अलगाववादियों की सुरक्षा और सुविधाएं छिनना सही दिशा में उठाया गया कदम

By डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा | Feb 21, 2019

संभवतः यह पहला मौका है जब सरकार ने कश्मीर में आतंकवाद की जड़ काटने का सीधा प्रयास किया है। होता यह रहा है कि आतंकवादी गतिविधियां तेज होने पर जनआक्रोश के चलते अलगाववादी नेताओं को नजरबंद या फिर जेल में बंद कर दिया जाता रहा है। इससे उनकी गतिविधियों पर किसी तरह की रोक भी नहीं लग पाती और वे अधिक क्षमता से अलगाववाद को बढ़ावा देने में सक्रिय हो जाते हैं। मजे की बात यह कि देश की सुविधाओं का उपयोग करते हुए देश के खिलाफ खुले आम राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का संचालन करते रहे हैं। पहली बार सरकार ने अलगाववादी नेताओं पर सीधा शिकंजा कसने का कदम उठाया है। इससे पहले नजरबंदी या जेल में बंद करने जैसे कदम उठाए जाते रहे हैं जिनका इन पर इसलिए कोई असर नहीं होता था कि इनकी सुख और सुविधाओं में कोई कमी नहीं होती थी और सहानुभूति बटोरते हुए अधिक सक्रियता से अपनी गतिविधियों को अंजाम देते थे।

 

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पांच शीर्ष अलगाववादी नेताओं मीरवाइज उमर फारुख, अब्दुल गनी बट, बिलाल लोन, शब्बीर शाह और हाशिम कुरैशी पर सख्ती करते हुए सरकार द्वारा मुहैया कराई जा रही सुरक्षा और अन्य सुविधाओं को हटा दिया गया है। एक आरटीआई सूचना के अनुसार इन अलगाववादी नेताओं पर देश के खजाने से 10 करोड़ रुपए से अधिक तो सुरक्षा के नाम पर ही सालाना खर्च किए जा रहे थे। इसके अलावा होटलों का खर्चा, मंहगे ईलाज की सुविधा और दूसरे खर्चों सहित ना जाने कितनी सुविधाओं का भोग यह अलगाववादी नेता करते आए हैं। मजे की बात यह है कि यह नेता देश के खर्चे पर एक और लक्जरियस जिंदगी जी रहे हैं, ऊंचा काम धंधा कर रहे हैं, अपने बच्चों और परिजनों को अच्छी शिक्षा दिला रहे हैं वहीं कश्मीर के आम नौजवानों की जिंदगी को बर्बाद करते हुए देश में आतंकवाद और अलगाववाद को बढ़ावा दे रहे हैं। देश के साथ नमक हरामी करते हुए पाकिस्तान का गुणगान कर रहे हैं। जो सेना देश की रक्षा और कश्मीर में जनजीवन पर आने वाले हर संकट में कश्मीरियों के साथ खड़ी है उसी के खिलाफ पत्थरबाजी, नारेबाजी, दुर्व्यवहार और ना जाने कैसे कैसे राष्ट्र विरोधी कार्यों के लिए उकसाने में कमी नहीं छोड़ रहे। यहां तक कि घुसपैठियों और आतंकवादियों के रक्षा कवच के रूप में काम कर रहे हैं।

 

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दरअसल पुलवामा की घटना के बाद जिस तरह से देश में जनाक्रोश सामने आया है यह अपने आप में समूचे देश की जनभावनाओं को प्रदर्शित करता है। देश का क्या कोई सा भी कोना हो, क्या युवा, क्या वृद्ध अपितु बच्चे भी जिस तरह से आक्रोशित और उद्वेलित हो रहे हैं वह वास्तव में राष्ट्र भक्ति का ज्वार है और यह साफ हो जाना चाहिए कि पाकिस्तान के पक्ष में या जाने अनजाने या यों कहें कि जानीमानी रणनीति के तहत आतंकवादियों के पक्ष में खड़े होने वालों के लिए भी यह सबक है। दुर्भाग्य यह है कि देश में ही अपने आप पर खतरा बताने वाले व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर आए दिन सरकारी सम्मान की वापसी की हुंकार भरने वाले ना जाने किस कोने में छिप गए हैं। आखिर देश की रक्षा में रात दिन जान जोखिम में डालकर सीमाओं पर तैनात वो भी पेरा मिलिट्री फोर्स तक के जवानों के प्रति भी देश का कोई दायित्व होता है। भाषण देना, आरोप लगाना, मानवाधिकारों की बात करना, आलोचना करना बहुत आसान है। मीडिया के सामने गाल बजाकर सुर्खियों में आना एक बात है पर कभी बेगुनाह सिपाहियों या यों कहें कि सैनिकों के पक्ष में आवाज उठाने का इन लोगों ने प्रयास किया है। बल्कि देखा जाए तो इस तरह के छद्म एजेण्डा पर काम करने वाले लोगों के खिलाफ भी अब समय आ गया है जब देशवासियों को आवाज उठानी होगी।

 

विचारणीय है कि जो अलगाववादी नेता हैं या जो पाकिस्तानपरस्त हैं या जो घाटी में देशविरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं और जो अपने आप को कश्मीरियों का खैरख्हाह मानते हैं उन्हें सुरक्षा मांगने की क्या जरूरत है भई। वे तो कश्मीर में रह रहे हैं, उनके फॉलोवर हैं, देश विरोधी गतिविधियों का संचालन कर रहे हैं, पाकिस्तान सहित विदेशों से पैसा ले रहे हैं फिर देश से सुरक्षा व अन्य सुविधाएं क्यों पाना चाहते हैं ? प्रश्न यही नहीं रुकता, सवाल यह भी उठता है कि इन्हें अपनी जिंदगी को किससे खतरा है। एक अलगाववादी नेता जो सीधे सीधे देशविरोधी गतिविधियों में लिप्त है मजे की बात यह कि सरकार उसे इस तरह की गतिविधियों के संचालन और नेतृत्व करने का अवसर देते हुए यहां तक कि एक दो नहीं 20 से 25 तक सुरक्षाकर्मी उपलब्ध करा रही है। जिस थाली में खाएं उसी में छेद करने वाले इन अलगाववादियों को आखिर यह सुविधा क्यों ? यही कारण है कि सरकार द्वारा इन नेताओं की सुरक्षा और सुविधाओं को छिनने की घोषणा का समूचे देश ने स्वागत किया है।

 

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सेना को खुली छूट देने और जहां चाहे व जैसे चाहे कार्यवाही करने की छूट के साथ ही सेना द्वारा देश के खिलाफ बंदूक उठाने वालों को खुली चेतावनी देते हुए समर्पण करने या गोली में से एक चुनने का अवसर देकर साफ कर दिया है कि अब और बर्दाश्त नहीं होगा। हालांकि अब समर्पण नहीं देश विरोधी और सेना के विरोध में गतिविधियां करने वालों खासतौर से आतंकवादियों को संरक्षण देने या पत्थरबाजी करने वालों का जवाब अब गोली ही होनी चाहिए इससे नीचे किसी तरह की रियायत स्वीकार नहीं। आखिर सैनिक, सिपाही और सुरक्षा बलों के जवान कब तक अपनी कुर्बानी देते रहेंगे। देश चाहता है अब सरकार और सेना ऐसा कदम उठाए जिससे पाकिस्तान और अलगाववाद दोनों की कमर तोड़ी जा सके। इनके पक्ष में आवाज उठाने वालों को भी देशद्रोही से कम नहीं माना जाना चाहिए यही आज समूचे देश की आवाज है।

 

-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

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