तेल उत्पादन के महासमझौते को आसान भाषा में समझें, कीमतों पर क्या पड़ेगा असर?

By अभिनय आकाश | Apr 13, 2020

शीर्ष तेल उत्पादक देशों ने कोरोना वायरस संकट और सऊदी अरब-रूस के बीच तेल की कीमतों पर यु्द्ध के चलते कच्चे तेल के दाम में आई गिरावट को थामने के लिए इसके उत्पादन में ‘‘ऐतिहासिक’’ कटौती करने पर सहमति जताई है। तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक (ऑर्गेनाइज़ेन ऑफ द पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज) और रूस की अगुवाई वाले अन्य तेल उत्पादक देशों के बीच बीते दिनों वीडियो कांफ्रेंस के जरिए उत्पादन में कटौती के लिए एक समझौता हुआ। 

इसे भी पढ़ें: ट्रंप ने तेल समझौते के लिए रूस के राष्ट्रपति और सऊदी के क्राउन प्रिंस को कहा शुक्रिया

जिसके बाद से ही कच्चे तेल की कीमतों में तेजी देखने को मिली। एशियाई बाजारों में अमेरिकी बेंचमार्क डब्ल्यूटीआई शुरुआती कारोबार के दौरान 7.7 प्रतिशत बढ़कर 24.52 डॉलर प्रति बैरल हो गया, जबकि ब्रेंट क्रूड पांच प्रतिशत की तेजी के साथ 33.08 डॉलर प्रति बैरल पर था।

सबसे पहले आपको बताते हैं कि क्या है ओपेक

ऑर्गेनाइज़ेन ऑफ द पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज(ओपेक) पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन है। ओपेक की स्थापना 1960 में ईरान, ईराक, कुवैत, साउदी अरब और वेनेजुएला ने की थी। इसका मकसद अमेरिका और यूरोपीय तेल कंपनियों की ताकत और रसूख से तेल उत्पादक देशों के हितों की हिफाजत करना था। ओपेक के गठन का सुझाव वेनेजुएला ने दिया था। वो 1960 से 2018 के बीच पांच सदस्यी देशों के साथ 10 अन्य देश भी इसमें शामिल हो गए। ये देश इंडोनेशिया, लीबिया, संयुक्त अरब अमीरात, अल्जीरिया, नाइजीरिया, इक्वाडोर, अंगोला, गैबॉन और इक्वेटोरियल गिनी। कई देश इन संगठन में आते-जाते रहे। कतर 2018 में इस संगठन से अलग हो गया। ओपेक पूरे दुनिया में तेल सप्लाई का 40 फीसदी से ज्यादा का हिस्सा नियंत्रित करता है। सउदी अरब का इस तेल संगठन पर दबदबा है। ओपेक चाहता था कि रूस तेल के उत्पादन में में कटौती करे लेकिन रूस ने बात नहीं मानी।

इसे भी पढ़ें: भारत में कोरोना वायरस से मरने वालों का आंकड़ा 300 के पार, 9100 से ज्यादा बीमार

कोरोना का असर 

दुनिया में कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार चीन है। कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से चीन बड़े स्तर पर प्रभावित हुआ है। यहां फैक्ट्रियां, आफिस और दुकानें पहले की तरह नहीं चल रही हैं। कई कंपनियों का प्रोडक्शन घट गया है। चीन सामान्य तौर पर हर दिन औसतन 1 करोड़ चालीस लाख बैरेल तेल खपत करता है लेकिन  कोरोना वायरस की वजह से ऐसा हो नहीं रहा है। चीन के साथ अन्य देश भी कोरोना की चपेट में हैं और यात्राओं पर रोक, सड़कों पर गाड़िया के न चलने की वजह से खपत कम होने की वजह से तेल की मांग में भी कमी आई है। 

इसे भी पढ़ें: महामारी के बीच चीन निवेश करने में जुटा, 1 फीसदी से अधिक हुई HDFC में PBC की शेयरधारिता

क्या हुआ समझौते के अंतर्गत 

इस समझौते के अनुसार एक मई से ओपेक प्लस देश तेल उत्पादन में हर दिन लगभग एक करोड़ बैरल की कटौती करेंगे। इसके साथ ही ओपेक प्लस समूह से अलग अमरीका, कनाडा, ब्राज़ील और नॉर्वे 50 लाख बैरल की कटौती करेंगे। इसी साल जुलाई से दिसंबर के बीच कटौती को कम कर हर दिन 80 लाख बैरल किया जाएगा। इसके बाद जनवरी 2021 से अप्रैल 2022 तक 60 लाख बैरल तक लाया जाएगा।

इसे भी पढ़ें: सेंसेक्स में 600 अंकों से अधिक की गिरावट, निफ्टी पर 9,000 का स्तर टूटा

कच्चे तेल की कीमतों में उछाल

पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) और अन्य तेल उत्पादकों द्वारा उत्पादन में कटौती के एलान के बाद तेल की कीमतों में दो फीसदी की बढ़ोतरी की गई है। तेल उत्पादक देशों के बीच उत्पादन में कटौती को लेकर हुए समझौते के बाद कच्चे तेल की कीमतों में तेज उछाल देखा जा रहा है। क्रूड ऑयल के वायदा भाव की बात करें, तो क्रूड ऑयल WTI का फ्यूचर भाव 4.96 फीसद या 1.12 डॉलर की तेजी के साथ 23.88 डॉलर प्रति बैरल पर ट्रेंड कर रहा था। 


प्रमुख खबरें

PDP प्रमुख महबूबा मुफ्ती की मांग, अनुच्छेद 370 पर अपना स्टैंड किल्यर करे NC और कांग्रेस

जिन्ना की मुस्लिम लीग जैसा सपा का व्यवहार... अलीगढ़ में अखिलेश यादव पर बरसे CM योगी

Vivek Ramaswamy ने अमेरिका में बड़े पैमाने पर सरकारी नौकरियों में कटौती का संकेत दिया

Ekvira Devi Temple: पांडवों ने एक रात में किया था एकविरा देवी मंदिर का निर्माण, जानिए पौराणिक कथा