राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज का पूरा सम्मान होना चाहिए

By डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा | Feb 27, 2017

किसी देश के लिए इससे ज्यादा दुर्भाग्य की बात क्या होगी कि राष्ट्रगान के सम्मान के लिए देश की सर्वोच्च अदालत को दखल देना पड़े। यह भी अपने आप में निराशाजनक है कि राष्ट्रगान के सम्मान को लेकर देश के नागरिकों को अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़े। हालांकि अब सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि किसी फिल्म, वृत्तचित्र या समाचार फिल्म में राष्ट्रगान के दौरान दर्शकों को खड़े होने की आवश्यकता नहीं है, वो भी इसलिए कि राष्ट्रगान इनमें कहानी के हिस्से के रूप में होता है। पर इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय यह निर्देश दे चुका है कि सिनेमाहालों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाने और दर्शकों द्वारा सम्मान में खड़े होने की अनिवार्यता होगी। हालांकि इन निर्देशों के बावजूद इस याचिका का पूरी तरह से निस्तारण नहीं कर सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई जारी रखने का निर्णय किया है। इस पर अगली सुनवाई अप्रैल में होगी। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश से देश में शुद्ध हवा की बयार आई है। हालांकि इसे दुर्भाग्यजनक ही माना जाना चाहिए कि राष्ट्रगान के सम्मान के लिए देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था को दखल देना पड़ रहा है।

 

यह इस देश की सबसे बड़ी समस्या है कि यदि यही आदेश या निर्देश सरकार द्वारा दिए गए होते तो देश के हालातों, राजनीतिक दलों, संप्रदायवादियों, प्रतिक्रियावादियों और बुद्धिजीवियों द्वारा सरकार पर ना जाने किस स्तर तक के आरोप लग जाते, आंदोलन का दौर शुरू हो जाता, प्रदर्शन होते, पुतले जलते, राष्ट्रीय तमगे वापिस करने की होड़ मच जाती, यहां तक कि सरकार को घोर संप्रदायवादी कहते हुए उस पर अपना एजेण्डा थोपने का आरोप लग जाता। देश की सीमा पर भले ही कुछ हो रहा हो प्रतिदिन पाकिस्तान द्वारा सीज फायर और आतंकवादी घटनाएं हो रही हों, देश के नौजवान सैनिक सीमा पर शहीद हो रहे हों पर हमारे राजनीतिक दलों और कथित बुद्धिजीवियों का एजेण्डा केवल और केवल मात्र दुनिया को यह दिखाना होता कि देशभक्ति बाद में पहले हमें हमारा कथित सेक्यूलर अस्तित्व बनाए रखना है।

 

अभी सेनाध्यक्ष ने कश्मीर में आतंकवादियों के सहयोग में सेना पर पत्थर फेंकने वालों पर सख्ती के संकेत क्या दिये, राजनीतिक दलों, अलगाववादियों और प्रतिक्रियावादियों के बौखलाहटी रिएक्शन आने लग गए हैं। सोचने की बात यह है कि क्या सेना दोहरी मार खाने के लिए ही है। देश इस समय दो गंभीर चुनौतियों से रूबरू हो रहा है। एक ओर सीमा पर लगभग प्रतिदिन हमारे सैनिक शहीद हो रहे हैं, वहीं हमारे राजनीतिक दलों की प्राथमिकता बयानबाजी होकर रह गई है। एक बात समझ से परे है कि एक ओर संसद तक एक दूसरे को नीचा दिखाने या देशहित से परे अहम के चलते नहीं चल पाती वहीं राष्ट्रहित के मुद्दों पर भी हम एक नहीं हो पाते। जब नोटबंदी को कमोबेश सभी राजनीतिक दल उचित निर्णय मान रहे थे और केवल क्रियान्वयन को लेकर सरकार से मतभेद था तो सत्ताधारी दल व अन्य दल क्या राष्ट्रहित में एक साथ बैठकर इसका कोई हल नहीं निकाल सकते थे। जिस तरह से सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध चलता है उससे यह भी साफ हो जाता है कि देशहित में कोई भी आगे आने की पहल करने को तैयार नहीं है। संसद की कार्यवाही झूठे अहम के चलते बाधित होती है।

 

देश के वर्तमान हालातों के चलते सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को शुद्ध हवा की बयार के रूप में देखा जाना चाहिए। पिछले दिनों वंदे मातरम को लेकर देश में काफी हो हल्ला मच चुका है। दुनिया ने जहां हमारे योग को स्वीकारा वहीं देश में ओम के उच्चारण को लेकर विरोध जगजाहिर है। सारी दुनिया के नागरिक देश के राष्ट्रीय पहचानों को सम्मान देते रहे हैं। हमारे यहां आए दिन राष्ट्रीय सम्मान की बात पर प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हो जाता है। सर्वोच्च न्यायालय के ताजा निर्णय से पहले भी सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजता रहा है। पर दुर्भाग्य से फिल्म समाप्त होने के अवसर पर दिखाए जाने से देशवासियों को इतनी जल्दी लग जाती थी कि राष्ट्रगान के सम्मान में कुछ क्षणों के लिए खड़े होने के स्थान पर सिनेमाघर से बाहर जाने की होड़ मच जाती थी और राष्ट्रगान का अपमान कोई मायने नहीं रखता था। ऐसे में इसे बंद करना पड़ा और 1975 के नियम बदले गए। केरल व महाराष्ट्र के सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज का दिखाया जाता है। इसके सम्मान को लेकर ही न्यायालय में यह प्रकरण गया। एक और हमें गर्व होना चाहिए कि एक ही कवि की रचना दो देशों में राष्ट्रगान के रूप में गाई जाती है। गुरुदेव रविन्द्र नाथ ठाकुर द्वारा रचित एक अन्य रचना आज भी बांग्लादेश का राष्ट्रगान है। 

 

राष्ट्र के प्रति सम्मान देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। राष्ट्रगान बजाने और उसके सम्मान के लिए सरकार द्वारा नियम बनाए हुए हैं। सारी दुनिया के देशों के नागरिक राष्ट्र गान और राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करते हैं। ऐसा नहीं है कि हमारे देश में राष्ट्रभक्ति को लेकर कोई कमी है। पर यह भी सही है कि राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज के अपमान से भी नकारा नहीं जा सकता। अतिवादियों, अलगाववादियों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज का अपमान आम बात है। इसी तरह से राष्ट्रगान के समय उचित सम्मान नहीं देने के भी उदाहरण कम नहीं हैं। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश मायने रखते हैं। सभी देशवासियों को राष्ट्रगान याद होना चाहिए, उसके उच्चारण, गायन और गायन के समय के नियमों की जानकारी होनी चाहिए। राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज का पूरा सम्मान होना चाहिए। सबसे अहम बात यह कि देश के प्रत्येक नागरिक का यह दायित्व हो जाता है कि वह राष्ट्रगान और ध्वज का अपमान किसी भी स्थिति में ना होने दे। राजनीतिक दलों, बुद्धिजीवियों, प्रतिक्रियावादियों को भी कम से कम राष्ट्रीय पहचान से जुड़ी बातों पर अपनी प्रतिक्रिया देने से परहेज करना चाहिए। आशा की जानी चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश लोगों में समझ पैदा करने में सहायक होगा। राष्ट्रगान को सभी शिक्षण संस्थानों में प्रार्थना के समय अनिवार्य किया जाना चाहिए, कहने को तो यह है पर कॉन्वेंट व अन्य शिक्षण संस्थानों में राष्ट्रगान अब प्राथमिकता में नहीं रहा है। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय और सरकार को सभी सरकारी कार्यक्रमों की शुरुआत, शिक्षण संस्थानों की प्रार्थना आदि में राष्ट्रगान को अनिवार्य करना होगा। राष्ट्रगान देश की पहचान है और इसे बनाए रखना होगा।

 

- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

प्रमुख खबरें

Maharashtra: Congress छोड़ NCP के टिकट पर चुनाव क्यों लड़ रहे जीशान सिद्दीकी? पिता की हत्या पर किया बड़ा दावा

Israel vs Iran: भारत ने पश्चिम एशिया में शत्रुता कम करने का किया आह्वान, कहा- संयम बरतें

चीन का सारा प्लान हुआ फेल, Apple की बेहतरीन वापसी से बढ़ी बेचैनी

अरुणाचल पहंची वायु वीर विजेता कार रैली, जसवंत रावत दी जाएगी श्रद्धांजलि, रक्षा मंत्री भी होंगे शामिल