मेरठ में 75 साल से नागर परिवार ने संभाल रखा है कांग्रेस के आखिरी अधिवेशन में फहराया गया तिरंगा

By राजीव शर्मा | Aug 14, 2021

मेरठ। 23 नवंबर 1946 का वो ऐतिहासिक दिन मेरठ और देश के लिए किसी गौरव से कम नहीं था। इस दिन मेरठ के विक्टोरिया पार्क में कांग्रेस के अंतिम अधिवेशन में देश की आन, बान और शान का प्रतीक तिरंगा झंडा फहराया गया था। इस पल के गवाह बने थे मेरठ निवासी कर्नल गणपत राम नागर। इस अधिवेशन में पंडित जवाहर लाल नेहरू, सुचेता कृपलानी और जेबी कृपलानी के अलावा कर्नल शाहनवाज शामिल हुए थे। कांग्रेस के इस अधिवेशन में फहराया गया झंडा आज भी मेरठ के हस्तिनापुर में कर्नल गणपत राम नागर के पौत्र गुरू नागर ने बड़े हिफाजत से संभाल कर रखा हुआ है। 

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गुरू नागर के छोटे भाई देव नागर बताते हैं कि उनके दादा जी को ये तिरंगा कांग्रेस के अधिवेशन समाप्त होने के बाद नेहरू जी ने यादगार के तौर पर दिया था। उन्होंने यह कहते हुए दिया था कि इस तिरंगे की हिफाजत का जिम्मा अब तुम्हारा है। उसके बाद से आज तक यानी आजादी के 75 साल बाद भी देश का ये पहला तिरंगा नागर परिवार ने बड़े हिफाजत के साथ सुरक्षित रखा हुआ है। 75 साल पुराने इस तिरंगे का आकार 14 फिट चौड़ा और 9 फिट लंबा है।

गुरू नागर की पत्नी अंजु नागर का कहना है कि वे इस तिरंगे की देखभाल अपने बच्चे से भी ज्यादा करती हैं। उनकी शादी के बाद जब पता चला कि वे ऐसे खानदान में आई हैं जिसके पास धरोहर के रूप में देश का पहला तिरंगा झंडा है तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। अंजु नागर बताती है कि वे इसके मान और सम्मान के साथ ही इसकी सुरक्षा का पूरा ख्याल रखती हैं। वे इसको हमेशा ऐसे स्थान पर रखती हैं जहां पर इसको संविधान के अनुसार सम्मान मिले और इसकी सुरक्षा होती रहे। 75 साल से ये तिरंगा अपने उसी स्वरूप में है। लेकिन अब और तक के इस तिरंगे में फर्क इतना है कि उस समय इसमें गांधी जी का चर्खा था बीच में और अब इसके बीच में चक्र बना हुआ है। अंजु नागर तिरंगे की साफ-सफाई का भी पूरा ध्यान रखती है। इस तिरंगे को वे सप्ताह में एक बार निकालकर धूप दिखाती हैं और ब्रश से इसकी सफाई भी करती हैं। 

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कर्नल गणपत राम नागर का जन्म 16 अगस्त 1905 को पंडित विष्णु नागर के घर हुआ था। मेरठ कालेज से पढाई करने के दौरान उनको विदेश भेज दिया गया। जहां पर वे ब्रिटिश आर्मी में 1929 में किंग अफसर के पद पर नियुक्त हुए। इसके बाद 1939 में सिंगापुर के पतन के बाद ये आजाद हिंद फौज में भर्ती हो गए और सुभाष चंद्र बोस के काफी नजदीक होने पर उन्हें मेजर जनरल की पोस्ट से नवाजा गया। गणपत राम नागर के इकलौते बेटे सूरज नाथ नागर भी कुमायूं रेजीमेंट में 1950 से 1975 तक कर्नल के पद पर रहे।

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