नेताओं की बढ़ती सम्पत्ति गरीबों को मुंह चिढ़ा रही है

By योगेंद्र योगी | Jan 06, 2025

भारत में 12.9 करोड़ लोगों को एक वक्त का खाना भी ठीक तरह से मयस्सर नहीं होता और नेताओं की सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती सम्पत्ति इनकी गरीबी का उपहास उड़ा रही है। इस पर भी तुर्रा यह है कि देश के नेता आम जनता के लिए काम करते हैं। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू देश के सबसे अमीर मुख्यमंत्री हैं। उनके पास 931 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति है। अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू दूसरे नंबर पर हैं। उनके पास 332 करोड़ रुपये से अधिक की कुल संपत्ति है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया तीसरे नंबर पर हैं। उनके पास 51 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति है। यह खुलासा एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट में किया गया है। देश के 31 मुख्यमंत्रियों की कुल संपत्ति 1,630 करोड़ रुपये है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि प्रति मुख्यमंत्री की औसत संपत्ति 52.59 करोड़ रुपये है। भारत की प्रति व्यक्ति शुद्ध राष्ट्रीय आय या एनएनआई 2023-2024 के लिए लगभग 1,85,854 रुपये थी, जबकि एक मुख्यमंत्री की औसत स्व-आय 13,64,310 रुपये है, जो भारत की औसत प्रति व्यक्ति आय का लगभग 7.3 गुना है। वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सिर्फ 15 लाख रुपये की संपत्ति के साथ सबसे कम संपत्ति वाली मुख्यमंत्री हैं। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला 55 लाख रुपये की संपत्ति के साथ सूची में दूसरे सबसे गरीब मुख्यमंत्री हैं। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन 1.18 करोड़ रुपये की संपत्ति के साथ तीसरे सबसे कम संपत्ति वाले मुख्यमंत्री हैं। मुख्यमंत्रियों की इस सम्पत्ति का खुलासा चुनाव आयोग में दिए गए सम्पत्ति के ब्यौरे से हुआ है। गौरतलब है कि चुनाव आयोग के पास ऐसा कोई तरीका नहीं है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि जो जानकारी दी है, वह सही या कुछ छिपाया गया है। दरअसल देश के नेता चुनाव आयोग को वही जानकारी देते हैं, जिसे वे आयकर रिटर्न में भरते हैं। देश में आयकर रिटर्न भरने वाले भी आयकर और प्रवर्तन निदेशालय के जाल में फंसते रहे हैं। सिर्फ रिटर्न फाइल कर लेने मात्र से किसी की सम्पत्ति या आय दूध की धुली नहीं हो जाती। यदि ऐसा ही होता तो देश के सैकड़ों नेता ईडी, सीबीआई और आयकर के लपेटे में नहीं आते। हालांकि इनके जाल में फंसने के बाद नेता यही राग अलापते रहे हैं कि विपक्ष में होने के कारण उन्हें जानबूझ कर फंसाया गया है।   


विपक्षी दलों के दिग्गज नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण केंद्र में सत्तारुढ़ भाजपा और उसके सहयोगी दलों पर भी सवाल उठते रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या सत्तारुढ भाजपा और उसके सहयोगियों में सभी ईमानदार हैं। चन्द्रबाबू नायडू और नीतिश कुमार के समर्थन से बहुमत में केंद्र की भाजपा सरकार में क्या इतना साहस है कि इनके दलों के नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर कोई कार्रवाई कर सके। क्या यह संभव है कि इन दोनों दलों के नेताओं के भ्रष्टाचार की जानकारी केंद्रीय जांच एजेंसियों को नहीं हो।   


यही वजह है कि जांच एजेंसियों पर दुर्भावना से कार्रवाई करने के आरोप लगते रहे हैं। विपक्षी दलों का यह भी आरोप है कि जिन विपक्षी नेताओं ने भाजपा का दामन थाम लिया, उनके मामले रफा-दफा कर दिए गए। 2014 से 2022 तक ईडी के निशाने पर रहे कऱीब 95 फ़ीसदी यानी 115 नेता विपक्ष से थे। हालांकि ये आंकड़े 2022 तक के ही हैं। इसके बाद 2023 में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए थे और इस दौरान विपक्षी दलों ने अलग-अलग राज्यों पर हुई ईडी, सीबीआई की छापेमारी को राजनीति से प्रेरित बताया था। वर्ष 2004-14 में 26 नेताओं से ईडी ने पूछताछ की थी। इनमें कऱीब 54 फ़ीसदी यानी 14 नेता विपक्ष से थे। यह संभव है कि मुख्यमंत्रियों और दूसरे नेताओं ने सम्पत्ति व्यवसायों के जरिए अर्जित की हो, या फिर पुश्तैनी हो। इसके बावजूद इतनी भारी सम्पत्ति होना देश में गरीबी की जीवन रेखा से नीचे रहने वालों को मुंह तो चिढ़ाती है। जबकि नेता आम लोगों के प्रतिनिधित्व का दावा करते हैं। वर्ष 2023 बहुआयामी गरीबी सूचकांक रिपोर्ट में पाया गया है कि दुनिया के सभी गरीब लोगों में से एक तिहाई से अधिक दक्षिण एशिया में रहते हैं- जो लगभग 12.9 करोड़ लोग हैं। भारत इस संख्या में महत्वपूर्ण योगदान देता है, जो अत्यधिक गरीबी में लगभग 70 प्रतिशत की वृद्धि के लिए जिम्मेदार है। विश्व बैंक अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा के आधार पर गरीबी को परिभाषित करता है, जिसके अनुसार प्रति व्यक्ति प्रति दिन 2.15 डॉलर की दर से अत्यधिक गरीबी तय की जाती है, जबकि 3.65 डॉलर निम्न-मध्यम आय श्रेणी में आता है, तथा 6.85 डॉलर उच्च-मध्यम आय श्रेणी में वर्गीकृत किया जाता है। वैश्विक निर्धारित गरीबी रेखा 3.65 डॉलर प्रति व्यक्ति है। 

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भारत का योगदान वैश्विक गरीबी दर में मामूली वृद्धि के 40 प्रतिशत के बराबर है, जो 23.6 प्रतिशत से बढ़कर 24.1 प्रतिशत हो गई है। भारत में गरीबी दर मिटाने के मामले में केरल सबसे आगे है। केरल में सिर्फ़ 0.71 प्रतिशत आबादी गरीब है। वहीं, बिहार, झारखंड, और उत्तर प्रदेश में गरीबी दर सबसे ज़्यादा है। बिहार में 51.91 प्रतिशत, झारखंड में 42.16 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में 37.79 प्रतिशत आबादी गरीबी में रहती है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2024 के मुताबिक, भारत को 127 देशों में 105वां स्थान मिला। भारत, अपने पड़ोसी देशों श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार, और बांग्लादेश से भी पीछे है। भारत में भुखमरी की वजह से अक्सर मौत भी हो जाती है। भुखमरी के कारण बच्चों और वयस्कों में कुपोषण, बौनापन, और दुर्बलता हो सकती है। भुखमरी सिर्फ़ भोजन तक सीमित नहीं है, यह सरकार की ज़रूरतमंद लोगों की मदद करने में विफलता को दर्शाता है। भारत में भुखमरी की समस्या मुख्य रूप से बिहार, मध्य प्रदेश, असम, राजस्थान, और उत्तर प्रदेश में है। इन राज्यों में से, बिहार और उत्तर प्रदेश में भारत की कुल भूखी आबादी का एक तिहाई हिस्सा है।   


भारत में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि देश का एक भी राज्य ऐसा नहीं है, जिसके विभाग को सौ प्रतिशत भ्रष्टाचार से मुक्त कहा जा सकता है। राज्यों में चाहे किसी भी दल की सरकारें हों, हर पार्टी सत्ता में आने के बाद यही दावा करती है कि भ्रष्टाचार को जड़मूल से मिटाया जाएगा। सत्ता में आते ही यह वादा हवा हो जाता है। जब कभी कोई भ्रष्ट कार्मिक पकड़ा जाता है, तब सरकार यही दावा करती है कि किसी भ्रष्टाचारी को बख्शा नहीं जाएगा, किन्तु यह दावा कभी नहीं करती कि जिस विभाग का आरोपी पकड़ा गया है, वह विभाग अब पूरी तरह से भ्रष्टाचार से मुक्त हो चुका है।   


देश में भ्रष्टाचार, गरीबी और भुखमरी के बीच नेताओं की बढ़ती हुई सम्पत्ति में बेशक सीधा कोई संबंध न हो किन्तु सवाल तो उठना लाजिमी है। यक्ष प्रश्न यही है कि करोड़ों की आबादी के पास दो वक्त का खाना नहीं है तो नेताओं की सम्पत्ति आखिर कैसे बढ़ रही है। ऐसे नेताओं की भी कमी नहीं है, जिनके आर्थिक हैसीयत राजनीति में आने से पहले आम लोगों जैसी थी, किन्तु जनप्रतिनिधि और मंत्री बनते ही उनकी सम्पत्ति में उछाल आ गया। देश में जब तक गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी जैसी समस्याएं रहेंगी तब तक नेताओं की सम्पत्ति देशहित के दावों की धज्जियां उड़ाती रहेंगी।

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