History of Maharashtra Politics Part 1 | स्वतंत्रता संग्राम में महाराष्ट्र का योगदान | Teh Tak

By अभिनय आकाश | Sep 30, 2024

भारत की आजादी दिलाने के लिए देश के नायकों ने कई तरह के रास्ते अपनाएं किसी ने गांधी जी के अहिसावादी आंदोलनों को अपनाया। कोई क्रांतिकारी बन गया। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महाराष्ट्र का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इन मराठी क्रांतिकारियों ने तब से कई क्षेत्रों में अपनी बहादुरी और धैर्य का प्रदर्शन किया है। 

महाराष्ट्र से जुड़े स्वतंत्रता सेनानियों के नाम 

क्रांतिवीर लाहुजी साल्वे: लाहुजी राघोजी साल्वे को वास्ताद (मास्टर) लाहुजी साल्वे और क्रांतिवीर (बहादुर क्रांतिकारी) के नाम से भी जाना जाता है। वह एक क्रांतिकारी, समाज सुधारक, कार्यकर्ता और विचारक थे। उनका जन्म 1811 में भारत के महाराष्ट्र राज्य में पुरंदर किले की तलहटी में पेठ गांव में हुआ था। उनका जन्म एक अछूत परिवार में हुआ था और उन्हें कभी स्कूल जाने का अवसर नहीं मिला। उनके पिता ने उन्हें कुश्ती करना सिखाया, और अपने पिता की शिक्षा के परिणामस्वरूप, उन्हें वस्ताद (मास्टर के लिए मराठी शब्द) का दर्जा प्राप्त हुआ।

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विनोबा भावे- आचार्य विनोबा भावे महत्मा गांधी के अनुयायी थे। वह धर्मगुरु होने के साथ ही समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी भी थे। विनोबा भावे ने अपने जीवन काल में अहिंसा और समानता के सिद्धांत का हमेशा पालन किया है। उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों और दबे-कुचले वर्ग के लिए लड़ने को समर्पित किया। वह लोगों के अधिकारों के लिए आवाज उठाते थे। भूदान आंदोलन से विनोबा भावे को सबसे ज्यादा लोकप्रियता मिली। महाराष्ट्र के कोलाबा जिले के गागोड गांव में 11 सितंबर, 1895 को उनका जन्म हुआ था। उनका पूरा नाम विनायक नरहरि भावे था। महात्मा गांधी के प्रभाव में आने के बाद विनोबा भावे स्वतंत्रता संग्राम में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगे। असहयोग आंदोलन में भी उन्होंने हिस्सा लिया। स्वतंत्रता संग्राम में विनोबा भावे की सक्रिय भागीदारी से ब्रिटिश शासन आक्रोशित हो गया। ब्रिटिश सरकार का विरोध करने के आरोप में उन्हें जेल भेज दिया गया। इस दौरान उन्होंने जेल में बंद अन्य कैदियों को 'भगवद् गीता' के विभिन्न विषयों का ज्ञान दिया। 

धोंडो केशव कर्वे- केशव धोंडो कर्वे एक प्रसिद्ध समाज सुधारक और शिक्षक हैं जिन्होंने हिंदू विधवाओं के पुनर्विवाह और महिला शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए काम किया है। उन्होंने 1896 में हिंदू विधवा गृह, 1883 में विधवा विवाह संघ और 1916 में श्रीमती नाथीबाई दामोदर थैकर्सी महिला विश्वविद्यालय की स्थापना की। महा-ऋषि महर्षि, जिसका अनुवाद "महान ऋषि" है, उनका सामान्य नाम था। कर्वे परिवार और सामाजिक सुधार के उनके प्रयासों को अमोल पालेकर की फिल्म धायसापर्व में भी उजागर किया गया है, जो कर्वे के बेटे रघुनाथ के जीवन पर आधारित है। भारत सरकार द्वारा उन्हें दिया गया सबसे बड़ा नागरिक सम्मान, भारत रत्न, उन्हें 1958 में उनके 100वें जन्मदिन के वर्ष दिया गया था। 

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विनायक दामोदर सावरकर- आजादी की लड़ाई में उनके योगदान की चर्चा होती है। क्रांतिकारी और हिंदुत्व विचारक का जन्म 28 मई, 1883 को महाराष्ट्र के नासिक के भगूर में हुआ था। वो एक महाराष्ट्र के ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। सावरकर एक वकील, कार्यकर्ता, लेखक और राजनीतिज्ञ भी थे। नासिक के कलेक्टर की हत्या के आरोप में अंग्रेजों ने 1911 में सावरकर को काला पानी की सजा सुनाई थी। साल 2018 में पीएम मोदी उसी सेल्यूलर जेल में गए थे जहां पर अंग्रेजों ने वीर सावरकर को रखा था। जेल परिसर में पहुंचने के बाद पीएम मोदी ने शहीद स्तंभ पर पुष्प चक्र अर्पित किया था। फिर उस कोठरी में गए जहां हिंदुत्व विचारक वीर सावरकर को रखा गया था। 

डॉ. ए.एस. बी.आर. अम्बेडकर- 14 अप्रैल 1891 वर्तमान के मध्यप्रदेश की महू छावनी में भीमराव का जन्म हुआ। बड़ौदा नरेश सयाजी राव गायकवाड की फेलोशिप पाकर भीमराव ने 1912 में मुबई विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा पास की। संस्कृत पढ़ने पर मनाही होने से वह फारसी लेकर उत्तीर्ण हुये। फेलोशिप समाप्त होने पर उन्हें भारत लौटना था अतः वे ब्रिटेन होते हुये लौट रहे थे। उन्होंने वहां लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स एण्ड पोलिटिकल साइंस में एमएससी और डीएससी और विधि संस्थान में बार-एट-लॉ की उपाधि हेतु स्वयं को पंजीकृत किया और भारत लौटे। 2 साल 11 महीने 17 दिन बाद संविधान सभा की ड्राफ्ट कमेटी के चेयरमैन के तौर पर डाक्टर भीमराव अंबेडकर जब अपना आखिरी भाषण दे रहे थे। उनकी आंखों में भारत की एकता और स्वतंत्रता को लेकर गंभीर चिंतन मंथन का दौर चल रहा था। संविधान सभा में बोलते हुए तब डा. अंबेडकर ने साफ लफ्जों में भारत के राजनीतिक दलों को देश की एकता, अखंडता के लिए आगाह किया था। 

महात्मा ज्योतिबा फुले- ज्योतिराव गोविंदराव फुले 19वीं सदी के एक महान समाज सुधारक थे। इसके अलावा वह समाजसेवी, लेखक, विचारक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। इनको महात्मा फूले और ज्योतिबा फुले के नाम से भी जाना जाता है। इन्होंने अपना पूरा जीवन समाज के लिए समर्पित कर दिया था। महात्मा फुले ने दलितों पर लगे अछूत के लांछन को धोने और उन्हें बराबरी का दर्जा दिलाने के भी प्रयत्न किए। इसी दिशा में उन्होंने दलितों को अपने घर के कुंए को प्रयोग करने की अनुमति दे दी। 

बाल गंगाधर तिलक- बाल गंगाधर तिलक ने 'लोकमान्य' की उपाधि अर्जित की थी। सबसे पहले ब्रिटिश राज के दौरान बाल गंगाधर तिलक ने ही पूर्ण स्वराज की मांग उठाई थीं। जिस कारण तिलक को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का जनक कहा जाता है। महाराष्ट्र के रत्नागिरी में 13 जुलाई 1856 को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का जन्म हुआ था। बाल गंगाधर तिलक ने दक्खन शिक्षा सोसायटी की स्थापना की। इसका मुख्य उद्देश्य देश में शिक्षा के स्तर में सुधार लाना था। इसके अलावा उन्होंने मराठी भाषा में मराठा दर्पण और केसरी नामक दो अखबार शुरू किए थे। जो उस दौर में काफी ज्यादा लोकप्रिय हुए थे। तिलक ने स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बनते हुए अंग्रेजी हुकूमत का विरोध किया। 

वासुदेव बलवंत फडके- वासुदेव बलवंत फड़के को आमतौर पर भारतीय सशस्त्र विद्रोह के जनक के रूप में जाना जाता है। उनका जन्म 4 नवंबर, 1845 को भारत के शिरधोन में बलवंतराव और सरस्वतीबाई के घर हुआ था। 1818 में अंग्रेजों द्वारा करनाला किले पर कब्ज़ा करने से पहले, उनके दादा, अनंतराव, इसके कमांडर के रूप में कार्यरत थे। वासुदेव फड़के ने 1859 में साईबाई से शादी की और दोनों की मथुताई नाम की एक बेटी हुई। उन्होंने 1865 में पुणे सैन्य वित्त कार्यालय में काम करना शुरू किया। वासुदेव बलवंत फड़के एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और विद्रोही थे जिन्होंने भारत को औपनिवेशिक उत्पीड़न से मुक्त कराने का प्रयास किया। 

नानाजी देशमुख- देश के महान व्यक्तियों में से नानाजी देशमुख एक थे। मुख्यरूप से नानाजी को एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर जाना जाता है। उन्होंने देश में फैली कुप्रथाओं को खत्म करने के लिए कई कार्य किए। ग्रामीण क्षेत्र को नानाजी ने करीब से देखा था और उनके विकास के लिए भी कई कार्य किए। नानाजी ने ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों को नई राह दी। महाराष्ट्र के छोटे से गाँव में 11 अक्टूबर 1916 को नानाजी देशमुख का जन्म हुआ था। 

अनंत लक्ष्मण कान्हेरे- भारतीय स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले नासिक के मूल निवासी अनंत लक्ष्मण कन्हेरे 1892 से 1910 तक जीवित रहे। उन्होंने 21 दिसंबर, 1909 को ब्रिटिश भारत में नासिक के कलेक्टर की हत्या कर दी। जैक्सन की हत्या ने महाराष्ट्र की भारतीय क्रांति के साथ-साथ नासिक के इतिहास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

बाबू गेनू- भारतीय क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी बाबू गेनू 1908 से 1930 तक जीवित रहे। 12 दिसंबर, 1930 को मैनचेस्टर के जॉर्ज फ्रेज़ियर, एक कपड़ा व्यापारी, फोर्ट क्षेत्र में पुरानी हनुमान गली में अपने स्टोर से विदेशी निर्मित कपड़े के बंडलों को मुंबई बंदरगाह तक ले जा रहे थे। उन्होंने पुलिस सुरक्षा मांगी, जो दे दी गई। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को एक तरफ धकेल दिया और कार्यकर्ताओं के ऐसा न करने के अनुरोध के बावजूद ट्रक को हटाने में कामयाब रही। 

चापेकर बंधू- पुणे के ब्रिटिश प्लेग कमिश्नर डब्ल्यू सी रैंड की चापेकर बंधुओं दामोदर, बालकृष्ण और वासुदेव ने हत्या कर दी थी। भारतीय सिविल सेवा अधिकारी वाल्टर चार्ल्स रैंड के नेतृत्व में एक विशेष प्लेग समिति की स्थापना की गई। 

पांडुरंग महादेव बापट- महादेव पांडुरंग बापट (1880-1967) बापट एक विद्रोही स्वतंत्रता योद्धा थे जिन्होंने महात्मा गांधी का समर्थन और विरोध किया था। 1921 में मुलशी सत्याग्रह के दौरान किसानों के अधिकारों की रक्षा के लिए उन्हें सेनापति उपनाम मिला। 

माधव श्रीहरी अणे- माधव श्रीहरि अणे को लोकनायक बापूजी अणे के नाम से भी जाना जाता है। वह शिक्षा के एक प्रमुख समर्थक, एक स्वतंत्रता सेनानी, एक राजनेता, एक समकालीन संस्कृत कवि और एक राजनीतिज्ञ थे। मदन मोहन मालवीय के साथ, वह कांग्रेस नेशनलिस्ट पार्टी के संस्थापकों में से एक थे। 

महिलाओं ने भी जलाई आजादी की अलख 

बैजा बाई 

गोदावरी पारुलेकर 

रोहिणी गावंकर 

सुमति मोरारजी

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