सम्मान समारोह (व्यंग्य)

By विजय कुमार | Jun 09, 2020

कोरोना काल की तालाबंदी (लॉकडाउन) में सबकी जिंदगी ठहर गयी है। किसी समय कहते थे ‘जीवन चलने का नाम।’ अब यह कहावत उल्टी हो गयी है। सीनियर सिटीजनों को तो सरकार ने ही घर में रहने की सलाह दी है। हमारे शर्माजी भी सीनियर सिटीजन हैं; पर वे ठहरे सामाजिक और राजनीतिक प्राणी। अतः घर में पड़े-पड़े उनकी शारीरिक और मानसिक हालत खराब हो रही है। सुबह पार्क से लौटते हुए किसी के घर जाकर चाय पीना और शाम को किसी को अपने घर चाय पिलाना, उनका नियमित कार्यक्रम है; पर इस कोराना काल में बेचारे दिन में दो बार काढ़ा पीकर टाइम पास कर रहे हैं।


एक दिन उन्होंने बाहर पार्क तक जाने की जिद की, तो बहूरानी ने उनका ‘आधार कार्ड’ सामने रख दिया। उस पर लिखी जन्मतिथि उनके वयोवृद्ध होने की चुगली कर रही थी। दो दिन बाद सब लोग दोपहर में खाने के बाद आराम कर रहे थे, तो मौका देखकर वे बाहर निकल पड़े; पर कई लोग उन्हें ऐसे देखने लगे, जैसे चिड़ियाघर से कोई जानवर निकल आया हो। कई लोग उन्हें वापस घर जाने की सलाह देने लगे। झक मारकर शर्माजी लौट आये।

 

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लेकिन दो-तीन में बेचैनी फिर बढ़ने लगी। पिछले रविवार को उनका फोन आया।


- क्या कर रहे हो वर्मा ?


- करना क्या है, पढ़ने और लिखने का शौक पूरा कर रहा हूं। एक किताब पूरी हो गयी है। दूसरी पर काम चल रहा है।


- बड़े भाग्यशाली हो तुम, जो ये हुनर मिला।


- जी धन्यवाद।


- अच्छा, ये तो तुम्हें पता ही होगा कि आजकल कोरोना काल चल रहा है। घर में पड़े-पड़े मैं बोर हो गया हूं। बी.पी. और शुगर का मरीज पहले से हूं। तीन महीने में पांच किलो वजन भी बढ़ गया है। सोच रहा हूं कुछ किया जाए। इसीलिए तुम्हें फोन किया है।


- तो सेवा बताएं शर्माजी, मैं क्या कर सकता हूं ?


- मैं सोच रहा हूं वर्मा कि कोरोना से लड़ाई में पुलिस वाले, डॉक्टर, नर्सें और सफाई कर्मचारी सबसे आगे खड़े हैं। क्यों न हम उन योद्धाओं का सम्मान कर दें ?


- शर्माजी, उनका सम्मान तो बहुत लोग कर रहे हैं। अखबारों में रोज दो-चार फोटो छप ही रही हैं।


- इसीलिए तो। जब बाकी सब कर रहे हैं, तो हम पीछे क्यों रहें ?


- पर इसमें तो काफी पैसा खर्च करना होगा ?


- अरे नहीं। हमारे पास मोहल्ला कल्याण सभा का बैनर है ही। उनके गले में डालने के लिए कुछ फूल मालाएं ले लेंगे। दो-तीन किलो काढ़ा, दस-बीस मास्क और कुछ सेनेटाइजर की बोतलें। कुल मिलाकर दो हजार रु. से भी कम खर्च में काम हो जाएगा।


- पर इससे आपको क्या लाभ होगा शर्माजी ?


- वर्माजी, हम राजनीतिक प्राणी हैं। अखबार में हमारा फोटो न छपे, तो खाना हजम नहीं होता। हम दो हजार रु. खर्च करेंगे और अगले दिन सभी अखबारों में हमारे फोटो छपेंगे। हजारों लोग उन्हें देखेंगे। इतना सस्ता प्रचार और कहां मिल सकता है ?


- पर शर्माजी, आपको प्रचार की क्या जरूरत है ?


- तुम भी निरे पागल हो वर्मा। अगले साल नगर पंचायत के चुनाव हैं। मैं भी पार्षद बनना चाहता हूं। मेरे कई प्रतिद्वन्द्वी इन सम्मान कार्यक्रमों से चर्चा में बने हुए हैं। ऐसे में मेरा सक्रिय होना बहुत जरूरी है।

 

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- ठीक है शर्माजी। मेरी ओर से आपको शुभकामनाएं।


- खाली शुभकामनाओं से काम नहीं चलेगा वर्मा। दो दिन बाद हम थाने में जाकर पुलिस वालों का सम्मान करेंगे। तुम्हें भी चलना है। तुम्हारा अखबार वालों से भी अच्छा संपर्क है। तुम कहोगे, तो वे कैमरे लेकर आ जाएंगे।


- मुझे माफ करें शर्माजी। मेरी न पार्षद बनने की इच्छा है और न फोटो छपवाने की। मैं अपने पढ़ने-लिखने के काम से ही संतुष्ट हूं। मेरा बी.पी., शुगर और वजन भी बिल्कुल ठीक है। यह सम्मान और प्रसिद्धि आपको ही मुबारक।


शर्माजी ने बहुत कोशिश की; पर मैंने इस तमाशे में कोई रुचि नहीं ली। उन्होंने कुछ लोग लिये और थाने में जाकर सम्मान कर आये। तीन अखबारों में समाचार छपा और दो में फोटो। इससे वे बहुत खुश हुए। वाट्सएप से वह सब मुझे भेजा और सैंकड़ों अन्य को भी।


पर कल खबर मिली कि उस थाने के एक सिपाही की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आयी है। तबसे शर्माजी की हालत खस्ता है। उन्होंने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया है। मिलना तो दूर, अब वे फोन उठाने से भी परहेज कर रहे हैं। उनके घर के बाहर शासन ने 15 दिन के एकांतवास (क्वारंटाइन) का नोटिस भी लगा दिया है।


मैं उनके साथ पुलिस थाने वाले सम्मान कार्यक्रम में तो नहीं गया; पर इस एकांतवास से जब वे बाहर निकलेंगे, तो उनका सम्मान जरूर करूंगा।


-विजय कुमार

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