By अंकित सिंह | Apr 02, 2022
हाल में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का उद्घाटन किया। इस दौरान उन्होंने इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर का भी नाम लिया। दरअसल, मुगल शासक औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। हालांकि रानी अहिल्याबाई होल्कर ने काशी विश्वनाथ धाम का पुनर्निर्माण कराया। इसके बाद से अब काशी विश्वनाथ मंदिर का एक बार फिर से पुनर्निर्माण कराया गया है। अहिल्याबाई के योगदान को देखते हुए उनकी एक सिलावट और एक मूर्ति श्री काशी विश्वनाथ धाम के प्रांगण में लगाई गई है। अहिल्याबाई ने ना सिर्फ काशी विश्वनाथ धाम का पुनर्निर्माण कराया, बल्कि देश में ऐसे कई बड़े मंदिर हैं जिसका उन्होंने निर्माण कार्य उन्होंने संपन्न कराया है। इन मंदिरों में कई सारे मंदिर द्वारिका, केदारनाथ, अयोध्या, मथुरा, गया के भी शामिल हैं। सवाल यह है कि आखिर रानी अहिल्याबाई होल्कर कौन थीं? आज हम आपको रानी अहिल्याबाई होलकर के ही बारे में बता रहे हैं।
अहिल्याबाई होल्कर इंदौर घराने की महारानी थीं। इनका जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के चौड़ी नामक गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम मनको जी शिंदे और माता का नाम सुशीला शिंदे था। इनके पिता धनगर समाज से थे जो कि गांव में पाटिल की भूमिका निभाते थे। उन्होंने अपनी बेटी अहिल्याबाई को पढ़ाया लिखाया। अहिल्याबाई का बचपन बेहद ही साधारण तरीके से गुजरा। हालांकि उनकी किस्मत ने अचानक ही पलटी खाई। दरअसल, अहिल्याबाई की सादगी और सरलता ने मल्हार राव होल्कर को बेहद ही प्रभावित किया। मल्हार राव होल्कर पेशवा बाजीराव की सेना में एक कमांडर के तौर पर काम करते थे। अहिल्याबाई उन्हें इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने अपने बेटे खंडेराव से इनकी शादी करवा दी। इसके बाद अहिल्याबाई होलकर राजघराने की बहू बंद बन गईं।
अहिल्याबाई अपना जीवन बेहद सादगी में बिताती थीं। वह एक धार्मिक महिला थीं जिन्हें भगवान शिव में बहुत ज्यादा विश्वास था। वह प्रतिदिन मंदिर जाते थीं। इंदौर राजघराने की महारानी बनने के बावजूद भी अहिल्याबाई ने अपने जीवन की सादगी और सरलता को नहीं त्यागा। अहिल्याबाई अच्छे विचारों वाली महिला थीं जो कि पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ अपने काम को करते थीं। यही कारण था कि अहिल्याबाई से उनके ससुर मल्हार राव होल्कर बेहद ही प्रभावित थे। अहिल्याबाई को शिक्षित बनाने के लिए होल्कर ने उनके लिए शिक्षा का प्रबंध घर पर ही कर दिया। अहिल्याबाई के ससुर ने ही उन्हें राजकीय शिक्षा भी प्रदान कराया। पुत्र की तुलना में वे अपने पुत्र बधू पर अत्यधिक भरोसा भी करते थे। विवाह के बाद अहिल्याबाई ने एक पुत्र और एक पुत्री को भी जन्म दिया। पुत्र का नाम माले राव तथा पुत्री का नाम मुक्ताबाई रखा गया। उसी दौरान मराठी साम्राज्य के शासक अपने राज्य के विस्तार में लग गए। शासक अन्य राजाओं से चौथ वसूला करते थे। लेकिन भरतपुर के लोगों ने चौथ देने से मना कर दिया। मल्हार राव इससे गुस्सा हो गए और उन्होंने अपने बेटे खंडेराव होल्कर को भरतपुर पर आक्रमण के लिए भेज दिया। इस युद्ध में मल्हार राव होलकर ने विजय तो प्राप्त कर ली लेकिन उनके बेटे की मृत्यु हो गई। अहिल्याबाई 29 वर्ष की उम्र में विधवा हो गई।
पति की मृत्यु के बाद अहिल्याबाई बिल्कुल ही टूट गई थीं। खुद को समाप्त कर लेना चाहती थीं। लेकिन उनके ससुर ने उनका ढांढस बंधाया। अहिल्याबाई को व्यस्त रखने के लिए मल्हार राव ने राजपाट का काम उन्हें सौंप दिया। हालांकि अहिल्याबाई ने अपने 17 वर्षीय पुत्र को सिंहासन पर बैठा दिया और खुद उसकी संरक्षक बन गईं। ससुर की मृत्यु के बाद अहिल्याबाई ने समाज में कई बड़े काम किए। उन्होंने ससुर की स्मृति में इंदौर तथा अन्य इलाकों में विधवाओं, अनाथ और अपंग लोगों के लिए आश्रम बनवाएं। उन्होंने हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक अनेक मंदिर, घाट, तलाब, भोजनालय, धर्मशाला इत्यादि का निर्माण कराया। काशी विश्वनाथ और महेश्वर मंदिर के अलावा वाराणसी के घाटों का भी उन्होंने निर्माण करवाया। अपने कार्यकाल के दौरान अहिल्याबाई भारतीय संस्कृति के साथ-साथ साहित्यकारों, कलाकारों और गायकों को बढ़ावा देती थीं। राज्य की रक्षा के लिए उन्होंने महिला सैनिक की भी एक टुकड़ी बनाई। अहिल्याबाई ने मरते दम तक के न्याय के लिए काम किया। यही कारण है कि लोग इन्हें देवी समझने लगे। वे गरीबों और निस्सहाय लोगों की निस्वार्थ होकर सहायता करती थीं।
कुल मिलाकर देखें तो अहिल्याबाई होल्कर ने धर्म के विकास के लिए कई बड़े काम किए। इसके लिए उन्होंने अंधाधुन पैसा भी खर्च किया। अहिल्याबाई होल्कर की मृत्यु 13 अगस्त 1795 को हुई थी। अहिल्याबाई का भारतीय समाज में आज भी बहुत बड़ा सम्मान है। अलग-अलग पाठ्य पुस्तकों में अहिल्याबाई के कामों को आज पढ़ाया जाता है। अहिल्याबाई आज भी महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। अहिल्याबाई के महान कार्यों को देखते हुए ही भारत सरकार ने उनके नाम पर एक अवार्ड भी जारी किया है। इसके अलावा उनके नाम पर डाक टिकट भी जारी हो चुका है। अहिल्याबाई के नाम पर कई स्कूल और यूनिवर्सिटी हैं। इसके अलावा मध्यप्रदेश के इंदौर हवाई अड्डे का नाम भी देवी अहिल्या बाई होल्कर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा रखा गया है। अहिल्याबाई को भारतीय समाज में साहस, बलिदान, त्याग और आदर्श की मूर्ति के रूप में याद किया जाता है।