कोई दे रहा अजान, किसी ने तोड़ी दीवार, इस्लामाबाद मंदिर की अधूरी कहानी

By अभिनय आकाश | Jul 11, 2020

भारत, दुनिया का सबसे सहनशील देश है। 'वसुधैव कुटुंबकम्' यानी पूरी दुनिया ही एक परिवार है। ये भारतीय संस्कृति का अमूल्य विचार है। दुनिया की कोई और संस्कृति या सभ्यता अपना दिल इतना बड़ा नहीं कर पाई, कि उसने पूरी दुनिया को परिवार की तरह स्वीकार कर लिया हो। भारत में सीएए का विरोध, शाहीन बाग में बवाल करने वाले प्रदर्शनकारी, अंग्रेजी बोलने वाले कुछ सेलिब्रिटी, राजनीतिक कार्यकर्ता, तथाकथित बुद्धिजीवियों के एक वर्ग और कुछ लिबरल पत्रकारों को आज का ये विश्लेषण जरूर देखना चाहिए। जिन्हें भारत में असहिष्णुता का माहौल लगता है, कुछ भी बोलने और धर्मिक स्वतंत्रता के तहत करने की आजादी पर अंकुश प्रतीत होता है और अक्सर बेवजह परेशानी होती है। उन्हें लगता है कि अल्पसंख्यकों के साथ भारत में ठीक व्यव्हार नहीं हो रहा है। आज उन्हें भारत से बाहर की सच्चाई से रूबरू करवाएंगे और कुछ एतिहासिक तथ्यों के माध्यम से बताएंगे कि आपसी प्रेम, भाईचारे और एकता की मिसाल इससे भी आगे गंगा-जमुनी तहजीब की बातें हिन्दुस्तान में तो देखने को मिलती है। लेकिन भारत से बाहर एक मुस्लिम मुल्क में मंदिर का निर्माण लोगों को किस कदर अखर रहा है और कैसे बड़े से लेकर बच्चे तक इस मुद्दे को लेकर कट्टरता और द्वेष पर उतर आए हैं।

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हालांकि हम इस वीडियो के सत्यता की पुष्टि नहीं करते हैं। लेखक तारिक फतेह ने अपने ट्विटर अकाउंट पर इस वीडियो को शेयर किया है। साथ ही उन्होंने लिखा कि एक पाकिस्तानी पिता अपने दो छोटे और नादान बच्चों को क्या सिखा रहा है, नफरत करना हिंदुओं से। धमकी देना और हिंसा करना। बच्चे कहते सुने जा रहे हैं कि इस्लामाबाद में हिंदू मंदिर बना तो वह ऐसा सबक सिखाएंगे कि याद रखेंगे। देखिए बच्चों के पिता की आंखों में ये सब करवा के कितना गर्व है.. शॉकिंग।’

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 भारत के बाहर पाकिस्तान जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं और हिन्दु अल्पसंख्यक हैं, वहां बलात्कार और जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाओं से इतर धार्मिक स्वतंत्रता पर भी पहरा है। पाकिस्तान में हिन्दुओं के धर्म परिवर्तन की कितनी कहानी हमने सुनी और पढ़ी होगी। हिंदू लड़की का मंडप से अपहरण, जबरन इस्लाम कबूल कराकर शादी कराने की खबर तो हाल के दौर में भी देखने को मिली। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति दिन पर दिन खराब होती जा रही है। दशा इतनी खराब हो गई है कि आए दिन कोई न कोई हिन्दू परिवार का सदस्य इस्लामिक कट्टरपंथियों का शिकार बनता है। बलात्कार और जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाओं में पिछले 4-5 वर्षों में इजाफा हुआ है। लेकिन इस्लामाबाद के एच-9 इलाके में श्री कृष्ण मंदिर के निर्माण पर जिस तरह रोक लगा दी गई, उससे एक बार फिर यह साबित हो गया है कि पाकिस्तान में धार्मिक आज़ादी किस तरह घटती जा रही है। मंदिर बन जाता तो राजधानी में रह रहे 3000 हिंदुओं को पहली बार एक पूजा स्थल मिल जाता, लेकिन इससे उन्हें महरूम कर दिया गया है। 

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वहीं बात अगर पाकिस्तानी हुक्मरानों की हो तो मामले पर उनका रवैया भी विचलित करने वाला है। कहा जा रहा है कि आखिर इस्लामाबाद में मंदिर बनने की जरूरत ही क्या है? क्यों नहीं उन मंदिरों को सही कराया जा रहा है जो पाकिस्तान में पहले से ही मौजूद हैं।

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 अब आपको पूरे मामले के बारे में तफ्सील से बताते हैं। दरअसल, भगवान कृष्‍ण के मंदिर को इस्‍लामाबाद के H-9 इलाके में 20 हजार वर्गफुट के इलाके में बनाया जा रहा था। 23 जून को एक साधारण कार्यक्रम में सांसद और मानवाधिक मामलों के संसदीय सचिव लाल चंद माल्ही को मंदिर निर्माण के ऐतिहासिक काम की निगरानी के लिए नियुक्त किया गया था। 20 हज़ार स्क्वायर फ़ीट की ये ज़मीन वैसे तो साल 2017 में ही एक स्थानीय हिंदू समिति को सौंपी गई थी लेकिन प्रशासनिक वजहों से मंदिर निर्माण का काम अटका हुआ था। आधारशिला रखते हुएमौजूद लोगों को संबोधित करते हुए माल्‍ही ने बताया कि वर्ष 1947 से पहले इस्‍लामाबाद और उससे सटे हुए इलाकों में कई हिंदू मंदिर थे। प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने मंदिर निर्माण के प्रथम चरण में 10 करोड़ रुपये देने की घोषणा भी की। लेकिन इसके बाद पाकिस्तान में इस फैसले के खिलाफ मजहबी और सियासी गुट उठ खड़े हुए। जामिया अशर्फ़िया मदरसा ने फैसला सुनाया कि शरीआ के मुताबिक गैर-मुस्लिमों को अपना नया इबादतखाना बनाने या टूटे हुए इबादतखाने की मरम्मत कराने की इजाजत नहीं दी जा सकती और एक इस्लामी मुल्क में यह एक गुनाह है। जिसके बाद तमाम ऐसे वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं जिनमें लोगों को इस निर्माणाधीन मंदिर की नींव और बाउंडरी तक को तोड़ते हुए देखा गया। पंजाब असेम्बली स्पीकर और PML-Q चौधरी परवेज इलाही ने कहा कि पाकिस्तान का निर्माण इस्लाम के नाम पर हुआ था। इसकी राजधानी में मंदिर का निर्माण न सिर्फ इस्लाम की भावना के खिलाफ है, बल्कि कल्याणकारी इस्लामिक राज्य की अवधारणा के खिलाफ है।

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पाकिस्‍तान में मुस्लिम कट्टरपंथियों का एक घिनौना चेहरा सामने आया है। राजधानी इस्लामाबाद में बनने वाले पहले कृष्ण मंदिर के निर्माण पर रोक लगवाने के बाद कट्टरपंथियों ने मंदिर की जमीन पर जबरन अजान दी। यही नहीं मंदिर की नींव को भी कुछ मजहबी गुटों ने पिछ‍ले दिनों ढहा दिया था। पाकिस्तान के सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार मुकेश मेघवार ने इससे जुड़ा वीडियो ट्वीटर पर शेयर किया और लिखा यह मेरे देश में गैर-मुस्लिमों के प्रति असहिष्णुता का स्तर है।

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फैसला वापस ले चुकी सरकार

इमरान सरकार ने मुस्लिम कट्टरपंथियों के फतवे के आगे घुटने टेकते हुए मंदिर के निर्माण पर रोक लगा दी थी। इस मंदिर का निर्माण पाकिस्‍तान के कैपिटल डिवेलपमेंट अथॉरिटी कर रही थी। पाकिस्‍तान सरकार ने मंदिर के संबंध में इस्‍लामिक ऑइडियॉलजी काउंसिल से सलाह लेने का फैसला किया है। मजहबी शिक्षा देने वाले संस्थान जामिया अशर्फिया ने मुफ्ती जियाउद्दीन ने कहा कि गैर मुस्लिमों के लिए मंदिर या अन्य धार्मिक स्थल बनाने के लिए सरकारी धन खर्च नहीं किया जा सकता।

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कोर्ट पहुंचा मामला

इमरान खान सरकार के सत्तारूढ़ सहयोगी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-क्वैड (पीएमएल-क्यू)द्वारा मंदिर निर्माण के विरोध के बाद मामला इस्लामाबाद उच्च न्यायालय पहुंच गया। जिसके बाद पाकिस्तान के इस्लामाबाद में बनने वाले हिंदू मंदिर मामले में वहां की अदालत ने मंदिर समिति के पक्ष में  सुनाया है। अदालत ने एक जैसी उन तीन याचिकाओं को खारिज कर दिया जिनमें देश की राजधानी में पहले हिंदू मंदिर के निर्माण को चुनौती दी गई थी। इस्लामाबाद उच्च न्यायालय की एकल पीठ में न्यायमूर्ति आमिर फारूक ने यह फैसला दिया। उन्होंने यह साफ कर दिया कि ‘इंस्टीट्यूट ऑफ हिंदू पंचायत’ पर कोई रोक नहीं है। आईएचपी को मंदिर निर्माण के लिए भूमि आवंटित की गई है। उसे अपने पैसों से निर्माण करना है। अदालत ने कहा कि भूमि उपयोग के बारे में फैसला करने का अधिकार सीडीए का है। सीडीए ने पिछले हफ्ते कानूनी कारणों का हवाला देते हुए भूखंड पर चारदीवारी बनाने का काम रोक दिया था।

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किस हाल में पाकिस्तान के मंदिर

पाकिस्तान में हजारों ऐतिहासिक मंदिर थे। कभी पाकिस्तान की भूमि आर्यों की प्राचीन भूमि हुआ करती थी। सिंधु नदी का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान में ही बहता है। सिंधु, सरस्वती और गंगा नदी के किनारे ही भारतीय संस्कृति और सभ्यता का उत्थान और विकास हुआ। कहते हैं कि सिंधु के बगैर अधूरी है हिन्दू संस्कृति। बंटवारे के बाद पाकिस्तान में सैंकड़ों मंदिर ध्वस्त किए गए। कितने मंदिरों का अस्तित्व मिटा दिया गया। बाबरी मस्जिद ध्वंस के दौरान भी पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर मंदिरों को निशाना बनाया गया था। तब कम से कम 1000 के आसपास मंदिरों को क्षति पहुंची थी। कुछ पुराने मंदिर खुद समय के साथ खराब हाल में पहुंच गए। जो मंदिर बचे हैं वे भी उपेक्षा का शिकार हैं।

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हिंगलाज मंदिर, बलूचिस्तान: हिंगलाज माता मन्दिर, पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त के हिंगलाज में हिंगोल नदी के तट पर स्थित एक हिन्दू मन्दिर है। यह हिन्दू देवी सती को समर्पित 51 शक्तिपीठों में से एक है। सती के वियोग मे क्षुब्ध शिव जब सती की पार्थिव शरीर को लेकर तीनों लोको का भ्रमण करने लगे तो भगवान विष्णु ने सती के शरीर को 51 खंडों मे विभक्त कर दिया जहाँ जहाँ सती के अंग- प्रत्यंग गिरे स्थान शक्तिपीठ कहलाये । भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से काटे जाने पर यहां उनका सिर गिरा था

नरसिंह मंदिर : भक्त प्रह्लाद ने भगवान नृसिंह के सम्मान में एक मंदिर बनवाया था, जो वर्तमान में पाकिस्तान स्थित पंजाब के मुल्तान शहर में है। इस मंदिर का नाम प्रह्लादपुरी मंदिर है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहीं नरसिंह भगवान ने एक खंभे से निकलकर प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप को मारा था।

पंचमुखी हनुमान मंदिर, कराची: 1500 साल पुराना हनुमान मंदिर. मान्यता है कि त्रेता युग से यानी करीब 17 लाख साल से पंचमुखी हनुमान जी की मूर्ति यहीं है।

कटसराज मंदिर, चकवाल:  भगवान शिव की पत्नी जब सती हुईं तो महादेव की आंख से गिरे दो आंसू. आंसू को मालूम नहीं था कि किसी जमाने में हो जाएगा बंटवारा। तो एक आंसू गिरा भारत के पुष्कर में और दूसरा गिरा सीधा पाकिस्तानी पंजाब के चकवाल जिले में।

स्वामिनारायण मंदिर, कराची: शहर के बंदर रोड पर है यह मंदिर. 32,306 स्क्वायर यार्ड में बना है।

मुल्तान सूर्य मंदिर, मुल्तान: रामायण वाले जामवंत ने अपनी बेटी जामवंती की शादी कृष्ण से करवाई थी। जामवंती कृष्ण के बेटे का नाम था- सांब। उन्ही सांब साहेब ने इस मंदिर को बनाया। वजह थी पिता कृष्ण से मिले कोढ़ी होने के श्राप से मुक्ति। मुहम्मज बिन कासिम और मुहम्मद गजनी समेत कई मुस्लिम क्रूर शासकों ने मंदिर को कई बार लूटा। आज भी मंदिर की हालत खस्ता है।

श्री वरुणदेव मंदिर : 1,000 साल पुराने इस अद्भुत मंदिर को 1947 में बंटवारे के बाद भू-माफियाओं ने अपने कब्जे में ले लिया था। 2007 में पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल ने इस बंद पड़े और क्षतिग्रस्त मंदिर को फिर से तैयार करने का फैसला किया। जून 2007 में इसका नियंत्रण पीएचसी को मिल गया, लेकिन इस मंदिर की देखरेख नहीं है। - अभिनय आकाश

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