National Press Day 2023: लोकतंत्र की मजबूती में पत्रकारिता की भूमिका

By प्रभासाक्षी ब्यूरो | Nov 16, 2023

हमारे देश में हर वर्ष 16 नवंबर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस मनाया जाता है। 16 नवंबर 1966 से भारतीय प्रेस परिषद ने अपना विधिवत कार्य करना शुरू किया था तब से लेकर आज तक प्रतिवर्ष 16 नवंबर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के रूप में मनाया जाता है। राष्ट्रीय प्रेस दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य देश में आम लोगों को प्रेस के बारे में जागरूक करना व उनको प्रेस के नजदीक लाना है। आज 21वीं सदी में पहले के मुकाबले लोगों में अधिक जागरूकता बढ़ी है। इस कारण देश में प्रेस का भी महत्व बढ़ा है। पहले की तुलना में आज हमारे देश में विभिन्न भाषाओं में निकलने वाले समाचार पत्रों, विभिन्न टीवी चैनलों व इंटरनेट पर विभिन्न वेबसाइटों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई है। यह इस बात का संकेत है कि आज देश में मीडिया के प्रति लोगों में जागरूकता तेजी से बढ़ रही है।


न सिर्फ भारत में बल्कि विश्वभर में कलम को तलवार से भी ज्यादा ताकतवर और तलवार की धार से भी ज्यादा प्रभावी माना गया है क्योंकि इसी की सजगता के कारण भारत सहित दुनियाभर के अनेक देशों में पिछले कुछ दशकों में कई बड़े-बड़े घोटालों का पर्दाफाश हो सका। यह कलम की ताकत का ही परिणाम है कि अनेकों बार गलत कार्यों में संलिप्त बड़े-बड़े उद्योगपति, नेता तथा विभिन्न क्षेत्रों के दिग्गज एक ही झटके में अर्श से फर्श पर आ जाते हैं। अगर इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो 1970 के दशक में जब अमेरिका के मशहूर ‘वाटरगेट’ कांड का भंडाफोड़ हुआ था तो अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को भी पद छोड़ने पर विवश होना पड़ा था। यही हाल हमारे यहां भी देखा जाता रहा है, जब प्रेस की सजगता के कारण ही केन्द्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री जैसे अति महत्वपूर्ण पदों पर रहे आला दर्जे के नेता भी भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों में जेल की हवा खाते रहे हैं। भारत में प्रेस की भूमिका और उसकी ताकत को रेखांकित करते हुए अकबर इलाहाबादी ने एक बार कहा था, ‘‘न खींचो कमान, न तलवार निकालो, जब तोप हो मुकाबिल, तब अखबार निकालो।’’ उनके इस कथन का आशय यही था कि कलम तोप, तलवार तथा अन्य किसी भी हथियार से ज्यादा ताकतवर है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने भी 3 दिसम्बर 1950 को अपने एक सम्बोधन में कहा था, ‘‘मैं प्रेस पर प्रतिबंध लगाने के बजाय, उसकी स्वतंत्रता के बेजा इस्तेमाल के तमाम खतरों के बावजूद पूरी तरह स्वतंत्र प्रेस रखना चाहूंगा क्योंकि प्रेस की स्वतंत्रता एक नारा भर नहीं है बल्कि लोकतंत्र का एक अभिन्न अंग है।’’

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प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में आज स्थितियां काफी बदल गई हैं और पिछले कुछ वर्षों से कलम रूपी इस हथियार को भोथरा बनाने अथवा तोड़ने के कुचक्र हो रहे हैं। पत्रकारों पर आज राजनीतिक, अपराधिक और आतंकी समूहों का सर्वाधिक खतरा है और भारत भी इस मामले में अछूता नहीं है। यह विड़म्बना ही है कि दुनिया भर के न्यूज रूम्स में सरकारी तथा निजी समूहों के कारण भय और तनाव में वृद्धि हुई है। चूंकि किसी भी देश में लोकतंत्र की मजबूती में प्रेस की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है, इसीलिए एक स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र के लिए प्रेस की स्वतंत्रता को अहम माना जाता रहा है लेकिन विड़म्बना है कि विगत कुछ वर्षों से प्रेस स्वतंत्रता के मामले में लगातार कमी देखी जा रही है। प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में इसी वर्ष अमेरिकी वॉचडॉग फ्रीडम हाउस की एक सनसनीखेज रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें खुलासा किया गया था कि प्रेस स्वतंत्रता में पिछले करीब डेढ़ दशकों से कमी देखी जा रही है।


आज देश का हर आदमी हर समय देश, दुनिया में घटने वाली विभिन्न घटनाओं की नवीनतम जानकारी चाहता है। इसलिए देश में 24 घंटे चलने वाले विभिन्न समाचार चैनल व सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर हर वक्त ताजा तरीन समाचार उपलब्ध कराए जाते रहते हैं। इंटरनेट के फैलाव से मीडिया की कार्य प्रणाली में बहुत तेजी आयी है। आज समाचारों का आदान-प्रदान करना बहुत आसान हो गया है। वर्तमान समय में पत्रकारिता का क्षेत्र व्यापक हो गया है। पत्रकारिता जन-जन तक सूचना पहुंचाने का मुख्य साधन बन चुका है। पत्रकार चाहे प्रशिक्षित हों या गैर प्रशिक्षित, सबको यह पता है कि पत्रकारिता में तथ्यात्मकता होनी चाहिए। परन्तु तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर घटना को सनसनी बनाने की प्रवृत्ति आज पत्रकारिता में तेजी से बढ़ने लगी है।


दुनिया भर के लोकतांत्रिक देशों में कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के साथ प्रेस को चौथा स्तम्भ माना जाता है। प्रेस इनको जोड़ने का काम करती है। प्रेस की स्वतंत्रता के कारण ही कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका को मजबूती के साथ आम आवाम की भावना को अभिव्यक्त करने का अवसर हासिल होता है। मगर आज समाचारों में किसी खास विचारधारा पर आधारित समाचारों की संख्या बढ़ने लगी है। इससे पत्रकारिता में एक गलत प्रवृत्ति पनपने लगी है।


भारत जैसे विकासशील देश में पत्रकारिता पर जाति, सम्प्रदाय जैसे संकुचित विचारों के खिलाफ संघर्ष करने व गरीबी एवं अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई में लोगों की सहायता करने की महती जिम्मेदारी है। देश में आज भी लोगों का एक बहुत बड़ा वर्ग पिछड़ा व शोषित है। इसलिये यह और भी जरूरी है कि आधुनिक विचार उन तक पहुंचाए जाएं और उनका पिछड़ापन दूर किया जाए ताकि वे सजग भारत का हिस्सा बन सकें। इस दृष्टि से मीडिया की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है।


हमारे देश में आज हजारों की संख्या में पत्रकारों के संगठन बने हुये हैं। मगर मुखरता से पत्रकार हितों की बात कोई भी नहीं करता है। बहुतेरे पत्रकार संगठनों के पदाधिकारी मीडिया संस्थानों के मालिकों की ही तरफदारी में लगे रहते हैं। ऐसे में पत्रकारों को भला कैसे हो पायेगा। ऊपर से सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव से समाचार पत्रों की प्रसार संख्या भी कम होती जा रही है। धीरे-धीरे पत्रकारिता के क्षेत्र में रोजगार के अवसर कम होते जा रहे हैं। वर्तमान माहौल में नये लोग पत्रकारिता के क्षेत्र में आने से कतराने लगे हैं। ऐसे में पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यरत लोगों को संगठित होकर एकजुटता के साथ अपने हितों की रक्षा करनी होगी तभी पत्रकारिता का वैभव व यश बना रह पायेगा।

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