बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर

FacebookTwitterWhatsapp

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | May 07, 2019

बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर

भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान डालने वाले युगदृष्टा रवींद्रनाथ टैगोर एक ही साथ महान साहित्यकार, दार्शनिक, संगीतज्ञ, चित्रकार, शिक्षाविद्, सामाजिक कार्यकर्ता और राष्ट्रवादी के साथ मानवतावादी भी थे जिन्होंने दो देशों के लिए राष्ट्रगान लिखा। प्रकृति के प्रति अत्यधिक लगाव रखने वाले रवींद्रनाथ संभवतः ऐसे अकेले व्यक्ति थे जिन्होंने दो देशों भारत और बांग्लादेश के लिए राष्ट्रीय गान लिखा। बचपन से कुशाग्र बुद्धि के रवींद्रनाथ ने देश और विदेशी साहित्य दर्शन संस्कृति आदि को अपने अंदर समाहित कर लिया था और वह मानवता को विशेष महत्व देते थे। इसकी झलक उनकी रचनाओं में भी स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होती है। 

 

साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने अपूर्व योगदान दिया और उनकी रचना 'गीतांजलि' के लिए उन्हें साहित्य के नोबल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में बांग्ला भाषा विभाग में प्राध्यापक डॉ. प्रकाश कुमार मैती के अनुसार रवींद्रनाथ टैगोर की रचनाएं बांग्ला साहित्य में अनोखी हैं। उन्होंने एक दर्जन से अधिक उपन्यास लिखे। इन रचनाओं में चोखेर बाली घरे बाइरे गोरा आदि शामिल हैं। उनके उपन्यासों में मध्यम वर्गीय समाज विशेष रूप से उभर कर सामने आया है।

इसे भी पढ़ें: इतिहास के पन्नों में आज भी नजर आते हैं मंगल पांडे

मैती के अनुसार उनकी कृति 'गोरा' कई मायनों में अलग रचना है। इस उपन्यास में ब्रिटिश कालीन भारत का जिक्र है। राष्ट्रीयता और मानवता की चर्चा के साथ पारंपरिक हिन्दू समाज और ब्रह्म समाज पर बहस के साथ विभिन्न प्रचलित समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है। इसके साथ ही उसमें स्वतंत्रता संग्राम का भी जिक्र आया है। इतना समय बीत जाने के बाद भी बहुत हद तक उसकी प्रासंगिकता कायम है। मैती के अनुसार रवींद्रनाथ टैगोर की कविताएं भी अनोखी हैं। उनकी कविताओं में आध्यात्मवाद का विशेष जोर रहा है। इसके साथ ही उनकी कविताओं में उपनिषद जैसी भावनाएं महसूस होती हैं। साहित्य की शायद ही कोई शाखा हो जिनमें उनकी रचनाएं नहीं हों। 

 

उन्होंने कविता गीत कहानी उपन्यास नाटक आदि सभी विधाओं में रचना की। उनकी कई कृतियों का अंग्रेजी में भी अनुवाद किया गया है। अंग्रेजी अनुवाद के बाद पूरा विश्व उनकी प्रतिभा से परिचित हुआ। उनके अनुसार सात मई 1861 को जोड़ासांको में पैदा हुए रवींद्रनाथ के नाटक भी अनोखे हैं। वे नाटक सांकेतिक हैं। उनके नाटकों में डाकघर राजा विसर्जन आदि शामिल हैं। बचपन से ही रवींद्रनाथ की विलक्षण प्रतिभा का आभास लोगों को होने लगा था। उन्होंने पहली कविता सिर्फ आठ साल में लिखी थी और केवल 16 साल की उम्र में उनकी पहली लघुकथा प्रकाशित हुई थी।

इसे भी पढ़ें: अपने विचारों के जरिये लोगों के मन में आज भी जीवित हैं शहीद भगत सिंह

रवींद्रनाथ की रचनाओं में मानव और ईश्वर के बीच का स्थायी संपर्क कई रूपों में उभरता है। इसके अलावा उन्हें बचपन से ही प्रकृति का साथ काफी पसंद था। रवींद्रनाथ चाहते थे कि विद्यार्थियों को प्रकृति के सान्निध्य में अध्ययन करना चाहिए। उन्होंने इसी सोच को मूर्त रूप देने के लिए शांतिनिकेतन की स्थापना की। रवींद्रनाथ ने दो हजार से अधिक गीतों की भी रचना की। रवींद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग बन गया है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत से प्रभावित उनके गीत मानवीय भावनाओं के विभिन्न रंग पेश करते हैं। गुरुदेव बाद के दिनों में चित्र भी बनाने लगे थे। रवींद्रनाथ ने अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, चीन सहित दर्जनों देशों की यात्राएं की थी। सात अगस्त 1941 को देश की इस महान विभूति का देहावसान हो गया। जीवन के आखिरी दिनों में उन्हें इलाज के लिए कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) ले जाया जा रहा था। इस क्रम में परिवार की एक सदस्य ने बताया कि वहां एक नया पावरहाउस बन रहा है। इस पर उन्होंने टिप्पणी की थी− हां पुराना आलोक चला जाएगा नए का आगमन होगा।

प्रमुख खबरें

Canada ने अपने नागरिकों के लिए जारी की ट्रैवल एडवाइजरी, जम्मू-कश्मीर में आतंकी खतरे का दिया हवाला

‘मुस्लिम होने के नाते मैं हिंदुओं से माफी मांगती हूं’, पहलगाम आतंकी हमले के बाद Hina Khan ने शेयर की लंबी-चौड़ी पोस्ट

MI vs LSG: मुंबई और लखनऊ की नजरें प्लेऑफ पर, वानखेड़े स्टेडियम में किसी मिलेगी विजय

मुंबई और महाराष्ट्र के लिए एकजुट होने का समय, राज-उद्धव ठाकरे के साथ आने की चर्चा के बीच UBT का ट्वीट