लखनऊ। न्यायपालिका से कैसे-कैसे फैसले आते हैं। कभी-कभी तो समझ में ही नहीं आता है कि इन फैसलों का आधार क्या हो सकता है। यह सही है कि कोर्ट संभवता संविधान के दायरे में ही निर्णय सुनाता होगा, लेकिन क्या कोई फैसला सुनाते समय न्यायपालिका को इस बता का ध्यान नहीं रखना चाहिए कि उनके फैसले का जनमानस में क्या असर होगा। सवाल यह भी है कि जो सिस्टम दशकों से चला आ रहा है उसे एक झटके में कोई कोर्ट कैसे नजरअंदाज कर सकती है। यह सवाल इसलिये उठ रहा है क्योंकि गत दिवस इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि जिलाधिकारी राजस्व अधिकारी हैं, उन्हें विद्यालयों के कार्यों में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है। ऐसे में बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों के निरीक्षण का आदेश देना और शिक्षक का निलंबन आदेश अवैधानिक है। न्यायालय ने शिक्षक के निलंबन को रद्द करते हुए डीएम और जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी संभल से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है। यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने सहायक अध्यापिका संतोष कुमारी की याचिका पर दिया।
दरअसल, यह मामला संभल के एक विद्यालय में कार्यरत रही शिक्षिका की याचिका से जुड़ा है। जिन्हें 25 अक्तूबर 2024 के आदेश से निलंबित कर दिया गया। इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। याची अधिवक्ता चंद्रभूषण यादव ने दलील दी कि डीएम के निर्देश पर एसडीएम और खंड शिक्षा अधिकारी ने विद्यालय का संयुक्त रूप से निरीक्षण किया। शिक्षिका को कार्य में खराब प्रदर्शन के आधार पर निलंबित कर दिया गया। निलंबन आदेश को रद्द करने की प्रार्थना की। न्यायालय ने पक्षों को सुनने के बाद कहा कि जिलाधिकारी को बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों के निरीक्षण का अधिकार नहीं है। बेसिक स्कूल बेसिक शिक्षा परिषद के तहत चलते हैं। इसका नियंत्रण बेसिक शिक्षा अधिकारी के पास होता है। बीएसए अपर निदेशक, निदेशक और सचिव बेसिक शिक्षा परिषद के प्रति जवाबदेह हैं। इसका अध्यक्ष एक शिक्षा मंत्री होता है। ऐसे में जिलाधिकारी की विद्यालयों के कार्यों में कोई भूमिका नहीं है। कोर्ट ने बेसिक शिक्षा अधिकारी को भी इसके लिए जिम्मेदार माना। कहा कि उन्होंने डीएम को यह नहीं बताया कि विद्यालय के निरीक्षण का आदेश देने का उनको अधिकार नहीं है। न्यायालय ने निलंबन आदेश रद्द कर जवाब मांगा है।
क्या जिलाधिकारी प्राथमिक विद्यालयों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है ? इसका काफी जटिल है जब जिलाधिकारी को किसी जिले के विकास की जिम्मेदारी सौंपी गई है तो इस जिम्मेदारी में बेसिक स्कूल कैसे शामिल नहीं होंगे, विकास का रास्ता तो स्कूलों में अच्छी शिक्षा से ही शुरू होता है। यदि कोई शिक्षक अपने काम में लापरवाही करता है तो उसके खिलाफ जिलाधिकारी को हस्तक्षेप करने का अधिकार कैसे नहीं होना चाहिए। आखिरकार जिलाधिकारी पद का नाम ही बताता है कि उसके ऊपर पूरे जिले की जिम्मेदारी होती है।