प्याज की परतें (व्यंग्य)

By डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ | Sep 10, 2023

एक बार की बात है। नाटकगंज के सब्जी मंडी में पियाजीलाल नाम एक विनम्र प्याज रहता था। पियाजीलाल नाम का यह प्याज कोई साधारण प्याज नहीं था। उसे पूरे राज्य में सबसे भावुक और नाटकीय प्याज के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त थी। एक दिन, पियाजीलाल ने भोजन तैयार कर रहे एक रसोइये को खुद को छीलते हुए पाया। जैसे ही उसकी त्वचा की प्रत्येक परत छिल गई, पियाजीलाल रोने और कराहने के अलावा कुछ नहीं कर पाया। वह रोते हुए कहने लगा- "ओह, बहुत दर्द हो रहा है! दुनिया के सामने मेरी सच्चाई उजागर होने की पीड़ा! मेरे काले चिट्ठे पर चढ़ीं सुरक्षा की परतें चली गईं!"

 

रसोइये ने नौटंकी कर रहे पियाजीलाल पर से अपनी आँखें घुमाईं और छीलना जारी रखा। हर परत के साथ पियाजीलाल की चीखें तेज़ होती गईं। पियाजीलाल विद्रोही स्वर में कहने लगा, "अफसोस, मेरे बाहरी आवरण, मेरे दोस्तों! मैं तुम्हें अलविदा कहता हूँ! मेरा काला चिट्ठा प्रकट हो रहा है, और यह मेरी सहमी हुई आत्मा के लिए सहन करने योग्य नहीं है।"

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पियाजीलाल के नाटकीय प्रदर्शन की बात पूरी रसोई में फैल गई और जल्द ही सभी सब्जियाँ इस तमाशे को देखने के लिए इकट्ठा हो गईं। जब पियाजीलाल अपनी छिली हुई स्थिति पर शोक व्यक्त कर रहा था तब गाजर, आलू और यहां तक कि कटे हुए सलाद के टुकड़े भी उसे विस्मय से देख रहे थे। किंतु, अराजकता के बीच, लल्लू नाम का एक बहादुर छोटा लहसुन हस्तक्षेप करने के अलावा कुछ नहीं कर सका। व्यंग्यपूर्ण लहजे में लल्लू ने कहा, "बहुत हुई नौटंकी, कृपया अपना रोना-धोना बंद करो, पियाजीलाल! हम सभी जानते हैं कि छीलना हमारी सब्जियों के जीवन का एक स्वाभाविक हिस्सा है। तुम छीलने वाले न तो पहले प्याज हो और न ही आखिरी।"

 

पियाजीलाल ने और भी जोर से सिसकते हुए कहा, "लेकिन लल्लू, तुम नहीं समझते! मेरी परतें ही मेरे लिए सब कुछ थीं! अब हर कोई मेरी कमजोरी जैसे कोर को देख सकता है। सोचो अगर क्या होगा कि वे मुझे आंकने लगे? अब हर कोई मेरे बारे में अपने-अपने हिसाब से कुछ न कुछ कहेगा। क्या होगा अगर मैं स्वादिष्ट न निकला तो? मैं अपने को लेकर बहुत संवेदनशील हूँ।"

 

लल्लू ने अपनी आँखें फेरीं और उत्तर दिया, "ओह, अब बस भी करो! तुम्हारी परतें केवल बाहरी दुनिया से सुरक्षा करती थीं, लेकिन तुम्हारा असली स्वाद और मज़ा उस रसदार, आंसू-प्रेरक परतों में निहित है। अपने स्वभाव को गले लगाओ, पियाजीलाल! यही है गुण तुम्हें सामान्य से अलग करता है।"

 

पियाजीलाल ने जैसे तैसे अपने आंसू पोंछे। उसकी नौटंकी धीरे-धीरे थमने लगी। "तुम सही कह रहे हो, लल्लू। शायद छीलना दुनिया का अंत नहीं है। शायद यह मेरे लिए अपना असली स्वाद दिखाने और इस भोजन में थोड़ा उत्साह जोड़ने का अवसर है।"

 

और इसलिए, पियाजीलाल ने, एक नए लचीलेपन के साथ, अपने छिलके वाले भाग्य को स्वीकार कर लिया। अब उसे अपनी खोई हुई परतों का शोक नहीं है, वह लंबा और गौरवान्वित खड़ा है, रसोइये की पाक रचना में इस्तेमाल होने के लिए तैयार है। और जैसे ही प्याज भून गया, सुगंध कमरे में भर गई, जिसमें पियाजीलाल का विशिष्ट, स्वादिष्ट सार चमकने लगा। उस दिन के बाद से, पियाजीलाल ने अपनी खुली नियति को स्वीकार कर लिया, और सभी सब्जियों को याद दिलाया कि हमारे भाग्य में केवल छीलना लिखा है। हमारी इतनी हैसियत नहीं कि हम किसी को छील सकें। यह छीलने और छिलाने का खेल सदियों से चला आ रहा है। देश में पियाजीलालों की कमी थोड़े न है। हर पाँच साल में मतदान कर छिलवाने के लिए तैयार रहते हैं। 


- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’,

(हिंदी अकादमी, मुंबई से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)

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