Untold Stories of Ayodhya: रामलला के लिए देश के प्रधानमंत्री से टकराने वाले अधिकारी की कहानी, जो नहीं होते तो मुश्किल था अयोध्या में मंदिर निर्माण

By अभिनय आकाश | Jan 09, 2024

अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर के कई नायक हैं। अनेक किरदार हैं, इनमें संत भी हैं, महंत भी हैं। नेता भी हैं और अधिकारी भी हैं। निचली अदालतों की तकरार भी है और सुप्रीम फैसले से खत्म होता इंतजार भी है। प्रधानमंत्री मोदी भी हैं और मुख्यमंत्री योगी भी हैं।  देश का कोई सामन्य नागरिक हो या सिविल सर्विस का कोई अधिकारी सभी ने अपने-अपने स्तर पर राम मंदिर के लिए अपना योगदान दिया है। लेकिन एक शख्स ऐसे भी हैं जिन्होंने अगर देश के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत के आदेश को मान लिया होता या इसके बदले इस्तीफा दे दिया होता तो अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर शायद आज नहीं बन पाता। केरल के अलप्पी के रहने वाले केके  नायर 1930 बैच के आईसीएस अफसर थे। फैजाबाद के जिलाधिकारी बाबरी मामले से जुड़े आधुनिक भारत के वे ऐसे शख्स हैं, जिनके कार्यकाल में इस मामले में सबसे बड़ा 'टर्निंग पाइंट' आया और देश के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने पर इसका दूरगामी असर पड़ा।

इसे भी पढ़ें: Ayodhya Ram Mandir के गर्भग्रह में स्थापित होगी रामलला की 51 इंच की मूर्ति, जानें इसकी खासियत

 तब अयोध्या हुआ करता था फैजाबाद...

मद्रास यूनिवर्सिटी से पढ़े-लिखे नायर तमिल, मलयाली, हिंदू, उर्दू, अंग्रेजी सहित फ्रेंच, जर्मन, रसियन, स्पेनिस आदि भाषाओं के जानकर थे। उस वक्त अयोध्या का नाम फैजाबाद हुआ करता था। नायर 1 जून, 1949 को फैजाबाद के कलेक्टर बने। साल 2019 में अयोध्या को लेकर सुप्रीम कोर्ट के 1045 पन्नों के फैसले में केके नायर के बारे में जिक्र किया गया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक 29 नवंबर 1949 को फैजाबाद के एसपी कृपाल सिंह ने फैजाबाद के डीएम केके नायर को पत्र लिखते हुए कहा कि मैं शाम को अयोध्या के बाबरी मस्जिद और जन्मस्थान गया था। मैंने वहां मस्जिद के ईर्द-गिर्द कई हवन कुंड देखे। उनमें से कई पहले से मौजूद पुराने निर्माण पर बनाए गए थे। उनका वहां पर एक बड़ा हवन कुंड बनाने का प्रस्ताव है। यहां पूर्णिमा पर बड़े स्तर पर कीर्तन और यज्ञ होगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में लिखा है कि एसपी ने डीएम को लिखे पत्र में आशंका जताई थी कि पूर्णिमा के दिन हिंदू जबरन मस्जिद में घुसने की कोशिश करेंगे और वहां पर मूर्ति भी स्थापित करेंगे। 16 दिसंबर को डीएम केके नायर ने उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र लिखते हुए कहा कि वहां पर विक्रमादित्य द्वारा बनवाया गया मंदिर था। जिसे बाबर ने ध्वंस कर दिया और मंदिर के अवशेष पर मस्जिद बना दी। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि उन्हें मस्जिद पर कोई खतरा नहीं दिख रहा है।  

इसे भी पढ़ें: Ramayan Ki Kahani: असली नहीं बल्कि छाया सीता का रावण ने किया था हरण, जानिए क्यों देनी पड़ी थी अग्नि परीक्षा

रामलला के विराजने की कहानी  

23 दिसंबर 1949 की सुबह उजाला होने से पहले यह बात चारों तरफ जंगल की आग की तरह फैल गई कि 'जन्मभूमि' में भगवान राम प्रगट हुए हैं। राम भक्त उस सुबह अलग ही जोश में गोस्वामी तुलसीदास की चौपाई 'भये प्रगट कृपाला' गा रहे थे। सुबह 7 बजे के करीब अयोध्या थाने के तत्कालीन एस.एच.ओ. रामदेव दुबे रूटीन जांच के दौरान जब वहां पहुंचे तब तक वहां सैकंड़ों लोगों की भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी। रामभक्तों की यह भीड़ दोपहर तक बढ़कर करीब 5000 तक पहुंच गई। अयोध्या के आसपास के गांवों में भी यह बात पहुंच गई थी। जिस वजह से श्रद्धालुओं की भीड़ बालरूप में प्रकट हुए भगवान राम के दर्शन के लिए टूट पड़ी थी। पुलिस और प्रशासन इस घटना को देख हैरान था। आम बोलचाल की भाषा में प्रकट होने को राम विराजे कहने लगे और यहीं से रामलला के साथ विराजमान शब्द भी जुड़ गया।  

इसे भी पढ़ें: Ayodhya में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा से पहले होना था भव्य कार्यक्रम, 17 जनवरी के लिए रद्द किया Trust ने प्रोग्राम

एक इनकार ने रखी राम मंदिर की नींव 

23 दिसंबर, 1949 को जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में प्रकट हुईं तो ये खबर सरकार तक भी पहुंची। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू उस वक्त देश के प्रधानमंत्री हुआ करते थे। अयोध्या में कोई बवाल न हो इसलिए केंद्र और राज्य की सरकारों ने तय किया कि पहले वाली स्थिति बहाल की जाए। इसके लिए यूपी के मुख्य सचिव भगवान सहाय ने फैजाबाद के डीएम को आदेश दिया कि रामलला की मूर्ति को मस्जिद से निकालकर राम चबूतरे पर स्थापित कर दिया जाए। इसके साथ ही ये भी कहा गया कि अगर इस काम के लिए अतिरिक्त फोर्स भी लगे तो लगाई जाए। केके नायर ने इस आदेश को सिरे से मानने से इनकार कर दिया और कानून व्यवस्था की स्थिति खराब होने के हवाला दिया। इसके साथ उन्होंने कहा कि कोई भी पुजारी मूर्ति को निकालकर राम चबूतरे पर विविधवत स्थापित करने को तैयार नहीं है। पंडित नेहरू ने नेहरू ने नायर के खत के जवाब में एक और खत लिखा और फिर वही आदेश दिया यथास्थिति बनाने का। नायर अपने फैसले पर अडिग रहे। उन्होंने भगवान राम की मूर्तियों को हटाने से इनकार कर दिया अपने इस्तीफे की पेशकश कर दी। जब केके नायर नहीं माने तो उनको निलंबित कर दिया गया था। फिर वो हाई कोर्ट गए और उन्हें हाई कोर्ट से स्टे मिला और फिर से फैजाबाद के डीएम बन गए। 


प्रमुख खबरें

Vinod Khanna Birth Anniversary: कॅरियर के पीक पर विनोद खन्ना ने फिल्मों से लिया था संन्यास, जानिए कुछ अनसुनी बातें

क्या सच में करेला डायबिटीज को कंट्रोल करता है? जानें एक्सपर्ट की राय

पैगंबर मोहम्मद पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर फंसे महंत Narasimhanand Saraswati, देशभर में मचा बवाल, कई जगह विरोध-प्रदर्शन

Imran Khan की पार्टी ने लिया सरकार के खिलाफ अपना प्रदर्शन जारी रखने का फैसला