सुषमा स्वराज की भाषण शैली और वाकपटुता का कोई जवाब नहीं था

By ललित गर्ग | Aug 05, 2021

पूर्व केन्द्रीय विदेश मंत्री एवं भारतीय राजनीति की संभावनाओं भरी उष्मा थीं सुषमा स्वराज। आज भाजपा जिस मुकाम पर है, उसे इस मुकाम पर पहुंचाने में जिन लोगों का योगदान है, उनमें सुषमाजी अग्रणी हैं। वे भारतीय राजनीति की सतरंगी रेखाओं की सादी तस्वीर थीं। उन्हें हम भारतीयता एवं भारतीय राजनीति का ज्ञानकोष कह सकते हैं, वे चित्रता में मित्रता की प्रतीक थीं तो गहन मानवीय चेतना की चितेरी जुझारु, निडर, साहसिक एवं प्रखर व्यक्तित्व थीं। 


सुषमा स्वराज भारतीय राजनीति का एक आदर्श चेहरा थीं। उन्होंने केन्द्रीय मंत्री के अपने कार्यकाल के दौरान कई नए अभिनव दृष्टिकोण, राजनैतिक सोच और कई योजनाओं की शुरुआत की तथा विभिन्न विकास परियोजनाओं के माध्यम से लाखों लोगों के जीवन में सुधार किया, उनमें जीवन में आशा का संचार किया। पिछली बार वे नरेन्द्र मोदी सरकार में एक सशक्त एवं कद्दावर मंत्री थीं। भाजपा में वे मूल्यों की राजनीति करने वालीं नेता, कुशल प्रशासक और योजनाकार थीं। दिल्ली की राजनीति में भी उनका महत्वपूर्ण स्थान था। यह महज संयोग ही है कि 2019 में एक महीने से भी कम समय में दिल्ली ने अपने दो पूर्व महिला मुख्यमंत्रियों को खो दिया था। 20 जुलाई को दिल्ली की सबसे लंबे अंतराल तक मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित का निधन हुआ तो महज दो हफ्ते बाद दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज भी चल बसीं थीं।

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14 फरवरी 1952 को हरियाणा के अंबाला कैंट में जन्मी सुषमा स्वराज ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1970 के दशक में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से की थी। उनके पिता हरदेव शर्मा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख सदस्य थे। अम्बाला छावनी के सनातन धर्म कॉलेज से संस्कृत और राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई करने के बाद सुषमाजी ने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से कानून की डिग्री ली। कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1973 में सुषमाजी ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी वकालत की प्रैक्टिस शुरू की। जुलाई 1975 में उनका विवाह सुप्रीम कोर्ट के ही सहकर्मी स्वराज कौशल से हुआ। आपातकाल के दौरान सुषमाजी ने जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। आपातकाल के बाद वह जनता पार्टी की सदस्य बन गयीं। इसके बाद 1977 में पहली बार सुषमाजी ने हरियाणा विधानसभा का चुनाव जीता और महज 25 वर्ष की आयु में चौधरी देवीलाल सरकार में राज्य की श्रम मंत्री बन कर सबसे युवा कैबिनेट मंत्री बनने की उपलब्धि हासिल की। दो साल बाद ही उन्हें राज्य जनता पार्टी का अध्यक्ष चुना गया। 80 के दशक में भारतीय जनता पार्टी के गठन पर सुषमाजी भाजपा में शामिल हो गयीं। वह अंबाला से दोबारा विधायक चुनी गयीं और बीजेपी-लोकदल सरकार में शिक्षा मंत्री बनाई गयीं। वह दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। हालांकि दिसंबर 1998 में उन्होंने राज्य विधानसभा सीट से इस्तीफा देते हुए राष्ट्रीय राजनीति में वापसी की और 1999 में कर्नाटक के बेल्लारी से कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरीं लेकिन वे हार गयीं। फिर साल 2000 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद के रूप में संसद में वापस लौट आयीं। वाजपेयी मंत्रिमंडल में वह फिर से सूचना प्रसारण मंत्री बनाई गयीं। बाद में उन्हें स्वास्थ्य, परिवार कल्याण और संसदीय मामलों का मंत्री बनाया गया। 


2009 में जब सुषमा स्वराज मध्य प्रदेश के विदिशा से लोकसभा पहुंचीं तो अपने राजनीतिक गुरु लालकृष्ण आडवाणी की जगह 15वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाई गयीं। 2014 तक वे इसी पद पर आसीन रहीं। 2014 में वे दोबारा विदिशा से जीतीं और मोदी मंत्रिमंडल में भारत की पहली पूर्णकालिक विदेश मंत्री बनाई गयीं। प्रखर और ओजस्वी वक्ता, प्रभावी सांसद और कुशल प्रशासक मानी जाने वालीं सुषमा स्वराज अपने समय में वाजपेयीजी के बाद सबसे लोकप्रिय ओजस्वी वक्ता थीं। वह बीजेपी की एकमात्र नेता थीं, जिन्होंने उत्तर और दक्षिण भारत, दोनों क्षेत्र से चुनाव लड़ा है। वे भारतीय संसद की ऐसी अकेली महिला नेता हैं जिन्हें असाधारण सांसद चुना गया। वह किसी भी राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता भी थीं। सात बार सांसद और तीन बार विधायक रह चुकीं सुषमा स्वराज दिल्ली की पांचवीं मुख्यमंत्री, 15वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष, संसदीय कार्य मंत्री, केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री और विदेश मंत्री रह चुकी हैं। बतौर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ट्विटर पर भी काफी सक्रिय रहती थीं। विदेश में फँसे लोग बतौर विदेश मंत्री उनसे मदद मांगते और हजारों संकट में फंसे लोगों को सुरक्षित भारत लाने का काम उन्होंने किया। चाहे पासपोर्ट बनवाने का काम ही क्यों न हो वह किसी को निराश नहीं करतीं थीं। ट्विटर पर सक्रिय रहते हुए लोगों की मदद करना उन दिनों काफी चर्चा में रहा।

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29 सितंबर 2018 को संयुक्त राष्ट्र में दिया सुषमाजी का भाषण खूब चर्चा में रहा। इसमें उन्होंने संयुक्त राष्ट्र को परिवार के सिद्धांत पर चलाने की वकालत की। इस भाषण में उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के साथ कई मौकों पर बातचीत शुरू हुई लेकिन ये रुक गयी तो उसकी वजह पाकिस्तान का व्यवहार है। सुषमाजी ने 2015 में भी संयुक्त राष्ट्र की महासभा में हिन्दी में भाषण दिया था और उस दौरान भी जम कर पाकिस्तान पर गरजीं थीं। तब उन्होंने पाकिस्तान को ‘आतंकवाद की फैक्ट्री’ कहकर संबोधित किया था। विदेश मंत्री के कार्यकाल के दौरान लगातार यह भी खबर आती रही कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है। दो साल बाद नवंबर 2018 में सुषमा ने यह ऐलान कर दिया था कि वह 2019 का चुनाव नहीं लड़ेंगी। 


सुषमा स्वराज की भाषण शैली और वाकपटुता का कोई जोर नहीं था। जब वह बोलती थीं तो विपक्ष भी सन्न रह जाता था। उनके जवाब ऐसे होते थे कि उसके काट के लिए विरोधी को सोचना पड़ता था। जब वह मनमोहन सरकार में विपक्ष की नेता थीं, तब उनके लोकसभा में दिये गये भाषण काफी लोकप्रिय हुए थे। उन्होंने तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह के लिए शायराना अंदाज में तंज कसा था और कहा था- ‘तू इधर-उधर की बात न कर, ये बता कि काफिला क्यों लुटा? मुझे रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है।’ वे सरल एवं सादगी पसंद भी थीं। मौलिक सोच एवं राजनीतिक जिजीविषा के कारण उन्होंने पार्टी के लिये संकटमोचन की भूमिका भी निभाई। वह राजनीति में उलझी चालों को सुलझाने के लिये कई दफा राजनीतिक जादू दिखाती रही हैं। उनकी जादुई चालों की ही देन है कि वह अनेक महत्वपूर्ण पदों पर आसीन रही हैं। 


सुषमा स्वराज का निधन एक आदर्श एवं बेबाक सोच की राजनीति का अंत है। वह सिद्धांतों एवं आदर्शों पर जीने वाले व्यक्तियों की श्रृंखला की प्रतीक थीं। उनके निधन को राजनैतिक जीवन में शुद्धता की, मूल्यों की, राजनीति की, आदर्श के सामने राजसत्ता को छोटा गिनने की या सिद्धांतों पर अडिग रह कर न झुकने, न समझौता करने की समाप्ति समझा जा सकता है। उन्होंने पांच दशक तक सक्रिय राजनीति की, अनेक पदों पर रहीं, पर वह सदा दूसरों से भिन्न रही। घाल-मेल से दूर। भ्रष्ट राजनीति में बेदाग। विचारों में निडर। टूटते मूल्यों में अडिग। घेरे तोड़कर निकलती भीड़ में मर्यादित। उनके जीवन से जुड़ी विधायक धारणा और यथार्थपरक सोच ऐसे शक्तिशाली हथियार थे जिसका वार कभी खाली नहीं गया। वह जितनी राजनीतिक थीं, उससे अधिक मानवीय एवं सामाजिक थीं। 

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भारतीय राजनीति की वास्तविकता है कि इसमें आने वाले लोग घुमावदार रास्ते से लोगों के जीवन में आते हैं वरना आसान रास्ता है- दिल तक पहुंचने का। हां, पर उस रास्ते पर नंगे पांव चलना पड़ता है। सुषमाजी इसी तरह नंगे पांव चलने वाली एवं लोगों के दिलों पर राज करने वाली राजनेता थीं, उनके दिलो-दिमाग में दिल्ली ही नहीं समूचे देश की जनता हर समय बसी रहती थी। काश ! सत्ता के मद, करप्शन के कद, व अहंकार के जद्द में जकड़े-अकड़े रहने वाले राजनेता उनसे एवं उनके निधन से बोधपाठ लें। निराशा, अकर्मण्यता, असफलता और उदासीनता के अंधकार को उन्होंने अपने आत्मविश्वास, साहसिकता, कर्मठता और जीवन के आशा भरे दीपों से पराजित किया। 


सुषमा स्वराज भाजपा की एक नारीरत्न थीं। वह भारतीय संस्कृति की प्रतीक आदर्श महिला थीं और यह भारतीय संस्कृति उनमें बसी थी। उनका सम्पूर्ण जीवन अभ्यास की प्रयोगशाला थी। उनके मन में यह बात घर कर गयी थी कि अभ्यास, प्रयोग एवं संवेदना के बिना किसी भी काम में सफलता नहीं मिलेगी। उन्होंने अभ्यास किया, दृष्टि साफ होती गयी और विवेक जाग गया। उन्होंने हमेशा अच्छे मकसद के लिए काम किया, तारीफ पाने के लिए नहीं। खुद को जाहिर करने के लिए जीवन जीया, दूसरों को खुश करने के लिए नहीं। उनके जीवन की कोशिश रही कि लोग उनके होने को महसूस ना करें। बल्कि उन्होंने काम इस तरह किया कि लोग तब याद करें, जब वह उनके बीच में ना हों। इस तरह उन्होंने अपने जीवन को एक नया आयाम दिया और जनता के दिलों पर अमिट छाप छोड़ते हुए निरन्तर आगे बढ़ीं। वह भारतीय राजनीति का एक अमिट आलेख हैं। 


सुषमा स्वराज एक ऐसा आदर्श राजनीतिक व्यक्तित्व हैं जिन्हें सेवा और सुधारवाद का अक्षय कोश कहा जा सकता है। उनका आम व्यक्ति से सीधा संपर्क रहा। यही कारण है कि आपके जीवन की दिशाएं विविध एवं बहुआयामी रही हैं। आपके जीवन की धारा एक दिशा में प्रवाहित नहीं हुई, बल्कि जीवन की विविध दिशाओं का स्पर्श किया। यही कारण है कि कोई भी महत्त्वपूर्ण क्षेत्र आपके जीवन से अछूता रहा हो, संभव नहीं लगता। आपके जीवन की खिड़कियां राष्ट्र एवं समाज को नई दृष्टि देने के लिए सदैव खुली रहीं। इन्हीं खुली खिड़कियों से आती ताजी हवा के झोंकों का अहसास भारत की जनता सुदीर्घ काल तक करती रहेगी।


सुषमाजी को अलविदा नहीं कहा जा सकता, उन्हें खुदा हाफिज़ भी नहीं कहा जा सकता, उन्हें श्रद्धांजलि भी नहीं दी जा सकती क्योंकि ऐसे व्यक्ति मरते नहीं। वह हमें अनेक मोड़ों पर राजनीति में नैतिकता का संदेश देते रहेंगे कि घाल-मेल से अलग रहकर भी जीवन जिया जा सकता है। निडरता से, शुद्धता से, स्वाभिमान से।


- ललित गर्ग

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