आभासी आनंद की हरियाली (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Jun 14, 2021

दिलचस्प प्रयोगों का युग चल रहा है। एक तरफ वैक्सीन की बहार लाई जा रही है दूसरी तरफ बार बार साबित कर दिखाना भी पड़ता है कि कुदरत इंसान के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है।  बुद्धिमान लोग ऐसा कर रहे हैं। इतने पेड़ फना करने के बाद भी इंसान ने कोई परेशानी महसूस नहीं की, खूबसूरत नकली फूल और पौधों से ज़िंदगी संवार रखी है। कहां असली पौधों को रोज़ पानी देने का झंझट, गुड़ाई और खाद देने की परेशानी। वैसे भी माहौल ऐसा है कि घर से बाहर निकल नहीं सकते। ट्रेवल चैनल, बाग़ बगीचों, नदियों पहाड़ व बर्फ के चित्र आंखों में समाकर संतुष्टि प्राप्त करने का वक़्त शुरू हो चुका है।

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इस बीच ज़रूरत के मुताबिक़ प्रयोग कर हरियाली का कैप्सूल बना दिया गया है। नए शोध खुशी खुशी बता रहे हैं कि हरियाली को पंद्रह मिनट तक देखते रहना इंसानी दिमाग को शांत और सक्रिय करने में मददगार हो सकता है। वैसे भी ज्यादा समय कभी किसी के पास रहा नहीं। दिलचस्प यह है कि यह नतीजा किसी प्रकृति प्रेमी या पर्यावरणविद, वनस्पति के अध्यापक या आदरणीय मंत्री ने नहीं निकाला। ऐसा शोध तकनीकी संस्थान कर रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि प्रकृति का निर्मल आनंद उठाने के लिए प्रकृति की गोद में जाने की तकलीफ उठाने की ज़रूरत नहीं है। अनुभव प्रयोगशाला में दिलकश बाग़ की फोटो के सामने बैठकर महसूस करा दो कि हरियाली की गोद में बैठे हैं बस ज़िंदगी सहज, हरी भरी महसूस होने लगेगी। यह और अच्छी बात है कि मशीन की मैपिंग ने भी हरियाला आनंद प्राप्त होने की पुष्टि की। यह नया नार्मल हिप्नोटिज्म है।


नकली बुद्धि के ज़माने में हम तकनीक की पीठ पर बैठकर, विचारों और अनुभवों को कितना घुमा फिराकर बात करने लगे हैं। कुछ मिनट के परिणाम समझाते हैं कि हरियाली का लुत्फ़ लेने के लिए हरियाली बढाने की ज़रूरत है ही नहीं, कौन वृक्ष लाए, लगाने की जगह ढूंढे, पानी दे और पूरा वृक्ष बनने के लिए सालों इंतज़ार करे, फिर उसके आसपास धूमने का समय निकाले। उससे बेहतर है वातानुकूलित कमरे में बैठिए और सामने स्क्रीन पर हरा भरा बाग़, खूबसूरत रंग बिरंगे फूल देखकर आनंद लीजिए। कमरे में बिठाकर सामने स्वादिष्ट पकवान देखकर पेट सुख का अनुभव लिया जा सकता है। ऐसा सामूहिक आयोजन यदि तकनीकी परेशानी के कारण देर से शुरू हो तो इस बीच ब्रेड टोस्ट चाय के साथ सर्व किए जा सकते हैं। दुनिया भर के हरे, लाल, पीले और नीले पकवान हजम किए जा सकते हैं। मन ट्रेवल चैनल हो चुका है ।

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संकटकाल में ख़्वाब सोया पनीर हो जाते हैं। दुनिया के मनपसंद बीच पर मालिश करवाते हुए महसूस किया जा सकता है। जिन हसीनाओं को बंदा देखने की भी सोच नहीं सकता उनके साथ टहल सकता है। ज़्यादा खुलकर बात करें तो खुद को राजनीति में सफल महसूस कर सकता है और आगे की बात करें तो समाज बदलने की योजना पका सकता है। कुछ भी महसूस करने में और महसूस कराने में किसी का क्या जाता है। सामयिक निर्मल आनंद लेना स्वस्थ संस्कृति की पहचान है।


- संतोष उत्सुक

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