि आदर्श रूप में कुल योग्य आबादी का अगर 1 फीसदी हिस्सा भी नियमित स्वैच्छिक रक्तदान करता है तो कभी भी देश में रक्त की किसी जरूरतमंद व्यक्ति के लिए कोई कमी नहीं होगी।”
देश में अगर मात्र 1 प्रतिशत आबादी भी नियमित रक्तदान करने का संकल्प ले लेती है, तो देश में किसी भी व्यक्ति की रक्त की कमी की वजह से कभी जान नहीं जायेगी। रक्तदान करने की झिझक की वजह से ही पिछले वर्ष कोरोना महामारी के संक्रमण काल की शुरुआत से आज तक जरूरतमंद लोगों को रक्त उपलब्ध करवाने को लेकर काफी चुनौतियां परिजनों व ब्लडबैंकों के सामने आ रही हैं। जिसको भी रक्त की आवश्यकता होती है, उसके परिजनों के लिए इस टास्क को समय पर पूरा करना बेहद दुष्कर कार्य होता है। कोरोना के भय से नियमित रक्तदान करने वाले लोग भी ना जाने क्यों अब रक्तदान करने से कतराने लगे हैं, वो भी कहते है कि रक्तदान करने के लिए अस्पताल जाना पड़ेगा, जहां पर कोरोना संक्रमण होने के बहुत अधिक चांस हैं। इस भय के चलते बहुत सारे रक्तदाता अब अस्पताल आने के लिए तैयार ही नहीं होते हैं। जबकि यह लोग सरकार के द्वारा तय कोरोना गाइडलाइंस का सही ढंग से पालन करते हुए बेखौफ होकर रक्तदान कर सकते हैं। ईश्वर के आशीर्वाद से मैं भी बहुत लंबे समय से नियमित रूप से बेखौफ होकर रक्तदान करता आ रहा हूँ, लेकिन मैं भी खुद कई बार ऐसी दुविधा व अजीबोगरीब परिस्थितियों से गुजरा हूँ कि लोग अपने परिजनों को खुद रक्त ना देकर के मुझे रक्तदान करने के लिए बुला लेते है, उनकी इस नासमझी भरी हरकत को देखकर मुझे अफसोस तो बहुत होता है, लेकिन यह संतुष्टि होती है कि कम से कम मेरा रक्त किसी के जीवन बचाने के काम तो आया। लेकिन अब वह समय आ गया है जब देश में लोगों को नियमित अतंराल पर स्वैच्छिक व गैर-पारिश्रमिक रक्तदान करने के लिए आगे आना होगा, तब ही भविष्य में हमारे प्यारे देश भारत में रक्त की जरूरत व उपलब्धता का संतुलन बन पायेगा और रक्त की कमी के चलते लोगों की मृत्यु नहीं होगी।।
- दीपक कुमार त्यागी
स्वतंत्र पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक