Yes Milord: सनातन पर टिप्पणी को लेकर उदयनिधि को फटकार, SC का सांसदों को कानूनी छूट से इनकार, कोर्ट में इस हफ्ते क्या हुआ

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By अभिनय आकाश | Mar 09, 2024

Yes Milord: सनातन पर टिप्पणी को लेकर उदयनिधि को फटकार, SC का सांसदों को कानूनी छूट से इनकार, कोर्ट में इस हफ्ते क्या हुआ

सुप्रीम कोर्ट से लेकर लोअर कोर्ट तक के वीकली राउंड अप में इस सप्ताह कानूनी खबरों के लिहाज से काफी उथल-पुथल वाला रहा है। एसबीआई की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 11 मार्च को सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने 'नोट फॉर वोट' मामले में फैसला सुनाते हुए सांसदों और विधायकों को कानून से छूट देने से इनकार कर दिया सनातन विवाद पर उदयनिधि स्टालिन को सुप्रीम कोर्ट से फटकार लगी है। पूर्व सांसद धनंजय सिंह को 7 साल की जेल हो गई है। इस सप्ताह यानी 04 मार्च से 09 मार्च 2024 तक क्या कुछ हुआ? कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट और टिप्पणियों का विकली राउंड अप आपके सामने लेकर आए हैं। कुल मिलाकर कहें तो आपको इस सप्ताह होने वाले भारत के विभिन्न न्यायालयों की मुख्य खबरों के बारे में बताएंगे। 

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सनातन बयान पर उदयनिधि को SC की फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म को लेकर दिए गए बयान पर नाखुशी जाहिर की है। सुप्रीम कोर्ट ने उनसे सवाल किया कि विचार और अभिव्यक्ति के अधिकार का दुरपयोग करने के बाद वह अपनी याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट क्यों आए। सुप्रीम कोर्ट ने स्टालिन से कहा, क्या आप अपनी टिप्पणी के नतीजे नहीं जानते थे? आप आम आदमी नहीं हैं। आप मंत्री है। आपको पता होना चाहिए था कि इस तरह की टिप्पणी का क्या परिणाम होगा। 

चुनावी बॉण्ड पर एसबीआई ने जानबूझकर देरी की

असोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इलेक्टोरल बॉण्ड के बारे में सुप्रीम कोर्ट में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) के खिलाफ अवमानना याचिका दायर कर दी। एडीआर की ओर से प्रशांत भूषण ने यह मामला उठाया और कहा कि एसबीआई के खिलाफ कंटेंप्ट कार्रवाई की जाए। याचिकाकर्ता ने कहा कि एसबीआई ने जानबूझकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना अवहेलना की है। याचिकाकार्ता ने दावा किया है कि एसबीआई ने 30 जून तक का वक्त मांगने के लिए आखिरी वक्त में आवेदन दाखिल किया ताकि लोकसभा चुनाव से पहले डोनर और डोनेशन अमाउंट को उजागर न करना पड़े। चीफ जस्टिस की बेंच के सामने प्रशांत भूषण ने यह मामला उठाया और कहा कि एसबीआई ने इस मामले में जो आवेदन दिया है, उस पर 11 मार्च को सुनवाई की संभावना है।

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अपहरण, रंगदारी के मामले में पूर्व सांसद धनंजय सिंह दोषी करार

अदालत ने जौनपुर के जल निगम के प्रोजेक्ट मैनेजर के अपहरण और रंगदारी के मामले में पूर्व सांसद धनंजय सिंह और संतोष विक्रम को दोषी करार दिया है। सजा पर बुधवार को सुनवाई होगी। फैसला सुनाए जाने के समय अदालत में मौजूद रहे धनंजय और संतोष विक्रम को जेल भेज दिया गया है। जौनपुर के लाइन वाजार थाने में 10 मई 2020 को जल निगम के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल ने एफआईआर दर्ज करवाई थी कि आरोपी संतोष विक्रम दो साथियों के साथ उनका अपहरण कर पूर्व सांसद धनंजय सिंह के आवास पर ले गए। आरोप है कि वहां धनंजय सिंह ने पिस्टल से धमकाते और गालियां देते हुए करीव 300 करोड़ रुपये से सीवर लाइन बिछाने के चल रहे काम में कम क्वॉलिटी वाली सामग्री की सप्लाई के लिए दवाव बनाया। मना करने पर रंगदारी मांगी और जान से मारने की धमकी दी।

नोट देकर सदन में वोट दिया तो चलेगा मुकदमा

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सांसदों और विधायकों को सदन में वोट डालने या भाषण देने के लिए रिश्वत लेने के मामले में किसी भी केस से कोई छूट नहीं होगी। रिश्वतखोरी का मामला विशेषाधिकार से संरक्षित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ ने 1998 के पीवी नरसिंहराव केस में दिए अपने फैसले को पलट दिया। कोर्ट ने 1998 में कहा था कि एमपी, एमएलए को सदन में वोट और बयान के बदले कैश केस में मुकदमे से छूट है। सात जजों की पीठ ने कहा कि 1998 के फैसले का संसदीय लोकतंत्र पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। विधायिका का कोई सदस्य सदन में वोट डालने के लिए रिश्वतखोरी के आरोप में अनुच्छेद 105, 194 के तहत छूट पाने का दावा नहीं कर सकता।

सुप्रीम कोर्ट का प्रोफेसर पर दर्ज सभी केस खत्म करने का आदेश दिया

सुप्रीम कोर्ट ने आज असहमति के अधिकार को बरकरार रखते हुए कहा कि हर आलोचना अपराध नहीं है और अगर ऐसा सोचा गया तो लोकतंत्र बच नहीं पाएगा। पुलिस को संविधान द्वारा दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में संवेदनशील होना चाहिए, अदालत ने उस व्यक्ति के खिलाफ मामला खारिज कर दिया, जिसने अनुच्छेद 370 को खत्म करने पर प्रतिकूल टिप्पणी की थी, जिसने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया था। अदालत ने कहा कि भारत का संविधान, अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। उक्त गारंटी के तहत, प्रत्येक नागरिक को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की कार्रवाई की आलोचना करने का अधिकार है या, उस मामले के लिए, राज्य के हर फैसले पर। 


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