केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने बताया है कि लगभग सभी राज्यों से केंद्रीय विद्यालय खोलने की प्रतिवेदन आए हुए हैं। जिनमें असम से 4, आंध्र प्रदेश से 10, छत्तीसगढ़ से 14, चंडीगढ़ से 1, गुजरात से 8, हरियाणा से 5, हिमाचल प्रदेश से 1, जम्मू कश्मीर से 1, झारखंड से 8, कर्नाटक से 13, केरल से 12, मध्य प्रदेश से 19, महाराष्ट्र से 3, मणिपुर से 1, मेघालय से 1, ओडिशा से 10, त्रिपुरा से 2, तेलंगाना से 4, तमिलनाडु से 9, उत्तराखंड से 5, उत्तर प्रदेश से 11 और पश्चिम बंगाल से 2 प्रस्ताव आए हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या केंद्रीय विद्यालय खोल देने भर से शिक्षा आम बच्चों को मिल जाएगी।
देश में आज शिक्षा का अधिकार कानून लागू है। फिर भी आज कई कमियां हैं। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2008-09 और 2009-10 में देशभर में 26 लाख बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया है। सबसे गंभीर समस्या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों की है। तीन साल पहले दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पास शिक्षा के अधिकार के क्रियान्वयन को लेकर बारह हजार चार सौ शिकायतें मिली जिनमें नौ हजार से अधिक शिकायतें तो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों की हैं। आयोग को 9,789 शिकायतें मिलीं, जो निजी स्कूलों दवारा गरीब बच्चों के दाखिले से इंकार करने को लेकर थीं। आयोग ने 3,219 शिकायतों का निबटान भी किया है। शिक्षा का अधिकार कानून लागू है लेकिन आज देश भर में 12 लाख प्राथमिक शिक्षकों की कमी है। कानून के मुताबिक, एक शिक्षक पर 30 बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी है।
एक एनजीओ द्वारा सत्रह राज्यों के करीब ढाई हजार स्कूलों में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार देश में 90 प्रतिशत स्कूल शिक्षा का अधिकार कानून के मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं। 35 प्रतिशत स्कूलों में छात्र छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय की सुविधा नहीं है। 22 फीसदी स्कूलों में पानी उपलब्ध नहीं है। 41 प्रतिशत स्कूलों में छात्र शिक्षक अनुपात मानक के लिहाज से नहीं है। बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा अधिकार कानून को लागू हुए अब तो छह वर्ष पूरे हो गए हैं। जब एक अप्रैल 2010 को इस कानून को लागू करने की घोषणा तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने की थी, तो लगा था कि जल्द ही देश का हर बच्चा स्कूल तक पहुंच जाएगा। इस कानून में तीन साल के अंदर प्राप्त करने के लिए कुछ लक्ष्य रखे गए थे। पहला था देश के प्रत्येक स्कूल में तीस बच्चों पर एक शिक्षक अवश्य होगा। दूसरा, स्कूल में प्रत्येक कक्षा के लिए अलग कमरा, सभी मौसमों के अनुकूल भवन, खेल का मैदान, लाइब्रेरी, शौचालय, पीने के साफ पानी की व्यवस्था, चारदीवारी जैसी मूलभूत सुविधाओं को मुहैया कराना था, लेकिन अब तक इसमें से शायद एक भी लक्ष्य प्राप्त नहीं हो सका है। इस कानून के लागू होने के बाद से शिक्षकों की भर्ती पर एक नजर डालने पर साफ हो जाएगा कि शिक्षा का अधिकार कानून में 30 बच्चों पर एक शिक्षक की नियुक्ति का प्रावधान है और नियुक्त शिक्षक भी पैरा टीचर, संविदा शिक्षक या प्रशिक्षित नहीं, बल्कि पूर्णकालिक प्रशिक्षित होना चाहिए।
कानून लागू होने के बाद तीन साल बाद भी बारह लाख प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी देश में है। अकेले उत्तर प्रदेश में तीन लाख, बिहार में दो लाख साठ हजार, पश्चिम बंगाल में एक लाख, झारखंड में 68 हजार, मध्य प्रदेश में 95 हजार शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं। इतना ही नहीं जो स्कूली शिक्षक हैं, उनमें से 8.6 लाख शिक्षक योग्य और प्रशिक्षित नहीं हैं। इस मामले में एक लाख 97 हजार अप्रशिक्षित शिक्षकों के साथ पश्चिम बंगाल सबसे ऊपर है। बिहार में एक लाख 86 हजार, उत्तर प्रदेश में एक लाख 43 हजार और झारखंड में 77 हजार शिक्षक जरूरी योग्यता नहीं पूरी करते हैं। दिल्ली के स्कूलों में भी 73 फीसदी शिक्षक ठेके पर रखे गए हैं और मध्य प्रदेश में 64 फीसदी शिक्षक ठेके पर हैं। इनमें से कुछ का वेतन तो ढाई हजार से भी कम है। दिल्ली ही नहीं उत्तर प्रदेश, गुजरात और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में आज भी स्कूल प्रबंध समिति का गठन नहीं हुआ है। जिन राज्यों में आयोग हैं वे भी शिकायतों का निपटारा करने में असमर्थ हैं।