By चेतनादित्य आलोक | Nov 07, 2024
बिहार की प्रख्यात लोक गायिका शारदा सिन्हा का 05 नवंबर को देर शाम 72 साल की उम्र में निधन हो गया। आश्चर्य कि मूलतः छठ गीतों से प्रसिद्धि प्राप्त करने वाली शारदा सिन्हा का देहांत भी छठ महापर्व के दौरान ही नहाय−खाय के दिन हुआ। बताया जाता है कि इसी वर्ष 21 सितंबर को 80 साल की आयु में ब्रेन हेमरेज से उनके पति ब्रज किशोर सिन्हा की मृत्यु हो जाने के बाद से ही वह बीमार रहने लगी थीं। शारदा सिंहा के निधन से भोजपुरी जगत में एक ऐसा सूनापन पैदा हुआ है, जो कभी भरा नहीं जा सकता। इसमें कोई संदेह नहीं कि भोजपुरी लोक साहित्य को अपने अनुपम योगदानों से वाली शारदा सिन्हा हमेशा कालजई बनी रहेंगी। उनकी गायकी के महत्व का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि चाहे विवाह का शुभ अवसर हो या छठ महापर्व का, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश समेत भारत के समस्त आंचलिक प्रदेशों में जब तक उनके गाए गीतों से घर−बाहर सर्वत्र गुजायमान नहीं हो उठता, तब तक रस्में पूरी नहीं होतीं और सबकुछ ही प्रायः अधूरा−सा प्रतीत होता है। देखा जाए तो शारदा सिन्हा ने अपनी सुरीली आवाज से बिहार के लोक संगीत को एक नई पहचान प्रदान की। वहीं, संगीत की दुनिया में उनके अतुलनीय योगदानों के लिए उन्हें 'पद्मश्री' तथा 'पद्मभूषण' से सम्मानित भी किया गया।
कलाकारों को बहुत सम्मान देती थीं
शारदा सिन्हा को जानने वाले बताते हैं कि वह कलाकारों को बहुत सम्मान देती थीं। कई बार ऐसा देखा गया, जब वह रांची आकर गीत−संगीत के कार्यक्रम प्रस्तुत करती थीं, तो साथी कलाकारों के साथ अत्यंत प्रेम भाव के साथ व्यवहार करती थीं। पटना इंस्टीट्यूट ऑफ म्यूजिक के प्राचार्य तथा शास्त्रीय गायक डा. ओम प्रकाश नारायण भी मान चुके हैं कि शारदा सिन्हा कलाकारों की बहुत कद्र करती थीं।
नर्तकी बनना चाहती थीं
शारदा सिन्हा की इच्छा प्रारंभ में नर्तकी बनने की थी। उन्होंने एक नृत्य गुरु के समक्ष अपनी यह अभिलाषा प्रकट भी की थीं, लेकिन नृत्य गुरु ने उन्हें गायन के क्षेत्र में अपना भाग्य आजमाने की राय दी थी। नृत्य गुरु ने तब शारदा सिन्हा से कहा था कि उनकी आवाज में जो कशिश है, वह गायन में अद्भुत निखार लाएगा। इसलिए उनके लिए गायन के क्षेत्र में आगे बढ़ना ज्यादा लाभकारी सिद्ध हो सकता है... और देखिए कि उस नृत्य गुरु की बातों को शारदा सिन्हा ने सत्य साबित करते हुए गायन के क्षेत्र में अपना झंडा गाड़ ही दिया। अपनी आवाज का जादू बिखेरते हुए उन्होंने न केवल भोजपुरी, बल्कि मैथिली, मगही, बज्जिका, हिंदी आदि भाषाओं में भी अनेक प्रकार के लोकगीतों का गायन किया था। बताया जाता है कि कॅरियर के शुरूआती दौर में एक बार उन्हें 'प्रयाग संगीत समिति' के आयोजन 'बसंत महोत्सव' में अपना हुनर दिखाने का जब अवसर मिला, तब प्रयाग में आयोजित उक्त कार्यक्रम में उन्होंने अपनी गायकी से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया था। उसके बाद तो उनकी गायकी धीरे−धीरे मंजती ही चली गई। एक गायिका के रूप में उन्होंने आंचलिक लोक−संगीत को एक नया आयाम दिया।
बिहार कोकिला के रूप में विख्यात
लोकगीतों के माध्यम से अपनी पहचान बनाने वाली बिहार की लोकप्रिय गायिका शारदा सिन्हा 'बिहार कोकिला' के रूप में विख्यात रही हैं। उनका जन्म 01 अक्टूबर 1952 को बिहार के सुपौल जिलांतर्गत हुलास गांव में हुआ था। गौरतलब है कि बचपन से ही घर में संगीत का माहौल होने के कारण उनका रूझान गीत−संगीत की ओर हो गया था। बाद में जब उनका विवाह बेगूसराय जिला स्थित सिहमा गांव के मैथिली भाषा−भाषी ब्रज किशोर सिन्हा के साथ संपन्न हुआ, तब वहां पर उन्हें मैथिली लोकगीतों की परंपरा से अवगत होने का अवसर मिला। वह स्वयं मानती थीं कि अपने पैतृक घर यानी मायके और ससुराल दोनों जगहों पर संगीतमय माहौल होने के कारण संगीत के सुरों के प्रति उनका लगाव धीरे−धीरे और गहरा होता चला गया। वैसे उन्होंने स्व. पं. सीताराम जी से शुरू शिष्य परंपरा के अनुसार शास्त्रीय संगीत की शिक्षा भी प्राप्त की थी। उनकी गायकी की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि उसमें फूहड़पन का नामोनिशान तक नहीं मिलता है। उन्होंने सदा ही मर्यादाओं का पालन करते हुए गीतों का गायन किया। उनकी वेषभूषा भी समृद्ध भारतीय परंपरा के अनुरूप ही होती थी।
छठ गीतों से मिली पहचान
हालांकि वह अपने कॅरियर के आरंभ में मैथिली लोकगीत गाती थीं, लेकिन शीघ्र ही जब उन्हें भोजपुरी में अपना हुनर दिखाने का अवसर मिला तो उन्होंने भोजपुरी में अपना नाम रोशन करने में देर नहीं लगाई। यहां तक कि उन्होंने बॉलीवुड की हिंदी फिल्मों के लिए भी कई गीत गाए, लेकिन उनकी वास्तविक पहचान तो छठ गीतों से ही बनी थी। बता दें कि टी−सीरीज, टिप्स एवं एचएमवी सहित कई बड़े और नामचीन संगीत कंपनियों के लिए उन्होंने गीत गाए। इन कंपनियों के कुल नौ एल्बमों के लिए उन्होंने 60 से भी अधिक छठ गीत गाए थे।
हिंदी फिल्मों के लिए भी गीत गाईं
बिहार कोकिला के रूप में विख्यात शारदा सिन्हा ने अपने पूरे कॅरियर में बॉलीवुड की फिल्मों के लिए भी कई गीत गाए थे। इनमें 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' के लिए 'तार बिजली से पतले' और 'हम आपके हैं कौन' के लिए 'बाबुल जो तुमसे पाया' तथा 'मैंने प्यार किया' के लिए 'कहे तोसे सजना' जैसे यादगार गीतों को अपने सुरों से सजाया, जो संगीत के क्षेत्र में उनकी दीवानगी और ऊंची रेंज की भी परिचायक हैं।
हाल ही में नया छठ गीत जारी
पिछले कुछ दिनों से बीमार होने के कारण शारदा सिन्हा एम्स में भर्ती थीं। इसके बावजूद प्रत्येक वर्ष छठ महापर्व से पूर्व नया छठ गीत जारी करने की अपनी परंपरा उन्होंने नहीं तोड़ी। बता दें कि शारदा सिन्हा के पुत्र अंशुमान सिन्हा ने उनके प्रशंसकों के लिए एक ऑडियो सॉन्ग हाल ही में रिलीज किया था। उस अॉडियो के निर्माता स्वयं अंशुमान हैं, जबकि इस गीत को संगीतबद्ध किया है आदित्य देव ने और हृदय नारायण झा ने इसे लिखक है।
कुछ प्रमुख छठ गीत
'महिमा बा राउर अपार छठी मैया...!' भोजपुरी भाषा का यह अत्यंत लोकप्रिय छठ गीत शारदा सिन्हा ने 2003 में गाया था। इसके अलावा 2003 में ही उन्होंने मैथिली भाषा में इस गीत को भी गाया था− 'सकल जगतारिणी हे छठी मैया...!' इसी प्रकार, 'पहिले−पहिले हम कईनी, छठ मैया, बरत तोहार...' गीत उन्होंने 2016 में गाया था, जिसने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात कर दिया। बताया जाता है कि इसी गीत ने देश के अतिरिक्त विदेशों में बसे भारतवंशी युवाओं को छठ महापर्व की महत्वपूर्ण परंपराओं से जोड़ने कार्य किया था। शारदा सिन्हा का एक और लोकप्रिय छइ गीत 'हो दीनानाथ...' 1986 में जारी हुआ था, जिसने श्रद्धालुओं को भक्ति में सराबोर करने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी। ऐसे ही, 'केलवा के पात पर उगलन सूरजमल झुके झुके...' गीत को भी उन्होंने 1986 में ही गाया था।
कुछ प्रमुख विवाह गीत
छठ गीतों की तरह ही शारदा सिन्हा के विवाह गीत भी काफी लोकप्रिय रहे हैं। देखा जाए तो उन्होंने बेटी की विदाई के दर्द को इतनी खूबसूरती से अपने गीतों में उतारा है कि प्रायः यह गीत प्रत्येक विवाह में बजाया ही जाता है। 'बाबुल का घर छोड़कर...' गीत लोगों को इतना भावुक करने वाला है कि दुल्हन की विदाई के समय प्रायरू इसे सुनकर हर व्यक्ति की आंखें नम हो जाती हैं। इसके विपरीत विवाह के अवसर पर हंसी−ठिठोली से भरपूर गीत 'सांवर−सांवर सुरतिया तोहार दुल्हा...' में दुल्हन की सखियां दूल्हे की खींचाई करती हैं। इस गीत की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके बोल और भाव अत्यंत मधुर होने के कारण यह लोगों के दिलों में रच−बस चुका है। इसी प्रकार, 'शिव से गौरी ना बियाहब...' गीत भी विवाह के मौके पर दूल्हे की खींचाई करते हुए दुल्हन पक्ष की महिलाएं गाती हैं। इसके अलावा 1977 में गाया गया 'दूल्हा धीरे−धीरे चलियो...' मंडप में दूल्हे के प्रवेश के समय गाया−बजाया जाने वाला एक लोकप्रिय गीत है।
−चेतनादित्य आलोक
वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार एवं राजनीतिक विश्लेषक, रांची, झारखंड